अल्लामा इक़बाल पर कीचड़ उछालते कथित बुद्धीजीवी और अल्लामा इक़बाल का हिन्दुस्तान

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article about poet allama iqbal{ वसीम अकरम त्यागी ** } हंस के मई अंक में अशोक कुमार जी ने अल्लामा इकबाल पर खूब कीचड़ उछालने की कोशिश की वैसे ये कोई नया नहीं है कि किसी कथित बुद्धीजीवी ने उनकी हुब्बुल वतनी को ललकारा हो बलकि इससे पहले भी कई बार उन पर इस तरह के अनार्गल आरोप लग चुके हैं चाहे वे दैनिक जागरण के पत्रकार एस शंकर ने लगाये हों या भाजपा के राज्य सभा सांसद बलबीर पुंज, तरुण विजय ने । खैर अहम सवाल यह है कि पाकिस्तान बन चुका है, बिखर चुका है, जिसको पाकिस्तान जाना थे वे चले गये, जिनको भारत आना था वो भारत आ गये तो फिर इस तरह का शोधपरक लेख लिखने का औचत्य ही क्या था ? अब जब बात निकल ही गई है तो फिर दूर तक जानी चाहिये, लेखक को कोफ्त है कि पाकिस्तान में उनके जन्मदिवस पर बाकायदा अवकाश रहता है, वे वहां के राषट्रीय कवी हैं, इसमें तो कोई कोफ्त या गमजदा होने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि ऐसा तो भारत में भी होता है तुलसीदास, बाल्किमी जयंती, रविदास जयंती पर अवकाश रहता है। खैर बात पहले करते हैं अल्लाम इकबाल और उन आरोपों की जो अशोक कुमार ने लगाये हैं। मोहम्मद अल्लामा इक़बाल 9 नवंबर, 1877 को तत्कालीन भारत के स्यालकोट में पैदा हुऐ. उनके पूर्वज कश्मीरी ब्राह्मण थे, लेकिन क़रीब तीन सौ साल पहले उन्होंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया था और कश्मीर से पंजाब जाकर बस गए थे. उनके पिता शे़ख नूर मुहम्मद कारोबारी थे. इक़बाल की शुरुआती तालीम मदरसे में हुई. बाद में उन्होंने मिशनरी स्कूल से प्राइमरी स्तर की शिक्षा शुरू की. लाहौर से स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अध्यापन article about poet allama iqbal,3कार्य भी किया. 1905 में दर्शनशास्त्र की उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए वह इंग्लैंड चले गए. उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल की. इसके बाद वह ईरान चले गए, जहां से लौटकर उन्होंने द डेवलपमेंट ऑफ मेटाफ़िज़िक्स इन पर्शियन नामक एक किताब भी लिखी. इसी को आधार बनाकर बाद में जर्मनी के म्युनिख विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी. इक़बाल की तालीम हासिल करने की फितरत ने उन्हें चैन नहीं लेने दिया. बाद में उन्होंने वकालत की भी पढ़ाई की. वह लंदन विश्वविद्यालय में छह माह तक अरबी के शिक्षक भी रहे. (श्रोत कुल्लियात ऐ इकबाल) ये किसी से छिपा नहीं है कि मिर्जा असदुल्लाह खां गालिब के चले जाने के बाद इकबाल की शायरी ने ही लोगों के जहनों पर राज किया है। उनकी शायरी ऐसी शायरी है जिसमें हर उम्र को ढूंढा जा सकता है, मस्जिद और शिवालों को ढूंढ़ा देखा जा सकता है। उन्होंने प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य को भी अपनी नज़्मों में जगह दी. पहाड़ों, झरनों, नदियों, लहलहाते हुए फूलों की डालियों और ज़िंदगी के हर उस रंग को उन्होंने अपने कलाम में शामिल किया, जो इंसानी ज़िंदगी को मुतासिर करता है. उनकी नज़्म बच्चे की दुआ ‘लब पर आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी’  का आज भी आकाशवाणी से प्रसारण होता है, और मुस्लिम स्कूलों में इसे प्रार्थना के तौर पर रोजाना पढ़ा जाता है।

लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी

ज़िंदगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी

दूर दुनिया का मेरे दम से अंधेरा हो जाए

हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए

उनकी वतन से मौहब्बत और उसकी फिक्र को सिर्फ इन्हीं से मिसरों से समझा जा सकता है कि

वतन कि फिक्र नादां मुसीबत आने वाली है

तेरी बर्बादियों के मश्विरे हैं आसमानों में

न समझोगे तो मिट जाओगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदोस्तां वालो

तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में

या फिर

गुलामी में न काम आतीं हैं तदबीरें तकदीरें

जो हो जौक ऐ यकीं पैदा तो कट जाती हैं जंजीरें

इन मिसरो को पढ़कर भी अगर कोई अल्लामा इकबाल की वतन परस्ती पर शक करता है तो यकीनन वह अपने दिमागी दिवालियापन का सबूत दे रहा है या फिर उसकी परवरिश संघी घराने में हुई है जिसकी नजर में उनके अलावा कोई और राष्ट्र से प्रेम ही नहीं करता।article about poet allama iqbal,3

अब जरा बात करते हैं उस तराने की जिसके ऊपर लेखक ने यहां तक कह दिया कि इस गीत को आखिर राष्ट्र गीत का दर्जा किस लिये दे दिया गया ? दरअस्ल उनकी बातों से लगता है कि उन्हें इस गीत से नहीं बल्कि वे अल्लामा इकबाल की तरफ से पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। जिसकी वजह से उन्हें उनमें एक दूरदर्शी नहीं बल्कि एक कट्टर धर्म प्रचारक दिखाई देता है। अल्लामा इकबाल एक सच्चे मुसलमान थे लेकिन वे अपने जीवन के आखरी पल तक भी भारतीय ही रहे क्योंकि पाकिस्तान तो उनके जाने के 9 साल बाद अस्तित्व में आया था। तो फिर वे पाकिस्तान कैसे हो गये ?वे तो पैदा भी हिंदुस्तान में हुऐ और वफात भी यहीं पाई।

article about poet allama iqbalजिस तराना ऐ हिंदी पर अशोक जी ने अपनी भड़ास निकाली है पहले उसके जन्म को जानना भी जरूरी है क्योंकि उसके जन्म की भी एक रोचक कहानी है। बात दरअस्ल उन दिनों की है जब लाहौर जैसे शहर में युवाओं के मनोरंजन के लिये यंग्समैन क्रिश्चियन ऐसोसिएशन हुआ करती थी और आम तौर पर बुद्धीजीवी उसी में समय बिताने के लिये जाते थे एक बार लाला हरदयाल से क्लब के सचिव की कुछ कहासुनी हो गई जिससे नाराज होकर लाला हरदयाल ने यंगमैंस इंडिया ऐसोसिएशन की क्लब की स्थापना की। उस समय लाला हरदयाल उस समय गर्वनमेंट कॉलेज लाहौर में एमए के छात्र थे जिसमें अल्लामा इकबाल दर्शन पढ़ाते थे लाला हरदयाल के उनसे संबंध काफी अच्छे थे उन्होंने क्लब के उदघाटन के मौके पर अल्लामा इकबाल को अध्यक्ष के रूप में निमंत्रण दिया जिसे अल्लामा इकबाल ने सहर्ष कबूल किया किसी समारोह के उद्घाटन के इतिहास में यह पहला मौका था जब कार्यक्रम के अध्यक्ष ने अध्यक्षीय भाषण देने की बजाय कोई तराना सुनाया हो।

