आगे भी बरकरार रहेगा गठबंधन

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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 के रिजल्ट में जनता ने ऐसा फैसला सुनाया है, जिसके बाद विपक्षी दलों के लिए कुछ भी लिखने या समझने की ज्यादा गुंजाइश बची नहीं है. फिर भी ये तो लोकतंत्र की राजनीति है, यहां जनता कभी भी रंक को राजा तो किसी राजा को रंक बना देती है. यूं तो लगभग पूरे देश में बीजेपी और उसके सहयोगियों ने मिलकर वोटों की लड़ाई में विरोधी खेमे को तहस-नहस करके रख दिया है, लेकिन उत्तर प्रदेश का रिजल्ट हरेक के लिए चौंकाने वाला है. दरअसल, यहां समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने मिलकर एक गठबंधन बनाया है, जो कागजों पर अभेद माना जा रहा था, लेकिन वास्तविक लड़ाई में यह पूरी तरह फेल साबित हुए हैं.

इस गठबंधन में सीटों के बंटवारे और रिजल्ट का मूल्यांकन करने पर कई बातें साफ होती हैं. उत्तर प्रदेश की कुल 80 लोकसभा सीटों में से इस गठबंधन ने केवल 15 जीती हैं, जिसमें से 10 बहुजन समाज पार्टी और 5 समाजवादी पार्टी के खाते में आई हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी अकेले लड़ी थी तब भी उसके पांच सांसद ही जीते थे. इस बार गठबंधन में लड़े तब भी उसके पांच सांसद ही जीते. 
 
दूसरी तरफ पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का स्कोर शून्य था. इस बार गठबंधन की वजह से उसके खाते में 10 लोकसभा सीटें आई हैं. इस हिसाब से देखें तो BSP ने पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार फायदे में रही है. ऐसे में जेहन में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर गठबंधन में SP 5 और BSP 10 सीटें क्यों जीतीं. आइए इसके मायने समझें.

मायावती (Mayawati) ने सीटों के चयन में की होशियारी
2014 के लोकसभा और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सामने SP-BSP की कारारी हार हुई थी. इस हार के बाद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को समझ में आ चुका था कि अगर राजनीति में टिके रहना है तो BSP से हाथ मिलाना जरूरी है. इसके बाद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने बड़ा दिल दिखाते हुए मायावती (Mayawati) के पास गठबंधन का प्रस्ताव भेजा था. गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में इस गठबंधन की टेस्टिंग हुई, जिसमें सौ फीसदी रिजल्ट मिले. इसके बाद दोनों दलों ने साथ में लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया. इस गठबंधन को मजबूत करने के लिए इसमें राष्ट्रीय लोकदल को भी शामिल किया गया.

गठबंधन बनने के बाद सीटों के बंटवारे में मायावती (Mayawati) ने होशियारी दिखाई और गठबंधन में बैकफुट पर खेल रही SP इसका विरोध भी नहीं कर पाई. तय हुआ था कि BSP 38, SP 37 और आरएलडी 3 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. राहुल गांधी और सोनिया गांधी अमेठी और रायबरेली में गठबंधन अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी. 
 
SP को दी गईं शहरी सीटें
SP जिन 37 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी, उनमें से करीब 10 बड़े शहरों की सीटें हैं. SP जिन 37 सीटों पर चुनाव लड़ी उसमें वाराणसी, गाजियाबाद, लखनऊ, बरेली, झांसी, कानपुर, इलाहाबाद, फैजाबाद, गोरखपुर, फिरोजाबाद जैसी सीटें शामिल हैं. इन सीटों पर बीजेपी अपने सबसे बुरे दौर में भी अच्छा प्रदर्शन करती रही है. इस वक्त तो केंद्र के साथ राज्य में भी उनकी सरकार है. साथ ही उनके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ जैसा चेहरा भी है. ऐसे में इन शहरी सीटों पर जीतना असंभव जैसा कार्य है. वाराणसी और लखनऊ जैसी हाईप्रोफाइल सीट पर तो SP कोई दमदार उम्मीदवार भी नहीं दे पाई. इस तरह पहले से माना जा रहा था कि SP ये 10 सीटें तो पहले ही गंवा बैठी है. 

वहीं दूसरी तरफ मायवती की पार्टी के खाते में गई 38 सीटों की लिस्ट में केवल नोएडा और आगरा ही एकमात्र ऐसी सीट है, जहां शहरी मतदाता बहुतायत हैं. नोएडा और आगरा की सीटें लेने में भी BSP ने चालाकी दिखाई. आगरा में दलितों की बड़ी आबादी है, जबकि नोएडा मायावती (Mayawati) का गृहजिला है.

राजनीति के जानकार मानते हैं अगर यह गठबंधन आगे भी बना रहता है और इसी तरह से सीटों का बंटवारा करते हैं तो BSP को ज्यादा फायदा होता रहेगा. यह गठबंधन BSP के लिए ज्यादा फायदेमंद है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव में करारी हार के बाद खुद मायावती (Mayawati) ने कहा कि यह गठबंधन आगे भी बरकरार रहेगा. बदायूं, कन्नौज जैसी सीटों पर SP की हार दर्शाति है कि यहां BSP के वोट SP को ट्रांसफर नहीं हुए. ये दोनों ऐसी सीटें हैं जहां SP लंबे समय से वर्चस्व रहा है. 

जानकार मानते हैं कि अगर इन दोनों सीटों पर BSP का वोट मिलता तो SP आसानी से मोदी सूनामी को झेलकर निकल जाती. वहीं मैनपुरी सीट पर मुलायम सिंह यादव जैसे नेता महज एक लाख वोटों से जीत पाए हैं. ये रिजल्ट साफ संकेत देते हैं कि SP और BSP के वोट आपस में एक-दूसरे को ट्रांसफर होने के बजाय बीजेपी को चले गए.

मायावती (Mayawati) की जिद्द से गठबंधन में नहीं मिली कांग्रेस को एंट्री
2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम बताते हैं की करीब 10 ऐसी सीटें रहीं, जहां अगर कांग्रेस का वोट गठबंधन के प्रत्याशी को मिल जाता तो यहां बीजेपी नहीं जीत पाती. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) इस गठबंधन में कांग्रेस को भी लेना चाहती थी, लेकिन मायावती (Mayawati) जिद्द पर अड़ी रहीं. लखनऊ के पत्रकार बताते हैं कि आखिरी वक्त में कांग्रेस छह सीटों पर राजी हो गई थी, लेकिन मायावती (Mayawati) उन्हें अमेठी और रायबरेली के अलावा कोई और सीट देने को तैयार नहीं थी. इस वजह से यह गठबंधन नहीं हो सका. PLC



 

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