अरब में नष्ट होती प्राचीन इस्लामी धरोहरें

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Dimolition in makkahतनवीर जाफरी**,,
इस्लाम धर्म के प्रवर्तक पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद का जन्म अरब की सरज़मीन पर हुआ तथा यहीं रहकर उन्होंने इस्लाम धर्म का ज्ञान तथा शिक्षा का प्रचार व प्रसार शुरु किया। इस्लाम से जुड़ी कुछ ज़रूरी हिदायतें जैसे कि नमाज़, रोज़ा, हज,ज़कात इत्यादि की शुरुआत भी इसी मक्का व मदीना जैसे सऊदी अरब के पवित्र व ऐतिहासिक शहरों से की गई। हज़रत मोहम्मद का अपना परिवार भी अधिकांश तौर पर इन्हीं शहरों में रहा करता था। ज़ाहिर है चंूकि हज़रत मोहम्मद को इस्लाम धर्म के लोग अपना आ$िखरी पैग़ंबर व इस्लाम का संस्थापक स्वीकार करते हैं। अत: हज़रत मोहम्मद के साथ-साथ उनके परिवार के सदस्यों व उनसे जुड़ी सभी यादगार चीज़ों जैसे उनके प्राचीन भवन, प्राचीन यादगार मस्जिदें, ब$गीचे, उनके उठने-बैठने, इस्लामी शिक्षा देने वाले व संपर्क में आने वाले तमाम ऐतिहासिक स्थल, उनसे संबंधिततमाम वस्तुएं आदि इस्लाम धर्म के मानने वालों के लिए दर्शनीय होती हैं। और आस्था की भावनाओं में डूबा हुआ कोई भी व्यक्ति ऐसी यादगार वस्तुओं व स्थलों को न केवल देखना चाहता है बल्कि उन्हें देखकर वह चूमने की कोशिश करता है, इन्हें छूना चाहता है तथा इन ऐतिहासिक वस्तुओं व स्थलों को अपने हाथों,चेहरे व शरीर के संपर्क में लाना चाहता है। और यही इस्लाम धर्म एक सर्वशक्तिमान अल्लाह के अतिरिक्त किसी दूसरे के समक्ष नतमस्तक होने की मनाही भी करता है।Dimolition in makkah1

पूरा इस्लामी जगत इस अति विवादित व संवेदनशील मुद्दे को लेकर दो भागों में विभाजित है। इसमें एक को हम वहाबी विचारधारा के नाम से जानते हैं। विशेषकर सऊदी अरब का शासक परिवार इसी वहाबी विचारधारा का अनुयायी है। यह विचारधारा पूरी स$ख्ती के साथ रूढ़ीवादी इस्लामी शिक्षाओं का पालन करने का संदेश देती है व पूरे मुस्लिम जगत से भी इसका पालन करने की उम्मीद करती है। $खासतौर पर इस विषय पर कि इस्लाम के मानने वाले लोग अल्लाह के सिवा किसी अन्य के आगे न तो झुकें, न सजदा करें, न उसे चूमने या छूने की कोशिश करें। और जहां तक संभव है वहाबी विचारधारा के यह सऊदी शासक अपनी इस विचारधारा पर अमल करने व कराने तथा इनके लिए रास्ता हमवार करने की पूरी कोशिश भी करते हैं। इस वहाबी वर्ग को इस्लामी जगत में रूढ़ीवादी व कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा के रूप में देखा व समझा जाता है। इस्लाम में 73 समुदाय हैं। वहाबी के अतिरिक्त शेष 72 समुदाय जिनमें बरेलवी, शिया, हन$फी, सू$फी, अहमदिया, ख़ोजा, बोहरा जैसे अन्य समुदाय मुख्यतय: शामिल हैं। यह सभी समुदाय भी वहाबियों की तरह एक अल्लाह को ही सर्वोच्च व सर्वशक्तिमान मानते हैं। इसके अतिरिक्त यह सभी समुदाय $कुरान, रोज़ा-नमाज़, हज-ज़कात आदि को भी मानते हैं तथा इनपर अमल करते हैं। हां इनके अमल करने के तौर-तरी$कों में ज़रूर कुछ $फकऱ् है। परंतु अल्लाह को तो सभी 73 वर्गों के लोग  सर्वोच्च ही मानते हैं। इन 72 वर्गों के अनुयायी अल्लाह के बाद अपने रसूल, $खली$फाओं,इमामों, उनके परिवार के लोगों,उनसे जुड़े यादगार स्थलों, उनकी प्राचीन इबादतगाहों व रिहायशी स्थानों जैसी सभी चीज़ों से अपना हार्दिक व भावनात्मक संबंध भी रखते हैं।

