अभी तो मतलब साफ है जैसा बोओगे वैसा पाओगे

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– संजय रोकड़े – 

हाल ही में मेरी नजर में दो खबरें आई है। पहली ये कि हमने पाकिस्तान के कबड्ड़ी खिलाडिय़ों को भारत में खेलने आने से मना कर दिया है और दूसरी ये कि कनाड़ा ने हमारे केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के एक पूर्व महानिरीक्षक टीएस ढिल्लन को अपने देश में प्रवेश नहीं करने दिया। वाजिब बात है कि हमारे अफसर को कनाड़ा में प्रवेश नही करने देने पर हमें जोर का धक्का लगा होगा और लगना भी चाहिए , विदेश में भारतीयों की साख का जो सवाल है। लेकिन हमने जब पाकिस्तान के कबड्डी खिलाडिय़ों को मना किया तब हमें इस बात का जरा भी इल्म नही रहा होगा कि ये हम क्या कर रहे है और क्यों कर रहे है। उस समय तो इस तरह का निर्णय लेने वाले नेताओं को खुद पर फक्र हो रहा होगा कि उनने जो कदम उठाया है वह किसी एरे -गैरे के बस कि बात नही है। निश्चय ही एक राष्टवादी और सच्चे देशभक्त का भाव भी जगा होगा, जगना भी चाहिए क्योंकि यहां हमारा अपमान नही हुआ हमने किसी का अपमान किया है। न ही हमारे मान-सम्मान को ठेस पहुंची और न ही हमारी साख खराब हुई उल्टे हमने यह कृत्य करके किसी को जलील ही किया। बेशक हमारे इस फैसले पर गर्व का अनुभव महसूस होना चाहिए था और कुछ हद तक हमारे नीति निमार्ताओं ने किया भी। बहरहाल जब हम इस तरह के फैसले लेते है तो ये बात कतई ध्यान में नही रखते है कि हमारे साथ भी कभी इस तरह की घटना घट सकती है। सबसे पहले हम बात करते है पाकिस्तान के कबड्ड़ी खिलाडिय़ों की। क्या भारत में इन खिलाडिय़ों को नही आने देने से हमने देश भक्ति का परिचय दिया है या फिर ओछी मानसिकता के साथ ये साबित करने का कुंठित साहस किया है कि हम भी कुत्ते के काटने पर काटेगें। बेशक हमारे खेल मंत्री विजय गोयल का यह निर्णय न केवल कायरता से भरा है बल्कि इस बात का भी परिचायक है कि वे पाकिस्तान के कितने विरोधी है। अगर एक मुल्क का जिम्मेदार मंत्री पूर्वाग्रहित होकर ऐसे फैसले लेगा तो कोई ताकत नही है जो हमारे साथ भी होने वाले इस तरह के कृत्यों पर रोक लगा सके। मेरी समझ से तो खेल मंत्री ने पाकिस्तान के कबड्ड़ी खिलाडिय़ों को हमारे यहां खेलने की इजाजत न देकर पाक को वैश्विक स्तर पर जलील करने का प्रयास किया होगा या फिर वे जिस राजनीति दल से सरोकार रखते है उसके आकाओं को खुश करने का काम किया हो। लेकिन ये भी ठीक से नही कर पाए। असल में इस फैसले के पीछे खेल मंत्री विजय की यह सोच रही होगी कि अगर वे इस तरह की पहल करेगें तो आरएसएस के उग्र हिंदुवादी सोच के नेता खुश होगें और उनकी नजर में एक सच्चा हिंदुवादी राष्ट्र भक्त साबित होने का अवसर मिलेगा। अब इन जनाब को ये कौन समझाए कि एक देश के मंत्री को अपने नेताओं को इस तरह से खुश करने का कोई अधिकार नही बनता है। एक मंत्री की हैसियत से न सोच कर पार्टी के कार्यकर्ता की तरह निर्णय लेने का अधिकार नही है खेल मंत्री को। इन जनाब को ये भी कौन समझाए कि खिलाडिय़ों के लिए सरहदे बांध कर भी कोई शांति कायम नही की जा सकती है, उल्टे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उस पहल को ही पतीला लगाया जा सकता है जो वैश्विक स्तर पर भारत की साख को उदारवादी राष्ट्र के रूप में निर्मित करना चाहते है। दरअसल यह भी सच नही है कि खिलाडिय़ों पर इस तरह से रोक लगा कर हम अपनी सीमा पर डटे सैनिक की होसला आफजाई कर रहे या आतंकवादी हमलों का