आम आदमी पार्टी क्षणिक विकल्पमात्र हीं

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delhi-elections-2013-arvind-kejriwal-turns-giant-killer{संजय कुमार आजाद**}
          यही आवाज का मौसम है न टालो मुझको, कुछ जवाबों से निपटने दो सवालों मुझको।
          मैं खरा सिक्का हूॅ जब चाहे चला लो मुझको, सरे बाजार न रह-र हके उछालो मुझको।।
                         रमेष तन्हा का एक गजल का मुखड़ा भारतीय राजनीति की सामान्ती सोच पर यह पंक्ति आम आदमी पार्टी  के अस्तित्व की बुनियाद की कहानी वयां करती है।भारतीय राजनीति में अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानने बाले दलों में आज भी राजतंत्रीय खून बहता है तभी तो हर मुद्दे पर आम नागरिक या नागरिक संगठनो के मांग पर चुनाव लड़ने की नसीहत देते नही शर्माता रहा है। राजतंत्रीय व्यवस्था के खेवनहार लोकतंत्र की आड़ में जिस घिनौना खेल को खलते रहते और लोकतंत्र को शर्मसार करते रहें है वहां पैसों का सबसे बड़ा खेल होता है और चुनाव को आज उस मुकाम पर ले आया है जहां एक-एक उम्मीदवार करोड़ो का खेल लोकतंत्र की मंडी में खेलने लगा है। फलतः इस विद्रुप व्यवस्था में वह सोचता है कि जनता चुनाव तो लड़ेगी नहीं और मांग की उसी कड़ी में आम आदमी पार्टी का अभ्युदय दिल्ली में हुआ। अब अच्छा और बुरा ये नही किन्तु लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिये ऐसे प्रयोग निरंतर चलनी चाहिये ताकि राजनीतिक दलों को निरकुंष होने से बचाया जा सके।
                          चार राज्यों के चुनावी निर्णय ने जो संकेत दिये वह स्वस्थ एवं परिपक्व लोकतंत्र का सूचक है। वे दिन लद गये जब पांॅंच साल में एकबार दिखने बालों की तुती बोलती थी। अब भारतीय लोकतंत्र जीवान्त होकर मतदाताओं के सर चढ़कर उसका अधिकार और कर्तव्य बोल रहा है जिसे अब जाति, पद, पैसा या लोभ-लालच से नही दबाया जा सेता है।लोकसभा -2014 से पूर्व पांच राज्यों का चुनावी परिणाम हर राजनीतिक दल को सोचने पर मजबूर कर दिया कि जनता अब क्या चाहती है।विकास का लॉलीपाप नही विकास की दीर्घजीविता की चाह रखती है और इसी कड़ी में दिल्ली का चुनाव परिणाम ने लोकतंत्र को और सबल एवं शासन को जनता के प्रति जवाबदेह होने को साफ संकेत दिया। भारतीय लोकतंत्र में आम आदमी पार्टी के जैसा प्रदर्षन अनेको बार हुआ है जो चिरस्थायी दिषा नही दे सकी है। आम तात्कालिक जन आक्रोष में ऐसे दल उभरते और विखरतें रहें है। साल 1982 में आंध्र-प्रदेष में एन. टी. रामाराव के नेतृत्व में तेलगुदेषम पार्टी का गठन हुआ । साल 1983 के विधान सभा चुनाव में इस पार्टी के 293 उम्मीदवार मे से 198 ने जीत हासिल किया था । उसी प्रकार असम में साल 1985 में असम गण परिषद् का गठन हुआ और उसी साल वहां के विधान सभा चुनाव में इसके 126 प्रत्याषी में 63 ने जीत हासिल कर 34.54 प्रतिषत मत भी प्राप्त किया था। इसलिए भारतीय लोकतंत्र में इस तरह की घटनाएं होती रहती है और यह जीवान्त लोकतंत्र और परिपक्व मतदाता का सूचक होता है।लोकतंत्र की यही तरलता विभिन्न दलों को निरंकुषता से बचाती रहती है।
