आतंकवाद का विरोध और राजनीतिक दल

0
45

– घनश्याम भारतीय – 

पठानकोट और उरी के बाद पुलवामा में सैनिकों पर हुए हमले की पीड़ा देश के बच्चे-बच्चे की जुबान से फूट रही है। यह जम्मू-कश्मीर के इतिहास में सबसे बड़ा आतंकी हमला बताया जा रहा है। हमारी हिफाज़त करते-करते इतनी बड़ी संख्या में जिन जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी है, उनकी शहादत के सम्मान में आज देश भर के लोगों के सिर झुके हुए हैं। कैंडल मार्च और श्रद्धांजलि सभा के माध्यम से उठ रही नागरिकों की आवाज को किसी कीमत पर नज़र अंदाज नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह आवाज किसी एक जाति धर्म और संप्रदाय की नहीं अपितु उस सम्पूर्ण राष्ट्र की है जिसके आंगन में आतंकवाद का नाग फुफकार रहा है। जाने अनजाने में उसे दूध पिलाने के बजाय अब उसके विषैले फन कुचलने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार के हर कदम का सभी राजनीतिक दलों को न सिर्फ समर्थन करना चाहिए अपितु मिलकर इसका उत्तर भी ढूंढना चाहिए।
आतंकवाद वह घनघोर अंधेरा है जिसकी काली छाया जहां भी पड़ जाय वहां की सारी व्यवस्था छिन्न भिन्न हो जाती है। देश के नागरिकों में दहशत के माहौल के साथ अपनी ही सरकार के विरुद्ध गुस्सा पनपने लगता है। नागरिकों को लगता है कि सरकार दहशतगर्दी रोक पाने में नाकाम हो रही है। ऐसे मे सियासी संकीर्णता से बाहर निकलकर सभी दलों को उत्तर तलाशने के साथ साथ आतंकवाद के विरुद्ध सरकार के हर उस ठोस कदम का समर्थन करना चाहिए जिससे दहशतगर्दी पर काबू पाया जा सके।

कुछ दिन पहले पठानकोट, उरी और अब पुलवामा में हुआ आतंकी हमला इस बात का संकेत है कि आने वाला दिन अच्छा नहीं है। आज यदि हम चुप रहे तो हमारी आने वाली पीढियां इसका दुष्परिणाम भुगतने को विवश होंगी और हमे दुत्कारेंगीं भी। यदि इससे बचना है और अमन चैन लाना है तो जाति धर्म की ऊंची हो चली दीवार को तोड़ और राजनैतिक प्रतिबद्धता त्याग सबको राष्ट्र भक्ति का जुनून और जज्बा पैदा करना होगा। सिर्फ भाषणों से न शांति मिलेगी और न अमनचैन आएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां एक तरफ दुनिया के कई राष्ट्र प्रमुखों के साथ मैत्री वार्ता कर वैश्विक मित्रता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं वहीं आतंकी उस उम्मीद पर न सिर्फ पानी फेर रहे हैं अपितु मित्रता के सपने चकनाचूर कर रहे हैं। यह सपना पहले पठानकोट में, फिर उरी में और अब पुलवामा में टूट गया। इसी के साथ दहशतगर्दो के संरक्षक बने ‘दोगले’ पाकिस्तान का असली चेहरा भी रह रह कर सामने आ रहा है। अमन व शांति में खलल पैदा करके दहशत फैलाने की उसकी पुरानी और घिनौनी सोच भी उजागर हो रही है।

2 जनवरी 2016 को पठानकोट एयरबेस में घुसे आतंकवादियों को हमारे सैनिको ने न सिर्फ ढेर कर दिया था बल्कि अपना सैन्य नुकसान उठाकर भी पेंटागन जैसे हमले की पुनरावृत्ति की साजिश को बेनकाब भी कर दिया था। यह साहस सिर्फ भारतीय सेना ही दिखा सकती है। लेकिन इस बार पुलवामा में सेना इसलिए धोखा खा गयी क्योंकि उसे दुश्मन की साजिश का अंदाजा नहीं था। यदि अंदाजा होता तो इतनी संख्या में हमारे जवान किसी कीमत पर शहीद न होते और दुश्मनों की लाशें बिछी होतीं। लेकिन दुर्भाग्य कि ऐसा नहीं हुआ। आज आतंकवाद के साथ साथ पाकिस्तान के खिलाफ देश गुस्से में है और उसके विरुद्ध सैन्य कार्रवाई की मांग कर रहा है। इसी के साथ यह भी समझना चाहिए कि पाकिस्तान से ज्यादा दोषी हमारी आस्तीन के वे सांप हैं जिन्हें हम अपना हमदर्द समझने की लगातार गलती करते आ रहे हैं।अब उन्हें भी पहचानने का वक्त आ गया है।

जब पठानकोट में हमला हुआ था तब पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने तबाही की साजिश करने वाले दहशत गर्दों के खिलाफ कार्रवाई का भरोसा दिला कर आतंकवाद विरोधी अभियान में साथ रहने के संकेत दिए थे परन्तु पुलवामा की घटना के बाद पाक के मौजूदा प्रधानमंत्री का मौन कई सवाल खड़ा करता है। पूरे पांच दिन बाद वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान ने सबूत मांगते हुए जवाबी कार्रवाई की चेतावनी देकर एक नई बहस का मौका दे दिया है। यह अलग बात है कि आतंकवाद आज वैश्विक समस्या बन गया है। इसका खामियाजा दुनिया के तमाम देश भुगत रहे हैं। खुद पाकिस्तान भी इस समस्या से अछूता नहीं है। वह तो सर्वाधिक पीड़ित है। उसके यहां आए दिन इस तरह की वारदातें सामने आ रही हैं। आतंकवादियों के सामने वहां की जनता और सरकार असहाय बनी हुई है।

