अमेरिका के लिए खौफ़ का सबब बने वामदल!

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रिचर्ड अलेक्जेंडर

वाशिंगटन। भारत में 15वीं लोकसभा के लिए हो रहे आम चुनावों पर अमेरिका की भी खास नजर है। आम चुनावों से संबंधित सभी खबरें यहां की मीडिया में छाई हुई हैं। सियासी दलों के शक्ति प्रदर्शन से लेकर, आरोप-प्रत्यारोप ही राजनीतिज्ञों पर जूते फेंके जाने की खबरों को भी यहां भारतीय मीडिया की  तर्ज पर परोसा जा रहा है। इतना ही नहीं भारत में बनने वाली अगली केंद्र सरकार किस सियासी गठबंधन की होगी, इस पर भी अमेरिका की पूरी नजर है, क्योंकि पिछले पांच सालों में अमेरिका के साथ सभी समझौतों का भविष्य आने वाली सरकार के हाथ में होगा।

अर्थ जगत में भी भारतीय चुनावों में खासी दिलचस्पी दिखाई जा रही है। भारत-अमेरिकी परमाणु समझौते के कारण यहां की कंपनियां आगामी प्रधानमंत्री के रूप में अर्थ शास्त्री मनमोहन सिंह को ही देखना चाहती हैं। इन कंपनियों का मानना है की मनमोहन सिंह ने भारत-अमेरिकी परमाणु समझौता करके जहां भारत के लिए विकास के नये आयाम स्थापित किए हैं, वहीं अपनी कुशलता से विदेशी कंपनियों को भी खासा प्रभावित किया है। अमेरिका के साथ कांग्रेस और भाजपा के रिश्ते जगजाहिर हैं। ऐसे में अगर ये दोनों बड़े गठबंधनों से कोई भी केंद्र में अपनी सरकार को बनाने में कामयाब हो जाता है तो अमेरिका को कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन अमेरिका के साथ-साथ पूरा ईसाई जगत, भारत में हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा ईसाइयों पर किए जा रहे जानलेवा हमलों से भाजपा की काफी किरकिरी हुई है। ऐसे में अमेरिका की पहली पसंद कांग्रेस ही है।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टियों का अमेरिका के प्रति विरोध परमाणु समझौते के मुद्दे पर पहले ही खुलकर सामने आ चुका है। अगर ऐसे में वामदल केंद्र में अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो जाते हैं तो अमेरिका को पाकिस्तान-अफगानिस्तान समस्या के साथ-साथ श्रीलंका मसले और हिन्द महासागर के लुटेरों से निपटने के लिए भारत की मदद भी खटाई में पड़ सकती है।  वामदल सत्ता में आते ही परमाणु नीति की दोबारा समीक्षा के साथ-साथ दोनों देशों के सैन्य संबंधों पर पुनर्विचार भी करेंगे। इसलिए वाम दल अमेरिका के लिए खौफ का सबब बन गए हैं।

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