अवज्ञा अमरजीत गुप्ता की कविता

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Awagyaa amarjeet Guptaयहाँ पूजा जाता है लिँग…
और…
योनियोँ मेँ ठूँस दी जाती है.
मोम बत्तियाँ…
प्लास्टिक की बोतलेँ..
कंकड़ पत्थरण्ण्
लोहे की सलाखेँ तलक..

चीर दिया जाता है गर्भ..
करदी जाती है बोटी.बोटी
अजन्मे भ्रूण की..
और भालोँ पर उछाला जाता है दूध मुँहा नवजात..

दौड़ाया जाता है जिस्म कर नंगा सरेबाजार..
बता डायन खीँचली जाती है सलवार..
और बना देव दासी भोगा जाता है बार.बार..

और आप..
मुझे भाषा की श्लीलता अश्लीलता सिखाये जाने को मरेजा रहे है!

मर्यादा के नाम पर.
सच को ढाके.तोपे रखने की यह सांस्कृतिक विरासत रखे अपने पास…

विद्रोह मर्यादा मेँ बने रहना नहीँ..
मर्यादा येँ तोड़ देना है..
अवज्ञा अमरजीत गुप्ता
बेरोजगार
नई दिल्ली

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