और यही भावनात्मक लगाव आस्था का रूप धारण कर लेता है। परिणामस्वरूप इनसे लगाव रखने वाला कोई भी व्यक्ति उन्हें चूमना, देखना तथा प्राय: उसके आगे श्रद्धापूर्वक नतमस्तक भी होना चाहता है। उदाहरण के तौर पर इरा$क,ईरान, पाकिस्तान, भारत, अ$फ$गानिस्तान, तुर्की,सीरिया, जॉर्डन, $िफलीस्तीन जैसे और कई देशों में इस्लाम से जुड़ी ऐसी तमाम ऐतिहासिक धरोहरें हैं जिनका संबंध इस्लामी जगत के प्रमुख इमामों, संतों, $फ$कीरों, $खली$फाओं आदि से है। पूरी दुनिया का मुसलमान ऐसी जगहों पर आता-जाता रहता है तथा अपनी श्रद्धा व आस्था के अनुसार इन जगहों पर नतमस्तक होता है मन्नतें व मुरादें मांगता है तथा अपनी श्रद्धा के पुष्प अर्पित करता है। ऐसा करने वाले समुदायों के लोग अपनी इन गतिविधियों को इस्लामी गतिविधियों का ही एक हिस्सा मानते हैं तथा ऐसा करना उनकी नज़रों में पूरी तरह इस्लामी कृत्य स्वीकार किया जाता है। जबकि ठीक इसके विपरीत वहाबी विचारधारा अल्लाह को सजदे यानी नमाज़ पढऩे के सिवा किसी भी अन्य स्थल, दरगाह, रौज़ा,मक़बरा या इमामबारगाहों आदि में चलने वाली गतिविधियों जैसे मजलिस,ताजि़यादारी,नोहा, मातम, $कव्वाली, नात आदि चीज़ों को $गैर इस्लामी मानते हैं तथा इसे शिर्क(अल्लाह के साथ किसी अन्य को शरीक करना)की संज्ञा देते हैं। दुनिया के अन्य देशों में वहाबी विचारधारा का प्रशासनिक मामलों में उतना प्रभाव नहीं जितना कि सऊदी अरब में है क्योंकि कट्टरपंथी वहाबी विचारधारा का जन्म ही सऊदी अरब में हुआ।

यही वजह है कि सऊदी शासक से लेकर वहां के अमीर लोग, अधिकांश प्रशासनिक अधिकारी, औद्योगिक घराने,उच्च व्यवसाय से जुड़े लोग आमतौर पर वहाबी विचारधारा के मानने वाले हैं। लिहाज़ा सऊदी अरब में इस विचारधारा के लोग अपनी मजऱ्ी के मुताबिक़ जब और जिस बहाने से चाहते हैं प्राचीन इस्लामिक धरोहरों को नष्ट करने से बाज़ नहीं आते। पूरा विश्व का प्रत्येक धर्म व समुदाय जहां अपनी प्राचीन यादगार ऐतिहासिक धरोहरों को संभालने तथा इन्हें सुरक्षित रखने पर ज़ोर देता है वहीं सऊदी अरब के वहाबी शासकों द्वारा गत् बीस वर्षों के भीतर इस्लाम, हज़रत मोहम्मद व उनके परिवार के सदस्यों से जुड़ी तकऱीबन 95 प्रतिशत यादगारों को ध्वस्त किया जा चुका है। हालांकि दुनिया को दिखाने के लिए यह सऊदी शासक अपने मुख्य एजेंडे को ज़ाहिर नहीं करते और इन ऐतिहासिक स्थलों को गिराने के लिए हज यात्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं तथा दुनिया के मेहमानों के लिए व्यवस्था किए जाने की बात करते हैं। परंतु ह$की$कत में इनका गुप्त एजेंडा यही रहता है कि हज़रत मोहम्मद व उनके परिवार से संबंधित मकानों, मस्जिदों तथा अन्य यादगार स्थलों को केवल इसलिए मिटा दिया जाए ताकि वहां जाकर दुनिया के लोग नतमस्तक न हों, उन जगहों पर सजदा न करें व उन स्थानों को चूमें नहीं तथा इन ऐतिहासिक पवित्र स्थलों से अपने भावनात्मक लगाव का इज़हार न कर सकें। गोया वहाबियत अपनी धार्मिक रूढ़ीवादिता व पूर्वाग्रह के अनुसार ही दुनिया के अन्य मुसलमानों से भी अनुसरण कराना चाहती है।