article about poet allama iqbal,1यह तराना पहली बार मौलाना शरर की पत्रिका इत्तेहाद में  16 अगस्त 1904 को इस टिप्पणी के साथ प्रकाशित हुआ “ एक क्लब की स्थापना हुई है जिसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि हिंदोस्तान के सभी समुदायों में मेल जोल बढ़ाया जाये ताकि वे सब एकमत से देश के विकास और कल्याण की और आकर्षित हों। इस समारोह में पंजाब के प्रसिद्ध और कोमल विचार वाले शायर शेख मुहम्मद इकबाल ने एक छोटी और पुरजोश कविता पढ़ी जिसने श्रोताओं के दिलों को जीत लिया और सबके आग्रह पर इसको समारोह के प्रारंभ और समापन पर भी सुनाया गया। इस कविता से चूंकी एकता के उद्देश्य में सफलता मिली अतः हम अपने पुराने दोस्त और मौलवी मौहम्मद इकबाल का शुक्रिया अदा करते हुऐ इत्तेहाद में इसे प्रकाशित कर रहे हैं ” (श्रोत योजना अगस्त 2007)

यह तराना सबसे पहले हमारा देश शीर्षक से और फिर हिंदोस्तां हमारा के शीर्षक से प्रकाशित हुआ, 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हूआ तो मध्यरात्री के ठीक 12 बजे हमारी संसद भवन समारोह में जन गण मण के इकबाल का यह तराना सारे जहां अच्छा हिंदोस्तां हमारा भी समुह में गाया गया। आजादी की 25 वीं वर्षगांठ पर सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय ने इसकी धुन ( टोन ) तैयार की। १९५० के दशक में सितार-वादक पण्डित रवि शंकर ने इसे सुर-बद्ध किया। जब इंदिरा गांधी ने भारत के प्रथम अंतरिक्षयात्री राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है, तो शर्मा ने इस गीत की पहली पंक्ति कही। 21 अप्रैल, 1938 को अल्लमा इकबाल ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उनकी मौत के बाद दिल्ली की जौहर पत्रिका के इक़बाल विशेषांक में महात्मा गांधी का एक पत्र छपा था, जिसमें उन्होंने लिखा था, डॉ. इक़बाल मरहूम के बारे में क्या लिखूं, लेकिन मैं इतना तो कह सकता हूं कि जब उनकी मशहूर नज़्म हिंदोस्तां हमारा पढ़ी तो मेरा दिल भर आया और मैंने बड़ौदा जेल में तो सैकड़ों बार इस नज़्म को गाया होगा. यह वही तराना है जिसके ऊपर अशोक कुमार जी ने हाय तौबा मचाई है और कहा है कि हम से मतलब मुसलमानों से है न कि सारे भारतीयों से, उन्होंने अल्लामा इकबाल को पाकिस्तान बनाने का समर्थक बताया है बाकायदा जिन्ना को लिखे उनके पत्र भी प्रस्तुत किये हैं ऐसे में सितंबर 2010 में दैनिक हिंदोस्तान में प्रकाशित दिल्ली विश्वविद्यालय में उर्दू के सहायक प्राध्यापक मोहम्मद काजिम के बयान को प्रासंगिक रूप से लिया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था “इकबाल के बारे में कहीं ऐसा कोई उल्लेख नहीं आता कि उन्होंने कभी ऐसा कोई बयान दिया था जिसमें मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र बनाने का समर्थन किया हो। तत्कालीन राजनीतिज्ञों ने पाकिस्तान स्थापना के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए इस बात का दुष्प्रचार किया कि उन्होंने पाकिस्तान बनाने की सोच का समर्थन किया है। इकबाल के बारे में यह दुष्प्रचार इसलिए किया गया क्योंकि वह सियालकोट से थे जहां मुसलमानों के लिए अलग देश बनाने की मांग की जा रही थी। इकबाल की शायरी को पूर्वाग्रह से मुक्त होकर फिर से पढ़ने की जरूरत है। इससे स्पष्ट होगा कि उनकी कृतियों में साम्प्रदायिकता नहीं बल्कि इंसानियत, प्रेमभाव और प्रकृति की तरफ झु़काव है। इकबाल ने अपनी शायरी सरल भाषा में लिखी और शायरी के लिए आसान विषय चुने”।article about poet allama iqbal,1

