आदेश में कारण बताना अनिवार्य, क्योंकि यह कानून की आत्मा है : न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह

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अपराध के पहले “आपराधिक इरादे” का होना अपराध-शास्त्र का प्रमुख अंग : विजय कुमार पाण्डेय


आई एन वी सी न्यूज़
लखनऊ ,
सेना कोर्ट लखनऊ के न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह ने इंजीनियर कार्प्स के पूर्व नायक अनिल जोशी के मामले में कोर्ट मार्शल की कार्यवाही, कारण बताओ नोटिस एवं थल-सेनाध्यक्ष के आदेश दिनांक 14 मई 2004 को निरस्त कर दिया l  प्रकरण यह था किअनिल जोशी वर्ष 1988 में सेना में भर्ती हुआ, उसके ऊपर 6 जुलाई 2002 को आरोप लगा कि मो.जफर ने उसे देशी पिस्टल बगैर लाइसेंस के दी जो धारा-3 आर्म्स एक्ट, 1959 के तहत अपराध है, ए.ऍफ़.टी.बार एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि पहले इंकार करने के बाद अंत में याची ने अपराध स्वीकार कर लिया और उसे सेना द्वारा रैंक डाउन, तीन माह का सश्रम-कारावास और सेवा-मुक्त कर दिया गया l समरी आफ एविडेंस में जफर खान ने स्वीकार किया कि उसने मार्च 1995 में देसी पिस्टल खरीदी थी जिसे पैकेट में बंद करके अनिल जोशी को दिया था, जिसके लिए उसका जनरल कोर्ट मार्शल हुआ, याची ने 1 दिसम्बर के बयान में देशी पिस्टल देखने से इंकार किया लेकिन 2 जून 2002 को होने वाले एडिशनल समरी आफ एविडेंस में नायब सूबेदार रजिंदर सिंह ने याची द्वारा अपराध स्वीकृत आठ-पृष्ठीय लिखित दस्तावेज प्रस्तुत किया जिसे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया l

विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि लाईसेंस और बंद पैकेट में रखे सामान की जानकारी याची को नहीं थी जबकि अपराध के पहले “आपराधिक इरादे” का होना अपराध-शास्त्र का प्रमुख अंग है इसकी अनुपस्थिति में अपराध का किया जाना नहीं माना जा सकता यह व्यवस्था माननीय सुप्रीम कोर्ट ने मुरारीलाल झुनझुनवाला बनाम बिहार राज्य, रिछपाल सिंह मीणा, सीसी ई पेप्सी फूड्स लि., कलेक्टर आफ कस्टम्स बनाम सीताराम अग्रवाल में दी है, आगे न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह ने कहा कि यह तथ्य समझ से परे है कि जब एक बार एविडेंस हो गया था तो एडिशनल समरी आफ एविडेंस क्यों किया गया, कोर्ट मार्शल के दौरान केवल सेना रुल-180 का अनुपालन क्यों नहीं किया गया, जिसका जवाब न तो सेना दे पाई और न भारत सरकार, कोर्ट ने कहा किसी भी कार्य का युक्ति-युक्त कारण होना चाहिए जब कि इस मामले में तो उच्च-कोटि के सर्विस कैरियर वाले याची को गलत तरीके से फंसाने के लिए कार्यवाही की गई जो यू.टी.दादर-नगर हवेली, इद्दर और शेख जुम्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विपरीत है, कोर्ट ऐसा महसूस करती है कि पूरी कार्यवाही बदनाम करने के लिए की गई, आर्डर संक्षिप्त में क्यों पास किया गया जबकि सुप्रीम कोर्ट ऐसे आदेश को शून्य घोषित करता है क्योंकि कारण बताना ही कानून की आत्मा है l कोर्ट ने याची को अपराध-मुक्त करते हुए याची को उसकी रैंक, तनख्वाह एवं पेंशन इत्यादि संबंधित सभी लाभ छः माह के अन्दर देने को कहा l निर्णय अन्य मामलों में भी राहत प्रदान कराने में अन्य पीड़ित सैन्य-कर्मियों के लिए भी लाभकारी होगा l

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