सऊदी अरब विशेषकर मक्का व मदीना के हज सथल के चारों ओर होने वाली तोडफ़ोड का एक और कारण यह भी है कि वहाबी शाही घरानों से संबंधित तमाम लोग हज स्थल के चारों ओर गगनचुंबी इमारतें, पांचसितारा लग्ज़री होटल, शॉपिंग कॉम्पलेक्स आदि का निर्माण करा रहे हैं। यह सब भी हज यात्रियों की सुविधाओं तथा विदेशी पर्यटकों की मेहमानवाज़ी के नाम पर किया जा रहा है। परंतु इस विकास की बुनियाद में उन ऐतिहासिक धरोहरों को द$फन किया जा रहा है जो सीधे तौर पर हज़रत मोहम्मद व उनके परिवार के लोगों से जुड़ी हैं तथा जिन्हें दुनिया का मुसलमान सऊदी अरब में हज के दौरान आने पर ढूंढना व देखना चाहता है। हालंाकि इन ऐतिहासिक धरोहरों को ध्वस्त करने का काम कोई नया नहीं है। पवित्र काबा का पुनर्निमार्ण, अब्दुल्ला बिन ज़ुबैर व मक्का के गवर्नर रहे हजाज बिन युसु$फ के समय में प्राचीन भवन को तोडक़र किया गया। उसके पश्चात $खली$फा अब्दुल मलिक बिन मरवान के निर्देशों पर पुन: कई यादगार धरोहरों को तोड़ दिया गया। उमर बिन क़त्ताब के समय में हज़रत मोहम्मद की मुख्य मस्जिद तोड़ी गई तथा इसे पुन: निर्मित किया गया। और इस प्रकार ऐतिहासिक यादगार धरोहरों को समाप्त किए जाने का सिलसिला आज तक जारी है। हद तो यह है कि अरब के इन शासकों ने हज़रत मोहम्मद की पत्नी हज़रत ख़दीजा का भी घर बुलडोज़रों से गिरवा दिया तथा उस स्थान पर सार्वजनिक शौचालय बनवा दिया गया। हज़रत मोहम्मद द्वारा अपनी बेटी $फातिमा को दहेज में दिया गया बग़ीचा जिसे बा$ग-ए-$िफदक के नाम से जाना जाता था उसे भी कई वर्ष पूर्व ढहाया जा चुका है तथा इस पर भी इमारतें बनाई जा चुकी हैं।

सवाल यह है कि ईश निंदा $कानून के समर्थक, आपे्रशन लाल मस्जिद के विरोधी , सलमान रुश्दी के विरुद्ध $फतवा जारी करने वाले, डेनमार्क में हज़रत मोहम्मद का कार्टून प्रकाशित करने वाले अ$खबार का विरोध करने वाले,समय-समय पर इस्लाम विरोधी शक्तियों के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाने वाले तथा बाबरी मस्जिद विध्वंस का विरोध करने वाले इस्लामी जगत के लोग इस्लाम संबंधित बुनियादी व यादगार ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा करने के लिए मिलकर आवाज़ें क्यों नहीं उठाते? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वहाबी विचारधारा सऊदी अरब में शासन में होने के चलते विकास व हजयात्री सुविधाओं के नाम पर अपने एजेंडे को लागू करती रहती है। परंतु यही विचारधारा जब अरब से बाहर निकलती है तो अ$फ$गानिस्तान के बामियान में तोपों से शांतिदूत महात्मा बुद्ध की मूर्तियां तोड़ती नज़र आती है तथा पाकिस्तान में यही विचारधारा इमामबाड़ों, दरगाहों, धार्मिक जुलूसों व मस्जिदों में आत्मघाती हमले कराती तथा बेगुनाह लोागों की हत्याएं करती नज़र आती है। पूरी दुनिया के मुसलमानों को इस विचारधारा के विरुद्ध संगठित होने की ज़रूरत है। अन्यथा अरब में नष्ट होती प्राचीन इस्लामिक धरोहरों की ही तरह यह विचारधारा कहीं इस्लाम धर्म के अस्तित्व के लिए भी घातक न साबित हो।

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Tanveer Jafri**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Contact Email : tanveerjafriamb@gmail.com
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

8 COMMENTS

  1. mohtaram…aap ka mazmoon firqa wariyat ko farog dene wala aur maslaki asbiyat se pur hai…aap ne jo kuch bhi wahabiyat ke talluq se bhadas nikali hai woh sarasar jhoot aur propegande par mabni hai… aap ke mazmoon se keya yeh na samjha jae ki aap tamir o taraqqi ke virodhi hain aur makka madina jaise itihasik shahar ko duniya ka sab se pichda hua shahar dekhna chahte hain..tajjub hai aap ki aqal par aap ki soch par…aap keyon anhi sochte ki agar saudi govt ne yeh sare tamiri kaam nahi kiye hote to keya aaj hajj aur umre ke liye yeh sari facilities miltin.. keya hajj aur umra aasani se aur bagair kisi diqqat ke mumkin ho pata…poore duniya se musalmaan yahan aate hain..keya itni badi tadad ek saath manasik e hajj anjaam de pati??? agar aap apni gumrahi aur shirk o bidat ki duniya main magan rahna chahte hain to shauq se rahen magar sahi islam ko wahabiyat ka naam de kar us ke khilaf jhoota propeganda karke sari duniya main use badnaam karne ki koshish na kare ?? bomb kaun phodta hai aur sari duniya ke liye kis ka aatankwad khatra hai yeh aaj sab jaante hain…aap apni jankari durust karen..nahaq musalmanon ko is ka ilzam na den…

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