यहां पर मैं अशोक कुमार जी से कुछ प्रश्न रख रहा हूं जिस भारत विभाजन त्रासदी का जिम्मेदार जिन्ना और मुस्लिम लीग और इनके अनुसार अल्लामा इकबाल को ठहराया गया है क्या उसके लिये नेहरू पटेल और हिंदू महासभा जिम्मेदार नहीं थी ? क्या वे लोग बिल्कुल जिम्मेदार नहीं थे जो भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते थे\ हैं ? कैसी भौंडी बात है ये कि जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग की और उन्हें पाकिस्तान दे दिया गया अगर अल्पसंख्यकों की इतनी ही फिक्र थी तो भिंडरवाला को खालिस्तान क्यों नहीं दिया गया ? आंध्रा प्रदेश में तेलंगाना बनाने की मांग की जा रही है उसे क्यों नहीं स्वीकार किया गया ? कश्मीर में अलगाववादी ताकतें आये दिन प्रदर्शन करती रहती हैं वे भी तो यही चाहते हैं जो जिन्ना चाहते थे फिर उन्हें क्यों पृथक नहीं किया गया? उत्तर प्रदेश में पश्चिमी उत्तर प्रदेश को बांटने की मांग की जा रही है उसे क्यों नहीं बांटा जा रहा है ? क्या केवल इसलिये कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम अधिक हैं ? अगर इसका बंटवारा हो गया तो यहां पर इन्हीं की ही सरकारें होंगी ? वास्तविकता तो यह है कि विभाजन केवल इसलिये कर दिया गया क्योंकि यहां से मनुवादी मानसिकता बुद्धीजीवी ने ये सोचा कि मुसलमान तो पाकिस्तान जायेंगे और कुछ यहां रह भी गये तो उन्हें दंगे में सबक सिखी दिया जायेगा। अल्लामा इकबाल के बहाने आपने जो सवाल तराना ऐ हिंदी पर उठाये हैं क्या कभी वंदेमातरम पर भी इस तरह के प्रश्नचिन्ह लगाये कि वह सांप्रदायिकता फैलाने वाला गीत है वह एक धर्मविशेष के मानने वालों के खिलाफ बहुसंख्यक समाज को हिंसा सिखाता है ? तो फिर यह राष्ट्रीय गीत कैसे हो सकता है ? क्या आपने कभी ये सवाल उठाये कि भारत यदी पंथनिरपेक्ष है तो सड़क का उद्घाटन नारियल तोड़कर ही क्यों किया जाता है ? मगर आपको इन सबसे कोई दिक्कत नहीं है दिक्कत है तो सिर्फ इकबाल से। क्योंकि उन्होंने अपनी शायरी के जरिये मुस्लिमों को जागरुक करने की कोशिश की उन्होंने शिकवा लिखा, फिर चार साल बाद जवाब ऐ शिकवा लिखा मुस्लिम लिखी, जिसमें उन्होंने मुस्लिमों को ललकारा कि अपना अतीत याद करो कि तुम क्या थे और आज क्या हो गये हो। मैं अशोक जी से मालूम करना चाहता हूं कि इसमें उन्होंने गलत क्या किया ? क्या समाज को जागरुक करना अपराध है ? और अगर आपकी नजर में यह अपराध है तो फिर राजा राममोहनराय, स्वामीविवेकानंद, सर सैय्यद अहमद खां का आपकी नजरों में क्या अहमियत है ? क्या केवल सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा से ही आपकी दुश्मनी है क्योंकि एक सदी बाद भी इसके जवाब का कोई मतअला अभी तक किसी शायर की कलम से नहीं निकल पाया ?

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Wasim-Akram-Wasim-Akram-tyagi-वसीम-अकरम-त्यागी,वसीम अकरम त्यागी
युवा पत्रकार

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