असंगठित जनता को लूटते संगठित व्यवसायी ?

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– निर्मल रानी –                              

लगभग दस बारह वर्ष पूर्व आपने मोबाईल नेटवर्क उपलब्ध करने वाली एयरटेल जैसी कई कम्पनीज़ के ऑफ़र्स में लाइफ़ टाइम ऑफ़र दिए जाने के बारे में ज़रूर सुना होगा। मेरे जैसे करोड़ों देशवासियों ने हर महीने मोबाईल टाक टाईम चार्ज करवाने की झंझट से बचने के लिए कंपनी के लाइफ़ टाइम ऑफ़र को स्वीकार करते हुए उसके द्वारा मांगे गए एक हज़ार रूपये भी दे दिए थे। इसके कुछ समय पश्चात् इस प्रकार का  लाइफ़ टाइम ऑफ़र स्वीकार करने वालों के मोबाईल फ़ोन पर उन कम्पनीज़ द्वारा इस आशय के सन्देश भेजे गए कि आप का  लाइफ़ टाइम कनेक्शन  2030 या किसी पर 2032 या 2033 या 34 आदि तक वैध रहेगा। इस प्रकार की जानकारी भी दी गयी। इस ऑफ़र की घोषणा व इसकी बिक्री को लगभग 10 वर्ष बीत चुके हैं। इसलिए हमें यह जानना ज़रूरी है कि क्या लाइफ़ टाइम ऑफ़र देने वाली सभी कम्पनीज़आज भी सही सलामत भारतीय बाज़ारों में क़ायम रहकर लाइफ़ टाइम ऑफ़र उपलब्ध कराने के अपने वचन पर क़ाएम हैं?वह सभी कम्पनीज़आज भी  भारतीय बाज़ारों में जीवित नज़र आ रही हैं? इसी प्रकार अपना मोबाईल पोर्ट करने अर्थात उसी पुराने नंबर को बरक़रार रखते हुए किसी अन्य मोबाईल नेटवर्क कंपनी में अपना कनेक्शन स्थानांतरित करने की व्यवस्था थी। वह नई  मोबाईल नेटवर्क कंपनी अपनी शर्तों के अनुसार तथा अपने निर्धारित रेट पर नेटवर्क की सेवाएं उपलब्ध कराती थीं। परन्तु भारतीय बाज़ार का उतार चढ़ाव तथा अपने घाटे मुनाफ़े का अपने तरीक़े से आंकलन करने के बाद गत दो दशकों में  नेटवर्क सेवाएं उपलब्धकरने वाली अनेक कम्पनीज़ विशाल भारतीय बाज़ार के क्षितिज पर पहले तो सितारों की तरह चमकीं और कुछ ही समय के बाद सितारों की ही तरह आँखों से ओझल भी हो गयीं।
                             
ऐसे में सवाल यह कि कोई भी नेटवर्क सेवाएं उपलब्ध कराने वाली कम्पनी भारतीय बाज़ार में टिकी रहे या भारतीय बाज़ार को छोड़ जाए। अथवा नेटवर्क सेवाएं उपलब्ध कराने वाली किसी दूसरी कम्पनी में उसका विलय हो जाए। परन्तु एक ग्राहक से कंपनी द्वारा किये गए उस वादे की वैधानिक स्थिति क्या होगी जिसके तहत उसने ग्राहक को लुभाया और तरह तरह की लालच देकर कनेक्शन लेने हेतु वातावरण तैयार किया ? गत दो दशकों के दौरान भारत में मोबाईल नेटवर्क मुहैय्या कराने वाली अनेक कम्पनीज़ आईं और चली गयीं। उनकी शर्तें व ग्राहकों के साथ किये गए उनके सभी क़रार भी धराशायी हो गए। अब न तो कोई लाइफ़ टाइम कनेक्शन रह गया है न ही पिछली कंपनी की शर्तों व रेट पर कोई नई कम्पनी सुविधाएं दे रही है। सब की अपनी अपनी शर्तें हैं आपको उसे मानना ही पड़ेगा। मोबाईल नेटवर्क मुहैय्या कराने वाली अनेक कम्पनीज़ के अपने अपने नियम हैं वे पोर्ट करने वाली किसी अन्य कंपनी के नियमों को मानने  के लिए बाध्य नहीं हैं। अब लाइफ़ टाईम ऑफ़र के नाम पर जनता से लूटे गए सैकड़ों करोड़ रुपयों की भी कोई जवाबदेही किसी भी कंपनी की नहीं है। अब यदि आप नियमित रूप से अपना मोबाईल कंपनी के पैकेज के अनुरूप प्रत्येक माह चार्ज करा रहे हैं फिर तो ग़नीमत है अन्यथा आपकी पैकेज की तिथि समाप्त होते ही आने व जाने वाली सभी कॉल्स कंपनी बंद कर देती है। और यदि इनकमिंग कॉल्स की व्यवस्था को जीवित रखना चाहते हैं तो प्रत्येक माह किसी कंपनी का 35 रु तो किसी का 23 रु प्रति माह के हिसाब से ज़रूर चार्ज करना पड़ेगा अन्यथा आपके हाथों का मोबाईल संचार सुविधाएं मुहैय्या करा पाने में पूरी तरह असमर्थ है। भले ही आप ने लाइफ़ टाइम सदस्य के रूप में किसी कम्पनी को एक हज़ार रूपये क्यों न दे रक्खे हों।
                           
