आधुनिक बिहार के शिल्पकारः डॉ0 श्रीकृष्ण सिंह

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डॉ0 श्रीकृष्ण सिंह{ प्रभात कुमार राय }  बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री, डॉ0 श्रीकृष्ण सिंह (21.10.1887-31.1.1961) उद्यात व्यक्तित्व, अद्भुत कर्मठता उत्कृष्ट वाग्मिता, निःस्पृह लोक सेवा, प्रखर राजनीतिक सूझ-बूझ, अनुकरणीय त्याग, प्रकांड पांडित्य, गंभीर अध्ययनशीलता, अनुशासन, न्यायप्रियता, स्वाभिमानी देशभक्ति, प्रशासनिक दृढंता, दुर्जेय आत्मविश्वास, निष्पक्षता, धर्म निरपेक्षता एवं सर्वजनवरेण्य नेतृत्व के मूर्तिमान प्रतीक थे। वे छात्र जीवन से क्रांतिकारी अरविंद के आलेखों तथा लोकमान्य तिलक के उद्गारों से अत्यंत प्रभावित थे। राष्ट्रपिता गाँधी से उनकी पहली मुलाकात 1911 में हुई और उनके व्यक्तित्व से आकर्षित होकर ये उनके कट्टर अनुयायी बन गये।

नमक सत्याग्रह के समय गाँधी जी ने आगाह किया था कि मुट्ठी टूट जाय पर खुले नहीं। 1930 में श्रीबाबू जब गढ़पुरा में नमक बनाने लगे तब पुलिस ने नमक के कड़ाह को चूल्हे पर से उतारने का भरपूर प्रयास किया। किन्तु श्रीबाबू ने तप्त कराह की डंटियों को अपनी मुट्ठी में कसकर पकड़ ली और उबलते पानी पर अपनी छाती सटा दी थी। असहनीय ताप से उनके हाथ और छाती में फफोले पड़ गये थे लेकिन मुँह से आह तक नहीं निकली। यह एक सच्चे सत्याग्रही के अदम्य साहस का परिचायक था। राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा है कि जब पुलिस के जवान उन्हें बलपूर्वक खींच कर हटाने लगे तो जवानों की आँखों से आँसू निकल रहे थे। इसी मार्मिक दृश्य से अभिभूत होकर राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा हैः

”यह विस्मय बड़ा प्रबल है,
बल को बलहीन रिझाते।
मरनेवाले हंसते हैं,
आँसू है वधिक बहाते।”

उनके साहस एवं समर्पण से प्रभावित हो गाँधीजी ने 1940 में उन्हें बिहार का प्रथम सत्यग्राही घोषित किया था।
उनके भाषण की शैली दहाड़नेवाली होती थी जो श्रोताओं को उद्वेलित कर देता था। अंग्रेजी शासन को ललकारने वाले उनकी सिंह-गर्जना से आंदोलित जनता उन्हें ‘बिहार केसरी‘ से विभूषित किया। विविध विषय प्रसंग पर वे गंभीर भाषण देते थे तथा स्तरीय एवं तथ्यपरक ढंग से विषय को मौलिकता के साथ प्रस्तुत करते थे जो श्रोताओं को मुग्ध कर देता था। स्वतंत्रता संग्राम में वे देश के क्रोध, क्षोभ एवं वेदना के वाणी थे तथा उनका एक-एक शब्द जन मानस को दोलायमान करता था। जनता की पीड़ाओं एवं आक्रोश की वाणी उनके भाषण में तीव्रता के साथ ध्वनित होती थी।
उनका हृदय निश्छल प्रेम एवं दया से परिपूर्ण था। सिंह की भाँति दहाड़नेवाला व्यक्ति दूसरों के दुखः देखकर मोम की तरह द्रवित हो जाता था। उनके व्यक्तित्व में शौर्य एवं कोमलता का दुर्लभ संयोग था। राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा हैः ”श्री बाबू अत्यंत भावुक थे। 1935 के आस-पास मैं उन्हें जब देशभक्ति की कविता सुनाता था तो वे रोने लगते थे। एक बार तो मसनद पर सिर पटक-पटक कर वे इतना रोये कि मैं काव्य पाठ ही बंद कर दिया।“
1934 में श्रीबाबू केंद्रीय एसेम्बली के सदस्य चुने गये। वे पीछे के बेंच पर बैठते थे क्योंकि आगे बैठने के लिए सदस्यों में काफी होड़ थी। उन्हें मात्र एक बार व्याख्यान का मौका मिला। इनका भाषण इतना सारगभिति और प्रभावोत्पादक रहा कि राष्ट्र के एक प्रमुख समाचार पत्र ने यह टिप्पणी की: ”ऐसा मालूम होता है कि एसेम्बली के अदभुत वक्ता अभी तक पीछे के बेंचो पर बैठ रहे हैं।“
स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरत बाद उन्होंने अपना मर्मस्पर्शी वक्तव्य दिया थाः
“आजाद होने के बाद हमें जो करना है वह निर्माणात्मक है। पहले हमें जोश पैदा करना था और वह काम बड़ा आसान था। आज हमें देश के करोड़ो लोगों के नजदीक पहुँच कर उनके हृदय तथा मस्तिष्क को छूना है ताकि उनके भीतर देश के निर्माण में योग देने वाली जो शक्ति कुंठित होकर बैठी है, वह जीवन को सुंदर बनाने के लिए काम करने की उत्कट इच्छा के रूप में प्रवाहित हो सकें।”

