आप – भारतीय लोकतंत्र का नया राजनैतिक अवतार

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aam aadmi party{ तनवीर जाफरी ** }
मध्यप्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़,दिल्ली तथा मिज़ोरम आदि पांच राज्यों में पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों के परिणामों को लेकर अभी से $कयास लगाए जाने लगे हैं। इन पांच राज्यों में जहां कांग्रेस पार्टी को राजस्थान की सत्ता गंवानी पड़ी है वहीे मिज़ोरम में कांग्रेस ने सत्ता पर पुन: अपना $कब्ज़ा बर$करार रखा है। मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ राज्यों पर भारतीय जनता पार्टी सत्ता पर अपना नियंत्रण पुन: $कायम रखने में कामयाब रही है। हालांकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी ने अपनी स्थिति में का$फी सुधार किया है तथा मुख्यमंत्री रमन सिंह को सत्ता में पुन: वापसी के लिए नाकों चने चबाने पड़े हैं। उधर दिल्ली की जनता ने कांग्रेस पार्टी को तो सत्ता से ज़रूर उखाड़ फेंका है पंरतु दिल्ली विधानसभा के चुनाव से पूर्व मुख्य विपक्षी दल के रूप में नज़र आने वाली भारतीय जनता पार्टी को भी दिल्लीवासियों ने पूर्ण बहुमत नहीं दिया। इसके बजाए दिल्ली के मतदाताओं ने देश में पहली बार चुनाव लडऩे वाली आम आदमी पार्टी(आप)को अप्रत्याशित रूप से 28 सीटों पर विजयी बनाकर दिल्ली में इसे दूसरे नंबर की पार्टी बनाकर एक नए राजनैतिक अवतार के रूप में मान्यता प्रदान की है। इन चुनाव परिणामों के बाद राजनैतिक विश£ेषक एवं समीक्षक तथा विभिन्न विचारधाराओं से जुड़े $कलमकार इन परिणामों को अपने-अपने नज़रिए से परिभाषित कर रहे हैं।
कांग्रेस का नेतृत्व अपनी हार पर चिंतन-मंथन करने के लिए तैयार है। कांग्रेस आलाकमान की कोशिश है कि हार का ठीकरा राज्य के नेतृत्व की नाकामियों व नीतियों पर फोड़ा जाए जबकि राज्य का नेतृत्व हार का जि़म्मा गत् पांच वर्षों से कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की भ्रष्टाचार व मंहगाई संबंधी असफलताओं पर डाल रहा है। उधर भारतीय जनता पार्टी के नेता अपनी पार्टी की जीत को मोदी लहर का नाम दे रहे हैं। जबकि इन परिणामों को मोदी लहर बताने वालों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि मोदी लहर छत्तीसगढ़ और दिल्ली में आ$िखर क्यों नहीं चली? और यह भी कि देश को राजनैतिक विकल्प देने का वादा करने वाली भारतीय जनता पार्टी को मिज़ोरम में चुनाव लड़वाने के लिए उम्मीदवार तक क्यों नहीं मिलते? मध्यप्रदेश में भी भाजपा को विजयश्री मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उदार व साधारण आम आदमी वाली छवि के कारण मिली है न कि मोदी लहर की बदौलत। हां राजस्थान में नरेंद्र मोदी के प्रभाव को ज़रूर स्वीकार किया जा सकता है। उसका कारण भी यही है कि गत् पांच वर्षों में राजस्थान में कई स्थानों पर सांप्रदायिक हिंसा के समाचार आए। राज्य में भाजपा ने सांप्रदायिक तनाव का लाभ उठाया। और गत् दिनों हुए विधान सभा चुनावों से पूर्व वसुंधरा राजे सिंधिया ने पूरे प्रदेश में 22 स्थानों पर नरेंद्र मोदी की जनसभाएं कराईं। इनमें कई जनसभाएं ऐसे स्थानों पर भी हुईं जहां कभी पहले किसी बड़े राजनेता की जनसभा नहीं हुई थी। इस प्रकार वसुंधरा राजे सिंधिया नरेंद्र मोदी को हिंदुत्व के हीरो के रूप में पेश कर राजस्थान के मतदाताओं को धर्म के आधार पर अपने पक्ष में कर पाने में सफल रहीं। अन्यथा दिल्ली हो अथवा राजस्थान इन राज्यों में अशोक गहलोत तथा शीला दीक्षित ने विकास के जो कार्य किए हैं उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