यहाँ महीने के नाम पर 30 या 31 दिन गिनने की भी ग़लती मत करें। इन संगठित व्यवसायियों ने लूट खसोट की अपनी सुविधा के मद्देनज़र महीने का निर्धारण भी मात्र 28 दिनों का कर रखा है। गोया हर महीने दो  या तीन दिन के फ़ालतू पैसे महीने भर के पैकेज के नाम पर प्रत्येक ग्राहक से ठगे जा रहे हैं। हमें एक वर्ष में बारह महीने की यदि आय होती है तो इन कम्पनीज़ ने साल के 12 नहीं बल्कि 13 महीने या इससे भी कुछ अधिक निर्धारित कर दिए हैं। और असंगठित ग्राहक लूटा भी जा रहा है और तमाशबीन भी बना हुआ है। आपकी कॉल ड्राप होती है या सही सिग्नल नहीं मिलते अथवा बातचीत के दरम्यान काल काट जाती है अथवा रेकार्डेड यंत्र आपको कॉल कनेक्ट करने के बजाए और कुछ बोलता रहता है तो इसकी ज़िम्मेदारी भी कोई कम्पनी नहीं लेती सिवाए इसके की आप सम्बंधित कंपनी के ग्राहक सेवा केंद्र पर फ़ोन करें और यहाँ  बैठा कोई युवक या युवती आपको बातों बातों में ही अपनी मीठी व सुरीली भाषा से ही संतुष्ट कर दे और अंत में भी आप से यही पूछे कि और कोई सेवा बताएं या काल करने हेतु धन्यवाद कर आपकी शिकायत का ‘सुखद अंत’ कर दे। वैसे भी जबसे देश के सबसे बड़ा सरकारी संचार संस्थान बी एस एन एल की तरफ़ से सरकार ने जान बूझ कर आँखें फेरनी शुरू की हैं तभी से निजी कम्पनीज़ के हौसले बुलंद हो चुके हैं। अनेक निजी कम्पनीज़ के इस क्षेत्र से ग़ाएब हो जाने के बावजूद जिओ,एयरटेल,आइडिया,व वोडाफ़ोन जैसी कई कम्पनीज़ अपने कारोबार में निरंतर विस्तार भी कर रही हैं। यहाँ यह बताने की ज़रुरत नहीं कि इन कम्पनीज़ के स्वामी सरकार के मुखियाओं से अपने ‘मधुर सम्बन्ध’ रखते हैं लिहाज़ा इन्हें सरकार का पूरा संरक्षण भी हासिल होता है। इतना अधिक कि सरकार अपने संचार संस्थान बी एस एन एल के आधुनिकीकरण पर या इसके कर्मचारियों की मांगों पर गंभीरता पूर्वक ध्यान देने के बजाए  संचार क्षेत्र की निजी कम्पनीज़ के समक्ष आने वाली परेशानियों से शीघ्रता से निपटती है। जिओ के बाज़ार में उतरने के समय पूरे देश ने देखा कि किस प्रकार जिओ के विज्ञापन में बड़े पैमाने पर देश के प्रधानमंत्री के चित्र का इस्तेमाल किया गया। जैसे कि जिओ निजी संचार संस्थान न होकर कोई सरकारी संचार  संस्थान हो। इस बात को लेकर उस समय थोड़ा बहुत हो हल्ला भी हुआ था परन्तु जो कुछ करना या होना था वह हो चुका था। देश को जिओ पर सरकरी संरक्षण होने का सन्देश सफलतापूर्वक दिया जा चुका था। आज पूरे देश में व्यापक स्तर पर इसका फैला नेटवर्क जिओ पर सरकारी संरक्षण का सुबूत है।
                               
इसी प्रकार के और भी कई ऐसे निजी यहाँ तक कि कई सरकारी क्षेत्र भी ऐसे हैं जहाँ जनता के पैसों की मनमानी तरीक़े से लूट खसोट सिर्फ़ इसलिए की जाती है क्योंकि आम लोग असंगठित हैं,विभिन्न वर्गों में बंटे हुए हैं। जनता को अपने हितों से अधिक चिंता अपने धर्म व जाति,संस्कृति व भाषा आदि की सताने लगी है। और निःसंदेह जनता की इन्हीं कमज़ोरियों का फ़ायदा संगठित संस्थानों या संस्थाओं के लोग बड़ी ही आसानी से उठा रहे हैं।

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परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

 

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

 

संपर्क -: Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 4003 E-mail : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

 

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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