assembly-elections-2013-harsh-vardhan-the-man-who-brought-delhi-bjp-factions-together                                 दिल्ली में साल 1998 से लगातार कांग्रेस की सरकार तथा विपक्ष में भाजपा रही है। सषक्त विपक्ष के होते हुए 15 सालों में जो दुर्गती दिल्ली की जनता को हुई उसी का प्रस्फूटन आम आदमी पार्टी के रूप में हुआ है। भ्रष्टाचार के अनेकों करनामें, कानून व्यवस्था की लचर स्थिती ने देष की की राजधानी को बलात्कार की राजधानी का नाम दे दिया। विकास के सारे पैसे भ्रष्टाचारियों के भेंट चढते गये । नागरिक सुविधायों का घोर अभाव के बीच सुरसा की भांति फैलती मंहगाई से त्रस्त और गैर जिममेवार विपक्ष के कारण दिल्ली वासियों के पास लोकतंत्र का अंतिम अस्त्र चुनाव में मतों का प्रयोग करने के अलावे और कोई विकल्प नहीं था जिसका प्रयोग उन्होने किया । जनता भलें हीं इस चुनाव में किसी भी दल को स्थाई और स्पष्ट बहुमत नही दिया किन्तु अपना ओक्रोष से सता और विपक्ष सहित हर राजनीतिक दलों को अवगत कराने का मुख्य कार्य किया इसमें कोई संदेह नहीं है।
                                  1484 वर्गकिलोमीटर में फैला  दिल्ली, विधान सभा  के 70 तथा लोकसभा के 7 सदस्यों को अपना भाग्यविधाता के रूप में पांच सालों के लिये चुनती है। 11297 व्यक्ति प्रति वर्गकिमी. घनत्व वाले इस महानगर में लगभग 81 प्रतिषत हिन्दू और 12 प्रतिषत मुस्लिम 5 फीसदी सिख मतावलम्वी रहतें है।साल 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आवादी 1,67,53,235 है जिनमें लगभग 68.5 लाख पुरूष एवं 54 लाख महिला मतदाता है। कुल मतदाताओं में पहली वार मत का प्रयोग करने बालों की संख्या लगभग 3.94 लाख थी।
 M_Id_445828_election_                                  साल 1998 से अबतक दिल्ली पर शासन करने बाली कांग्रेस पार्टी के साल 2008 के चुनाव में कुल 24.9 लाख (करीब 40.3 प्रति.) वोट के सहारे 70 में 43 उम्मीदवार जीते। जवकि विपक्ष भारतीय जनता पार्टी को साल 2008 के चुनाव मे कुल 22.45 लाख (करीव 36 प्रति.) वोट मिले और इसके 23 साटों पर सफलता मिली थी । किन्तु साल 2013 का चुनाव में जो निर्णय जनता ने दिया वह दोनों दलों के लिये आत्ममंथन करने को है।साल 2013 के चुनाव में महज साल भर पहले दिल्ली के दहलीज पर कदम रखने वाली आम आदमी पार्टी के सहारे जनता ने अच्छा सबक दिया है। साल 2013 के चुनाव में सत्ताधारी कांग्रेस को कुल 19.4 लाख (करीब 25.2 प्रति.) मतों के सहारे महज 8 सीट मिला जवकि विपक्ष भारतीय जनता पार्टी को इसबार कुल 25.6 लाख (किन्तु मत प्रतिषत में कमी हुई इसे करीब 33.3 प्रति.मत मिला) मतों के सहारे इसके 32 विधायक चुने गये।वहीं आम आदमी पार्टी को साल 2013 के चुनाव में जनता के 23.5 लाख (करीब 30.5 प्रति.) मत के सहारे 28 सीटे प्राप्त कर दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरा।