बहरहाल कांग्रेस व भाजपा की सांप्रदायिक व धर्मनिरपेक्ष राजनीति के मध्य एक तीसरे राजनैतिक kejriwalअवतार के रूप में जिस आम आदमी पार्टी ने देश के नागरिकों से 28 विधानसभा सीटों के साथ अपना जो परिचय कराया है उसे लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। ‘आप’ के उदय में सबसे महत्वूपर्ण यह है कि कांग्रेस व भाजपा सहित सभी राजनैतिक दल भले ही सार्वजनिक रूप से इन्हें कोई अहमियत देने को तैयार न हों परंतु ह$की$कत में ‘आप’ की सफलता ने इन पारंपरिक राजनैतिक दलों की नींद हराम कर डाली है। दिल्ली की जागरूक,पढ़ी-लिखी तथा दूरदर्शी समझी जाने वाली जनता ने जहां ‘आप’ को 28 सीटों पर विजयश्री दिलाई है वहीं तीन बार लगातार दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद पर बैठने वाली मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को ‘आप’ के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल द्वारा 22 हज़ार वोटों से हराकर इस बात का सा$फ संदेश दिया है कि देश अब सांप्रदायिकता व धर्मनिरपेक्षता,मंदिर-मस्जिद जैसे भावनात्मक, धर्म व जाति आधारित तथा लोक-लुभावन से दिखाई देने वाले खोखले मुद्दों में उलझने अथवा इनकी ओर आकर्षित होने के बजाए भ्रष्टाचार का विरोध करने,राजनीति में पारदर्शिता बरतने, राजनीति को अपना व अपने $खानदान के जीविकोपार्जन का साधन न समझने, सत्ता को अय्याशी,स्वार्थपूर्ति तथा धन संग्रह का ज़रिया न समझने,मंहगाई व भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने तथा नेता को सत्ताधीश के बजाए समाज सेवक के रूप में पेश किए जाने जैसी ज़रूरी व बुनियादी बातों को महत्व देना चाहती है।
ज़ाहिर है ‘आप’ पार्टी ने राजनीति को कमाने-खाने,ऐशपरस्ती करने,कोटा-परमिट की राजनीति करने का माध्यम समझने वालों की नींदें उड़ा दी हैं। लिहाज़ा अब यह पारंपरिक राजनैतिक दल ‘आप’ से निपटने के तरह-तरह के हथकंडे इस्तेमाल कर रहे हैं। कल तक विभिन्न दलों के जो राजनीतिज्ञ अरविंद केजरीवाल व उनके सहयोगियों को इस बात की चुनौती देते थे कि यदि उनमें हिम्मत है तो वे जनप्रतिनिधि के रूप में हमसे बात करें अन्यथा साधारण नागरिक के रूप में उन्हें बात करने अथवा अपनी आवाज़ बुलंद करने का कोई अधिकार नहीं है। आज ‘आप’पार्टी ने 28 सीटें जीतकर ऐसी बातें करने वालों के मुंह पर ताला लगा दिया है। अब जहां कुछ राजनैतिक दल ‘आप’ को पानी का बुलबुला अथवा ‘अस्थाई उदय’ बता रहे हैं वहीं भारतीय जनता पार्टी व इसके समर्थित संगठन आम आदमी पार्टी को वामपंथियों द्वारा प्रायोजित व उनके द्वारा पिछले दरवाज़े से समर्थन दिए जाने वाला राजनैतिक संगठन बता रहे हैं। गोया प्रत्येक दल,प्रत्येक नेता, प्रत्येक विश£ेषक व