अमरनाथ यात्रा : साम्प्रदायिक सौहार्द की भी मिसाल

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– निर्मल रानी –

                     
कश्मीर के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों से होकर गुज़रने वाली श्री अमरनाथ यात्रा को हिंदुओं के प्रमुख तीर्थों में माना जाता है. अमरनाथ गुफा में प्रकृतिक रूप से निर्मित बर्फ़ के शिवलिंग की पूजा की जाती है। प्रत्येक वर्ष देश विदेश से लाखों श्रद्धालू अमरनाथ  गुफा में बनने वाले बर्फ के शिवलिंग के दर्शन हेतु अमरनाथ यात्रा पर जाते हैं. परन्तु इस गुफा की खोज के पीछे की कहानी न केवल काफ़ी दिलचस्प है बल्कि यह कहानी भारतीय हिन्दू मुस्लिम सद्भाव से संबंधित एक स्वर्णिम इतिहास भी लिखती है। श्राइन बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़ इस गुफा की खोज एक मुस्लिम गरड़िया चरवाहे ने की थी. कहा जाता है कि अमरनाथ गुफा की खोज करने वाले मुस्लिम गड़रिया का नाम बूटा मलिक था। एक बार भेड़ बकरियां चराने के दौरान बूटा मलिक की भेंट एक साधू से हो गई और दोनों की दोस्ती हो गई।' 'एक बार जब बूटा को सर्दी लगी तो वो उस गुफा में चले गए। गुफा में ठंड लगने पर साधू ने उन्हें एक कोयले से भरी एक कांगड़ीदी।

 घर जाकर जब उसने देखा तो वह कोयले की कांगड़ी सोने की कांगड़ी में तब्दील हो चुकी थी ।' यह देखने के बाद जब आश्चर्यचकित बूटा मलिक उस साधू का आभार व्यक्त करने के लिए उस गुफा में पहुंचा तो उस गुफा में वह साधू नहीं मिला. परन्तु जब उसने उस गुफा के भीतर  जाकर देखा तो बर्फ से निर्मित सफ़ेद शिवलिंग चमक रहा था. इसकी सूचना जब उसने पास पड़ोस के हिन्दू भाइयों को दी तो वे वे गुफा में बने बर्फ़ के शिवलिंग को देखकर आश्चर्यचकित हो गए। इसके बाद से इस बर्फ़ानी शिवलिंग के दर्शन की शुरुआत हुई और अमरनाथ यात्रा यहीं से शुरू हुई। बताया जाता है कि गुफा के नज़दीक ही बटकोट नामक स्थान में बूटा मालिक के वंशज आज भी रहते हैं. बटकोट में मलिक मोहल्ला है और वहां 11 परिवार रहते हैं वे सभी बूटा मलिक के ही वंशज हैं।  बताया जाता है कि गुफा की खोज 1850 में हुई और यात्रा शुरू होने के बाद मलिक के परिवार वाले ही वहां की देखभाल करते थे. अमरनाथ के आस पास उस समय में तीन समुदाय के लोग रहा करते थे। एक कश्मीरी पंडित दूसरा मुस्लिम मलिक परिवार और तीसरा महंत परिवार। ये तीनों समुदाय के लोग ही मिलजुलकर छड़ी मुबारक की रस्म अदा करते थे। अमरनाथ यात्रा को लेकर विधानसभा में बिल भी पारित हुआ था, जिसमें मलिक परिवार का भी वर्णन है। हालांकि बाद में साल 2000 को एक बिल पारित हुआ था जिसके द्वारा मलिक परिवार को बाहर निकाल दिया गया. पहले परिवार को एक तिहाई हिस्सा मिलता था, परन्तु  अब ऐसा नहीं है. श्राइन बोर्ड के गठन के बाद उस परिवार को बेदख़ल कर दिया गया।

                                       
अब इसे महज़ एक इत्तेफ़ाक़ कहा जाए या भारतीय संस्कृति की जड़ों में समाहित अनेकता में एकता का एक जीवंत उदाहरण कि लाख साम्प्रदायिक तनाव,आतंकवादियों की धमकी तथा सीमापार की नापाक कोशिशों के बावजूद आज तक अमरनाथ यात्रा में मुस्लिम समुदाय के हस्तक्षेप तथा उनकी सहभागिता को नकारा नहीं जा सका। बल्कि यह कहा जा सकता है कि इस यात्रा में मुस्लिम भाइयों का सहयोग,दख़ल व उनकी भूमिका दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। जब आप यात्रा के लिए पठानकोट-जम्मू मार्ग पर बढ़ें तो कई ऐसे स्टाल,लंगर व छबीलें मिलेंगी जो मुसलमान भाइयों द्वारा अमरनाथ यात्रियों की सुविधा हेतु संचालित की जाती हैं। मुस्लिम समाज के लोग ही न केवल इसका पूरा खर्च उठाते हैं बल्कि स्वयं सेवक के रूप में 24 घंटे अपनी सेवाएं भी देते हैं। तीर्थ यात्रा पर जाने वाले यात्रियों को यह तो ज़रूर मालूम है कि अमर नाथ यात्रा के रस्ते में यहाँ तक कि पवित्र गुफा के बिल्कुल क़रीब तक अनेक छोटे बड़े शानदार लंगर भंडारे आयोजित किये जाते हैं। कई अस्थाई  विश्राम गृह भी टेंटों व तंबुओं में लगाए जाते हैं। परन्तु इन सभी लंगरों,भंडारों व विश्राम गृहों के निर्माण,उनके भण्डारण व रखरखाव में भी मुसलमान भाइयों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यही लोग इससे संबंधित सामग्री का पूरे वर्ष सुरक्षित रखरखाव करते हैं। मुस्लिम लोगों द्वारा इन सामग्रियों के वर्ष भर भण्डारण हेतु गोदाम आदि उपलब्ध कराए जाते हैं। इतना ही नहीं पूरे वर्ष इन सामानों की रक्षा का भी ज़िम्मा लिया जाता है। भंडारा आयोजकों के पहुँचने से पहले यही कश्मीरी मुस्लिम उन कैम्पों के लिए आधार तैयार करते हैं तथा यात्रा की शुरूआत  से लेकर समापन तक सभी लंगरों,भंडारों व विश्राम गृहों के सुचारु संचालन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
                                 