करारा जवाब दे रहे है। हमने भारत में पाक के कबड्ड़ी खिलाडिय़ों को आने की इजाजत न देकर सैनिकों का मान-मनोबल भी नही बढ़ाया है। सच कहूं तो फोकट की राजनीति कर एक अपरिपक्व नेता का परिचय भर दिया है। इस तरह की हरकतों से यहां सवाल यह भी लाजिमी है कि क्या हमारे जिम्मेदार लोगों को ये नादानियां करनी चाहिए। बेशक नही। पाकिस्तान के आम नागरिकों के आने से राष्ट्र की सुरक्षा पर विपरित असर नही होता है तो फिर दो-चार कबड्ड़ी खिलाड़ी भारत में आकर खेल भी जाते तो हमारी सुरक्षा व्यवस्था में कौन सी सेंध लगा देते। खेल मंत्री का ये निर्णय तो तभी सही साबित होता जब हमारी सरकार ने पाकिस्तान से आने-जाने वालों पर रोक लगा रखी हो। क्या हम पाकिस्तान नही जा रहे है। हमारा आना- जाना नही चल रहा है फिर क्यों ये फिजुल का निर्णय लेकर बेवजह की वाहवाही लुटने का कुंठित प्रयास किया। खेल मंत्री को जिन पर रोक लगाना है उन पर तो रोक लगा नही पा रह है। बताते चलूं कि आगामी माह में भारत और पाक इंंग्लैंड़ के बर्मिंघम में चैम्पियन ट्राफी को लेकर आमने-सामने होने जा रहे है। क्या वहां उनके साथ खेलना जायज है। अगर इन दोनों टीमों का वहां खेलना जायज हो सकता है तो फिर भारत में कबड्ड़ी खिलाडिय़ों का प्रवेश नाजायज कैसे हो सकता है, सोचने वाली बात है। खैर। यह फैसला खेल भावना की नजर से लिया ही नही गया था। जिस पाकिस्तान को हम उसकी बेजा हरकतों के लिए दिन रात कोसते है इस मामले में वही हरकत हमने की है। जब-जब भी हम खेल भावना को नजर अंदाज करेगें तब-तब हमारे साथ भी विदेशों में कुछ इसी तरह का सलुक होते रहेगा। काबिलेगौर हो कि जिस तरह से आतंकवादी गतिविधियों को लेकर हम पाकिस्तान के साथ दुव्र्यवहार करते है ठीक उसी तरह का आंतकी आचरण करार देकर हमारे सीआरपीएफ के पूर्व अधिकारी टीएस ढिल्लन के साथ हुई है। महानिरीक्षक टीएस ढिल्लन 2010 में सेवानिर्वत्त हो गए थे। आपको जानकर ये आश्चर्य होगा कि कनाड़ा में उनको केवल इसलिए प्रवेश नही करने दिया कि वे एक ऐसे संगठन के साथ काम कर चुके है जो ‘आतंकवाद एवं मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन’ में शामिल हैं। जाहिर है, यहां जिक्र सीआरपीएफ का ही हो रहा है। कनाड़ा में हमारे पूर्व सीआरपीएफ अफसर के साथ इस तरह का बरताव कई गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या कनाडा जैसे देश में हमारे केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की ऐसी छवि बनी है? या इस घटना को लेकर ये समझा जा सकता है कि विदेशों में भारत की छवि मानवाधिकारों के अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन ना करने वाले देश की बन रही है। जो भी लेकिन यह बड़े चिंता का सबब है। पहले पहल तो कनाड़ा में हवाई अड्डे के अधिकारियों द्वारा ढिल्लन को प्रवेश नही करने देने के संबंध में ये कयास लगाए गए कि उनके वीजा संबंधी दस्तावेज में गड़बड़ी हुई होगी या फिर किसी निजी रिकॉर्ड के आधार पर प्रवेश वर्जित किया गया होगा लेकिन जब इन सबको नकार कर वहां के अफसरों ने सवाल ये दागा गया कि ढिल्लन जिस संगठन में काम कर चुके है वह ‘आतंकवाद एवं मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन’ में शामिल है तो एक पल तो ऐसे लगा जैसे पैरों तले जमीन खिसकने लगी हो। गंभीर मसला तो ये है कि इसके पूर्व कभी कोई ऐसी घटना सामने नहीं आई, जिसमें किसी देश ने किसी भारतीय सुरक्षा बल से महज जुड़े होने के आधार पर अपने देश में प्रवेश से मना किया हो।