समीक्षक अपनी-अपनी सोच,$िफक्र, विचारधारा तथा बुद्धि के एतबार से ‘आप’ की सफलता तथा इसके भारतीय लोकतंत्र में शानदार उदय को परिभाषित कर रहा है। उधर ‘आप’ पार्टी के नेताओं ने भी दिल्ली में मिली अपनी अप्रत्याशित सफलता के बाद इस बात के संकेत दे दिए हैं कि भविष्य में यह पार्टी देश के प्रमुख महानगरों में संसदीय चुनाव लडऩे के अलावा देश की कुछ चुनिंदा संसदीय सीटों पर भी अपने उम्मीदवार खड़े कर सकती है। इसके अतिरिक्त दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में भी संगठन भविष्य में अपने उम्मीदवार खड़े कर सकता है।
रहा सवाल पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के विश£ेषण का तो कांग्रेस पार्टी की पराजय निश्चित रूप से प्रत्याशित थी। जिसका कारण दिन दूनी रात चौगुनी की दर से बढ़ती मंहगाई तथा गत् पांच वर्षों में यूपीए सरकार के शासनकाल में हुए कीर्तिमान स्थापित करने वाले बड़े से बड़े घोटाले थे। समाजशास्त्र के लिहाज़ से भी यदि देखा जाए तो भी कांग्रेस पार्टी सभी धर्मों व जातियों को समान रूप से साथ लेकर चलने की अपनी दलीय संवैधानिक बाध्यता के कारण दिनों-दिन कमज़ोर पड़ती जा रही है जबकि भारतीय जनता पार्टी अपने कई सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर देश में अपने पक्ष में हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करने में का$फी हद तक सफल दिखाई दे रही है। उसी प्रकार क्षेत्रीय दल अल्पसंख्यक मतों को अपने पक्ष में करने में सफल रहे हैं। कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक समझे जाने वाले अल्पसंख्यक व दलित मत अब कांग्रेस के हाथों से निकल कर अन्य क्षेत्रीय दलों के मध्य विभाजित हो चुके हैं। परंतु इन सब के बीच भ्रष्टाचार व राजनैतिक पारदर्शिता जैसे राष्ट्रहित से जुड़े प्रमुख मुद्दों को लेकर ‘आप’ जैसे राजनैतिक संगठन का अवतरित होना भारतीय लोकतंत्र की एक और बहुत बड़ी सफलता मानी जाएगी। यह राजनैतिक सफलता उस लिहाज़ से और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है जबकि हम देख रहे हैं कि दुनिया के कई देशों में गत् दो-तीन वर्षों के दौरान जिस प्रकार $खूनी क्रांति अथवा सैन्य विद्रोह जैसी परिस्थितियों में सत्ता परिवर्तन हुए हैं अथवा नई राजनैतिक शक्तियों ने विद्रोह के माध्यम से अपना स्वर बुलंद किया है उसकी तुलना में भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश में भारतीय जागरूक मतदाताओं ने किसी प्रकार की क्रांति अथवा विद्रोह का सहारा लेने के बजाए बड़े ही लोकतंात्रिक तरी$के से ‘आप’ जैसे राजनैतिक संगठन का भारतीय राजनीति से परिचय कराकर तथा उसे राजधानी दिल्ली में महत्वपूर्ण सफलता दिलाकर यह प्रमाणित कर दिया है कि हमारा देश यदि भविष्य में परंपरागत राजनीति के चेहरे को राष्ट्रीय स्तर पर भी बदलना चाहेगा तो उसका तरी$का भी कोई विद्रोह या $खूनी क्रांति नहीं बल्कि मतदान जैसा लोकतांत्रिक तरी$का ही होगा।

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Tanveer-Jafri1**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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