राष्ट्रकवि दिनकर ने भी इन्हीें भावनाओ को अपनी कविता में समावेश किया हैः
“भग्न मंदिर बन रहा है, स्वेद का बल दो,
रश्मियाँ अपनी निचोड़ो, ज्योति उज्ज्वल दो।”

वे भारत मे प्रथम मुख्यमंत्री थे जिन्होंने जमींदारी प्रथा का उन्मूलन किया। दलितों को बैद्यनाथधाम मंदिर में प्रवेश दिलवाकर उन्होंने सामाजिक सशक्तीकरण की दिशा में सकारात्मक पहल का प्रमाण दिया। दरिद्रता, अशिक्षा, रूढिवादिता, कुपोषण एवं संकीर्णता आदि से ग्रसित समाज को हर क्षेत्र में विकास की रोशनी दिखाई। वे अल्पसंख्यक के हितों के प्रबल पोषक तथा पहरेदार थे।
उनके शासन काल में राज्य की प्रशासनिक दक्षता संपूर्ण राष्ट्र में सर्वोत्कृष्ट मानी जाती थी। विश्व के प्रशासकीय शास्त्र के विशेषज्ञ एपेल्वी को प्रधानमंत्री पंडित नेहरू द्वारा खासकर राज्य सरकार के कार्यकलापों का निष्पक्ष मूल्यांकन हेतु आमंत्रित किया गया था।  श्री एपेल्वी ने बिहार को सर्वश्रेष्ठ प्रशासित राज्य घोषित किया था।
श्रीबाबू के कार्यकाल में बिहार की प्रति व्यक्ति आय तब पूरे राष्ट्र की तुलना में दूसरे स्थान पर थी। प्रथम पंचवर्षीय योजना में उन्होंने कृषि के विकास पर जोर दिया। पारंपरिक दकियानुसी कृषि तंत्र को पहली बार विकासोन्मुख, वैज्ञानिक एवं ठोस आधार प्रदान किया। यह उनकी दूरदर्शिता एवं वर्चस्व का प्रतिफल था कि बिहार में एशिया का सबसे बड़ा इंजीनइरिंग उद्योग, हेवी इंजीनइरिंग कारपोरेशन, भारत का सबसे बड़ा बोकारो इस्पात प्लांट, देश का पहला खाद कारखाना सिन्दरी में, बरौनी तेल शोधक कारखाना, बरौनी थर्मल पावर प्लांट, पतरातू थर्मल पावर प्लांट, मैथन हाइडेल पावर स्टेशन एवं कई अन्य नदी घाटी परियोजनाएँ उनके कार्यकाल में स्थापित किया गया।
उनकी प्रगाढ़ विदूता के सम्मान में पटना विश्वविद्यालय ने उन्हें डाक्टर ऑफ लॉ की उपाधि से अलंकृत किया। उनकी ज्ञान पिपासा अपरिमेय थी। वे लगातार पढ़ने के आदी थे। राजनैतिक व्यस्तता एवं प्रशासनिक दायित्व निर्वहन के बाद जो भी समय मिलता था उसे वे अध्ययन में बिताते थे। उनका विद्या-व्यसन और पुस्तक-प्रेम अद्वितीय था। वे विविध विषयों के चूड़ान्त विद्वान थे। उनकी अध्ययनशीलता का लोहा नेहरू जी भी मानते थे। नेहरू जी ने कहा थाः ”श्रीबाबू का ज्ञान बड़े से बड़े पुस्तकों में समाहित ज्ञान के समान था।” देश के तमाम बड़े पुस्तक विक्रेताओं से उनकी मित्रता थी। दिल्ली का सबसे बड़ा पुस्तक विक्रेता ने कहा थाः ”डॉ0 श्रीकृष्ण सिंह के समान पुस्तक प्रेमी और ग्राहक हमें कोई और नहीं मिला।” अपने वेतन का बड़ा हिस्सा किताबों के क्रय में लगा देते थे।
जीवन के अंत तक उनकी जिज्ञासा और ज्ञान पिपासा कायम रही। मृत्यु से 6 वर्ष पहले उनकी अभिरूचि खगोल शास्त्र में जगी। इसके मर्म को जानने के लिए उन्होंने संस्कृत सीखना शुरू किया। एक संस्कृत शिक्षक बहाल हुआ जिसका खर्च श्रीबाबू व्यक्तिगत तौर पर वहन करते थे।