बता दे कि ढिल्लन कनाड़ा में एक पारिवारिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पिछले 18 मई को अपनी पत्नी के साथ एक हवाई अड्डे पर उतरे , लेकिन उन्हें वहीं रोक कर 20 मई को एक उड़ान में वापस भारत भेज दिया , जबकि उनकी पत्नी को कनाडा में उनके गंतव्य तक जाने दिया। इस घटना के संबंध में ढिल्लन ने बताया कि ‘मैंने उनसे कहा कि मैं सीआरपीएफ का सेवानिवृत्त अधिकारी हूं , लेकिन उनने मेरी एक नहीं सुनी और उल्टे ये कहा कि मेरा बल मानवाधिकार उल्लंघनों में संलिप्त है। हालाकि इस घटना के बाद भारत स्थित कनाडा के उच्चायुक्त नादिर पटेल ने आहत भारतीय भावनाओं पर मरहम लगाने की कोशिश की लेकिन वे भी ढिल्लन के साथ घटी घटना के औचित्य पर कुछ सफाई नही दे पाए। बहरहाल भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए सीआरपीएफ जैसे प्रतिष्ठित बल के इस तरह के वर्णन को पूरी तरह अस्वीकार्य किया है। लेकिन ये प्रतिक्रिया काफी नहीं है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये घटना उस समय घटित हुई है, जब कश्मीर में एक नागरिक को मानव ढाल बनाने का मामला वैश्विक स्तर पर बहुचर्चित है। यह विचारणीय है कि क्या ऐसे प्रकरणों का कनाडा जैसे देशों में भारत की बनती छवि से कोई संबध है? भारतीय कूटनीति के सामने यह जानने की चुनौती है कि आखिर कनाडा ने ऐसा क्यों किया? क्या अंदरूनी सुरक्षा कार्रवाइयों का औचित्य दूसरे देशों के सामने प्रभावशाली ढंग से रखने में भारत सरकार नाकाम हो रही है या फिर वैश्विक स्तर पर जिस तरह के फैसले हम ले रहे है उसका असर हो रहा है। हमें इस बात का हमेशा ख्याल रखना होगा कि भारत, पाकिस्तान से जुदा और अलहदा राष्ट्र है। हमें अपनी साख को बनाए रखने के लिए कोई भी ऐसा फैसला नही करना चाहिए जिसके चलते विदेशों में इज्जत खराब हो औैर दूसरे देशों में हमारी थू-थू हो। आज कनाड़ा है कल कोई और देश हो सकता है। वसुदेव कुटुबंकम की परंपरा को जीने वाले भारतीयों को विदेशों में नीचा दिखाने का काम हमारे राजनेताओं ने कतई नही करना चाहिए। जिस तरह से हमने पाक के कबड्डी खिलाडिय़ों को भारत में खेलने से रोका है ठीक उसी तरह का र्दूव्यवहार हमारे अफसर के साथ कनाड़ा में हुआ है। इस घटना से तो यही साबित होता है कि अगर पाकिस्तान के प्रति हमारे नागरिकों के मन में थोड़ी सी कटुता को बड़ा रूप देने का काम करेगें तो दूसरे देशों में भी हमारे प्रति ये कटुता जहर की तरह फैलेगी। हम जब भी इस तरह का एकपक्षीय निर्णय ले तो इसके पूर्व इस बात का भान जरूर रखे कि आज जो हम कर रहे है कही वैसा ही हमारे साथ घटित न हो। ये घटना हमें इस बात पर विचार करने के लिए मजबूर कर गई है कि आखिर कनाडा में हमारे अफसर के साथ ऐसा क्यों हुआ या ऐसे क्यों किया? इसके साथ ही अब ये सोचने का भी वक्त है कि आखिर हमारे अकडू खेल मंत्री ने खिलाडिय़ों को भारत में खेलने से क्यों रोका? अभी तो मतलब साफ है कि जैसा बोओगे वैसा पाओगे।
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sanjay rokdeपरिचय – :

संजय रोकड़े

पत्रकार ,लेखक व् सामाजिक चिन्तक

संपर्क – :
09827277518 , 103, देवेन्द्र नगर अन्नपुर्णा रोड़ इंदौर

लेखक पत्रकारिता जगत से सरोकार रखने वाली पत्रिका मीडिय़ा रिलेशन का संपादन करते है और सम-सामयिक मुद्दों पर कलम भी चलाते है।

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his  own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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