                                    लोकतंत्र में मतदाताओं का निर्णय सर्वोपरि होता है। दिल्ली विधान सभा में जनता ने जो निर्णय दिया वह त्रिषंकु विधान सभा का स्पष्ट संकेत है। सत्ता के इस खेल में शह और मात भाजपा और आप के साथ है। यदि आप कांग्रेस के सहयोग से सत्ता का स्वाद चखती है तो यह उसके लिये आत्म हत्या हीं होगी ।यदि भाजपा भी किसी तोड़फोड़ से सत्ता हासिल करती है तो मोदी जी के लिए पूरे देष में नकारात्मक सत्तालोलुप संदेष जायेगा। भाजपा के लिये फिर से चुनाव में जाना ज्यादा श्रेयस्कर होगा वनिस्पत जोड़तोड़ से सत्ता के करीव पहूॅचना।अपने दूरगामी प्रयासों के लिये दिल्ली पर किसी प्रकार की भी सत्ता की प्राप्ति को नजरअंदाज कर अपने गलतियों को भाजपा सुधार सकती है यदि लोकतंत्र में विष्वास है तब।वर्तमान स्वरूप में दिल्ली के सीमित विकल्प पर असीमित राजनीति को दाव पर नही लगाना चाहिए। जिस तरह से आप ने सीमित क्षेत्रफल और सघन आवादी तथा आधुनिकतम तकनीकि का इस्तेमाल करने बाले आवादी को प्रयोग के रूप में चुना उसमें उसे सफल होना हीं था । आप का यह सीमित क्षेत्र में किया प्रदर्षन देष के लिये तीसरे विकल्प के रूप में होना कठिन है। यदि कांग्रेस और भाजपा दोनो अपने पुराने गलतियों को दुहरातें रहेगें तो इस तरह के क्षेत्रीय दलों को पनपने में सहारा मिलेगा जो देष की राजनीति के लिए घातक है।
download (1)                              अपने आपको 127 साल पुरानी मानने वाली पार्टी कंाग्रेस अपने युवा काल सेही
सिर्फ भोगवाद में लिप्त रहा । इस लोकतंत्र में हर अनैतिक हथकण्डो को अपना कर सत्ता सुख भोगती आई है आज उसीका परिणाम जनता ने उसे दिया। वहीं देष संसद में विपक्ष का दायित्व ढ़ोनेवाली भाजपा भी जो दषा बनाई उसके लिए खुद जिम्मेवार है। एनडीए के नाम पर अपने सारे नीति सिद्धान्तों को तिलांजली देकर सत्ता के रसास्वादन में ऐसा डुवा कि इण्डिया शाईनिंग में इसे कुछ दिखा हीं नही और नई दिल्ली से वेदखल हुई।उसी तरह से आम आदमी पार्टी का जब दिल्ली में अभ्युदय हुआ तो दिल्ली में आप से निवटने के बजाय भाजपा अपनी शक्ति मैं मुख्यमंत्री बनुगंा में खर्च कर आप का राह आसान कर दिया। फिर जिस आप पार्टी ने कांग्रेस को मटियामेट करने में कोई कसर नहीं छोड़ा उसके विजय रथ को सत्ता से दूर करने का भाजपा ने सार्थक प्रयास किया । आप के कार्यकर्ताओं ने विगत आठ-दस माह में जिस तरह से दिल्ली वालों के समस्याओं को उठाया उनके सुख-दुःख में सहभागी उसका ईनाम दिल्ली के मतदाताओं ने आप पार्टी को दिया ।यदि भाजपा को साल-2014 के महासमर में अपने विजय रथ को इन्द्रप्रस्थ तक पहुंचाना है तो संगठित होकर एक निर्दलीय प्रत्याषी तक के नीतियों पर ध्यान रखकर नीति बनाना होगा । युवा आज भी भाजपा में विकास की आत्मा देखती है किन्तु भाजपा की आपसी खींचतान उसे आप की ओर मुड़ने को मजबूर कर दिया । दिल्ली की वर्तमान स्थिति में सत्ता के लिए उत्साहित होने के बजाय पुनःचुनाव के लिये भाजपा को कमर कसनी चाहिए। आप के इस प्रदर्षन से ना तो भारतीय राजनीति का विकास है और ना हीं यह दल इस देष के लिए तीसरा विकल्प हो सकता है।
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download**संजय कुमार आजाद
पता : शीतल अपार्टमेंट,
निवारणपुर रांची 834002
मो- 09431162589
(*लेखक स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं)
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं ।

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