1957 में उनके नेता पद को चुनौती देने के कारण माहौल असहज हो गया था। सदाकत आश्रम में मतगणना के वक्त भी वे निर्लिप्त एवं निर्विकार भाव से पुस्तक की दुनिया में खोये रहे। परिवार में मातमी माहौल में भी वे अध्ययन में तल्लीन रहते थे। पूर्व पुलिस महानिदेशक, बिहार, श्री शशि भूषण सहाय ने अपनी पुस्तकः ”धर्मदेव रायः दि एक्स्ट्राआर्डिनरी लाईफ स्टोरी ऑफ एन अननोन हीरो” में पुस्तक-प्रेम के संदर्भ में यह जिक्र किया है कि एक दौरे के दरम्यान गया सर्किट हाउस पहुँचते ही श्रीबाबू पढ़ना शुरू कर दिया। बाहर काफी लोग उनको माल्यार्पण के लिए जमा थे। उन्होंने एक स्थानीय बड़े नेता को भीड़ को समझाने के लिए भेजा कि वे उनसे नहीं मिल पायगें और ख्ुाद अध्ययनरत रहे।
विभिन्न विषयों का नवीनतम पुस्तक पढ़ने की उनमें विचित्र ललक थी। गंभीर अध्ययन के वक्त वे महत्वपूर्ण पंक्तियों को लाल पेन्सिल से रेखांकित भी करते थे। वे अपने संचित ज्ञान का सदुपयोग व्याख्यानों में उड़ेलते थे। उन्होंने अपने ज्ञान की विविधता एवं संपन्नता से राजनीति की गुणवत्ता को निखारा।
उन्होंने 1959 में ‘श्री कृष्ण सेवा सदन‘ मुंगेर को लगभग 18000 किताबों का अपना पुस्तकालय समर्पित करते समय कहा थाः ”ज्ञान की विभिन्न शाखाओं की ओर मेरी अभिरूचि क्रमशः बढ़ती गयी और जिस शाखा की ओर मेरी अभिरूचि गयी उससे संबंधित पुस्तकों का संग्रह करना मैंने शुरू कर दिया।“ वे उर्दू एवं बंगला साहित्य के भी गुणग्राही अध्येता थे। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ की काव्य कृतियों के बारे में उन्होंने कहा थाः “विश्वकवि की कृतियों के अध्ययन से मैं सिक्त हो जाता हूँ, मैं भींग जाता हूँ। उनमें एक सार्वभौम व्यापक अनुभूति की गहराई है, जिसमें कोई होशियार गोताखोर ही पैठ लगा सकता है।” उनके ज्ञान में आडंबर का बू बिल्कुल नहीं था, यह जीवन को उद्वात, सुसंस्कृत एवं कलात्मक सोंदर्य प्रदान करने का साधन था।
उनके चरित्र में बुद्ध की करूणा एवं गाँधीजी की नैतिकता का अद्भुत सम्मिश्रण था। ईर्ष्या एवं द्वेश उनकी प्रकृति में रंचमात्र भी नहीं था। इसी दुर्लभ गुण के कारण वे अजातशत्रु बने रहे। उनका उच्च आदर्श, साधनामय जीवन एवं उदार भावनाएँ एक अमूल्य धरोहर के तुल्य है जो हमेशा राष्ट्रप्रेम एवं जन सेवा-संकल्प के लिए अनुप्रेरित करते रहेगा।————————————–

prabhat-rai,BIHARपरिचय -: 

प्रभात कुमार राय
( मुख्य मंत्री बिहार के उर्जा सलाहकार ) 

पता: फ्लॅट संख्या 403, वासुदेव झरी अपार्टमेंट,
वेद नगर, रूकानपुरा, पो. बी. भी. कॉलेज,
पटना 800014 

email: pkrai1@rediffmail.com
energy.adv2cm@gmail.com
Mob. 09934083444

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49 COMMENTS

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