कहा जा सकता है कि जिसे सांप पालने का शौक हो, उसे उसके भयंकर विष का शिकार तो होना ही पड़ेगा। इसके विपरीत अमनपसंद भारत की जनता और यहां की सरकार सदा प्रेम और सद्भाव की पक्षधर रही है। दूसरी तरफ अहिंसा परमो धर्म: के सिद्धांत पर चलने वाले भारत के सब्र का बांध जब भी टूटा है, महाभारत भी हुआ है। पाकिस्तान शायद इसे भूल रहा है, तभी तो रह-रहकर घात करते हुए दोस्ती की पीठ में छुरा घोंप रहा है।
दूसरी तरफ, भौगोलिक दृष्टिकोण से भारत की सीमाएं ऐसे देशों से सटी हैं जो लगातार अशांति को बढ़ावा देते आ रहे हैं। चाहे वह पाकिस्तान हो या अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान, नेपाल, म्यांमार व चीन हो, सभी की कुदृष्टि भारत की ओर किसी न किसी रूप में लगी है। कोई सीमा रेखा पार कर घुसपैठ कर रहा है तो कोई दहशतगर्दो को भेजकर माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहा है।

जाहिर है आतंकवादी किसी भी तरह के अनुबंधों और समझौतों को नहीं मानते। खून-खराबा करना और दहशत फैलाना उनका कर्म, धर्म सब कुछ है। उनके साथ किसी भी तरह की नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए। अब पाकिस्तान को ही लें, जो अपने जन्म से लेकर अब तक उद्दंड बना हुआ है। बंटवारे के बाद अब तक भारत पाक के बीच मधुर संबंध स्थापित करने को लेकर हुए सारे प्रयास निर्थक साबित हुए हैं। माना जाता है कि भारत में आतंकवाद उसी का प्रतिफल है। चाहे वह 1965 का हमला हो या 1971 का युद्ध, या फिर कारगिल युद्ध। सबमें उसका दोगला चरित्र ही उजागर हुआ है। हम बराबर बात करते हैं और वह बात-बात पर घात करता है।पुलवामा हमले के पूर्व भी कई अन्य हमलों में भी पाकिस्तानी चाल ही सामने आई है।

पिछले दो दशक में हमलों और खून खराबे का दंश झेलते आए भारत के सामने आतंकवाद एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है। 12 मार्च 1993 का मुंबई सीरियल ब्लास्ट, 13 सितंबर 2001 को भारतीय संसद पर हमला, 24 सितंबर 2002 को गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हमला, 29 सितंबर 2005 को दिल्ली में सीरियल ब्लास्ट, 11 जुलाई 2006 को मुंबई ट्रेन धमाका हुआ, जिसमें देश को भारी जन धन हानि उठानी पड़ी है। फिर सन 2008 में लगातार तीन मामले सामने आए, जिसमें 13 मई को जयपुर ब्लास्ट 30 अक्टूबर को असम धमाका और 26 नवंबर को मुंबई हमले में तमाम जाने गई। इसके बाद रह रह कर होती रही वारदातों के क्रम में 2 जनवरी 2016 को पठानकोट और 18 सितम्बर 2016 को उरी हमले ने देश को झकझोर दिया। इन सभी हमलो में किसी न किसी रूप में पाकिस्तान का ही हाथ सामने आया। और अब पुलवामा में जवानों से भरी बस पर हुआ हमला मानवता व एकता के माथे पर कलंक का टीका है।

कहा जाता है कि पाकिस्तान में ऐसे आतंकी संगठन है, जिन्हें दोनों देशों के बीच शांति का प्रयास बिल्कुल पसंद नहीं है। इन संगठनों और पाकिस्तानी सरकार में मतभेद शांति के रास्ते में रोड़ा बनते हुए आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है, जो समूची मानवता के लिए खतरा है। कुछ साल पूर्व एक व्यक्ति की मौत पर पुरस्कार लौटाने वालों का जमीर आज पुलवामा में इतनी बड़ी शहादत पर मौन क्यों है? उनका साहस आयातित आतंकवाद पर शांत क्यों है? यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है। जाहिर सी बात है कि भारत को आतंकियों से जितना खतरा है उससे अधिक खतरा अपने यहां पल रहे गद्दारों से है। जिन्हें समय रहते पहचानने की आवश्यकता है। भारत सरकार को खुद अपनी आतंकवाद विरोधी रणनीति की समीक्षा करते हुए उसमें आवश्यक सुधार और सेना का मनोबल बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम भी उठाया जाना आवश्यक हो गया है। उससे भी ज्यादा सर्वदलीय सहयोग की आवश्यकता है। सभी को मिलकर उत्तर तलाशना चाहिए। अब यह भी जानना जरूरी हो गया है कि वे कौन से कारण हैं जिनके चलते कश्मीर का युवा आत्मघाती हमलावर बनता जा रहा है।

_________________

परिचय -:

घनश्याम भारतीय

स्वतन्त्र पत्रकार/ स्तम्भकार

राजीव गांधी एक्सीलेंस एवार्ड प्राप्त पत्रकार

संपर्क – :
ग्राम व पोस्ट – दुलहूपुर ,जनपद-अम्बेडकरनगर 224139
मो -: 9450489946 – ई-मेल- :  ghanshyamreporter@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.













LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here