सभी तीर्थ यात्रियों के साथ भी स्थानीय कश्मीरियों का व्यवहार अत्यंत प्रेम,सहयोग व श्रद्धापूर्ण रहता है। अनेक ऐसे तीर्थ यात्री भी अमरनाथ जाते हैं जो कि शारीरिक कारणों की वजह से अमरनाथ गुफा तक पैदल नहीं जा सकते। उनकी सुविधा हेतु ख़च्चर उपलब्ध कराना या अपनी पीठ पर लादकर यात्रियों को गुफा तक सुरक्षित पहुँचाने आदि का कार्य पूरी ज़िम्मेदारी के साथ इनके द्वारा पूरा किया जाता है। आपको यह जानकार भी आश्चर्य होगा कि धर्म,आस्था व विश्वास में भिन्नता के बावजूद अनेक कश्मीरी मुसलमानों का यह मानना है कि अमरनाथ यात्रा के दौरान उनकी मांगी गई मन्नतें पूरी होती हैं। वे अपने को यह कहकर और भी सौभाग्यशाली बताते हैं कि एक हिन्दू तीर्थ यात्री तो एक वर्ष में यात्रा के दौरान केवल एक ही बार बर्फ़ानी बाबा के दर्शन करते हैं परन्तु हम लोग तो ऐसे क़िस्मत वाले हैं कि यात्रा शुरू होने के बाद हमें भोले बाबा लगभग रोज़ाना अपने पास बुलाते हैं। देश में अनेक तीर्थ यात्री आपको ऐसे भी मिलेंगे जिन्होंने इसी यात्रा के दौरान ऐसे ही कई कश्मीरी मुसलमानों से दोस्ती गाँठ ली जो फ़ोन और वाट्सएप आदि के माध्यम से स्थाई दोस्ती का रूप ले चुकी है। यहाँ तक कि अनेक तीर्थ यात्रियों से इनके पारिवारिक रिश्ते भी क़ायम हो चुके हैं। सेना व राज्य पुलिस के भी अनेक मुसलमान लोग तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा व सुविधा हेतु तैनात किये जाते हैं।सैकड़ों मुस्लिम डॉक्टर अस्वस्थ होने वाले यात्रियों के उपचार में सेवारत रहते हैं।

                                 
यह यात्रा हिन्दू धर्म से जुड़ी तीर्थ यात्रा तो ज़रूर कही जाती है परन्तु इस में तीर्थ यात्री के रूप में शरीक होने के लिए पूरे देश से अनेक मुस्लिम तीर्थ यात्री भी पूरी श्रद्धा के साथ आते हैं। प्रत्येक वर्ष अमरनाथ यात्रा रजिस्ट्रेशन में सैकड़ों मुसलमानों के नाम देखे जा सकते हैं।मुसलमान भाइयों के हवाले से ही अनेक ऐसे समाचार भी आते रहते हैं जिससे यह पता चलता है कि अनेक यात्री अपनी मन्नतें पूरी करने या मन्नतें मांगने के लिए भी बाबा बर्फ़ानी के दर्शन करने हेतु अपने हिन्दू दोस्तों के साथ प्रत्येक वर्ष आते हैं। कोई मुसलमान यह कहता सुनाई देता है कि अमरनाथ यात्रा के बाद उसे नौकरी मिल गयी तो कोई अपने कारोबार में ख़ैरो बरकत की बात करता है। यह धरातलीय वास्तविकताएं इस बात का जीता जगता प्रमाण हैं कि राजनीतिज्ञों द्वारा धर्म के नाम पर देश की फ़िज़ा ख़राब करने के चाहे जितने प्रयास किये जाएं,हिन्दू मुस्लिम के बीच नफ़रत की खाई कितनी ही गहरी करने की कोशिश क्यों न की जाए परन्तु भोले बाबा बर्फ़ानी के प्रति सभी धर्मों के लोगों का आकर्षण तथा अपने सभी भक्तों व दर्शनार्थियों पर उनकी समान कृपा दृष्टि इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए काफ़ी है कि श्री अमरनाथ यात्रा केवल हिन्दू धर्म से जुड़ी एक धार्मिक यात्रा ही नहीं है बल्कि यह यात्रा साम्प्रदायिक सद्भाव की भी एक अनूठी मिसाल पेश करती है।

 

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परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

 

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

 

संपर्क -: Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 4003 E-mail : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

 

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

 

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