अब जरूरत है वैचारिक क्रांति की**

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प्रकाश नारायण सिंह**,,

         शहीद भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1929 को संसद के सेंट्रल हॉल में बम फेंकने के बाद कहा था कि बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है। उस समय भी युवा हताश और निराश थे। रोज-रोज के घोटाले, सत्ता की हनक और कुलिन वर्ग का उपभोग संस्कृति आज भी युवाओं को हताश व निराश कर दिया है। बेरोजगारी और महंगाई से त्रस्त युवा, जनलोकपाल बिल में अपना भविष्य देख रहे हैं। जुलाई और अगस्त में एक बार फिर जनलोकपाल के लिए लड़ाई शुरू होगी। सियासत के गलियारे में अभी भी जनलोकपाल बिल लुढ़का पड़ा है। सांप-सीढ़ी की सियासत युवा समझ रहे हैं। राजनेताओं को इतिहास और वर्तमान में घट रही घटनाओं से सीख लेने की जरूरत है।

मार्क्स ने कहा था कि बहुत त्वरित गति से पूरा ढ़ांचा बदल जाए, इसी को क्रांति कहते हैं। आज युवा भी कुछ ऐसी ही जल्दबाजी में हैं। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और महंगाई के मार से इतने ऊब चुके हैं कि जल्द बदलाव चाहते हैं, चाहे कैसे भी हो? इतिहास पर नजर डालें तो फ्रांस के लुईस-15 ने कई युद्ध लड़े और फ्रांस को दिवालिएपन के कगार पर ले आये। कुलीन वर्ग का निरंतर उपभोग फ्रांसीसी क्रांति को जन्म दे दी। रूस में भी जब अव्यवस्था चरम पर थी तो युवा सड़क पर उतर गये। मोहम्मद बौजीजी के आत्मदाह ने ट्यूनीशिया की जनता को सरकार के खिलाफ भड़का दिया। खाने की वस्तुओं की बढ़ती कीमतें, बेरोजगारी और अन्य समस्याओं ने आग में घी का काम किया। क्रांति की यह फिजा उत्तर अफ्रीकी देश ट्यूनीशिया से मिस्र और लीबीया तक कब पहुंच गई, किसी को खबर तक न हुई। इन सभी आंदोलनों में युवाओं की भागीदारी जबरदस्त रही। युवा सड़कों पर उतरे। वर्तमान के आंदोलनों में सबसे बड़ी बात यह सामने आई कि फेसबुक पर पूरी दुनिया के युवाओं ने इस आंदोलन को गति दी।

आज के हालात भी क्रांति को न्यौता दे रहे हैं। बढ़ती गरीबी, बेरोजगारी, सुरसा की तरह मुंह फाड़े मंहगाई, दिन पर दिन बढ़ते घोटाले कोढ़ में खाज का काम कर रही है। आज जल-जंगल-जमीन की लड़ाई सिंगुर से कोयम्बटूर तक लड़ी जा रही है। गुड़गांव से केरल तक मजदूर अपने हक की लड़ाइयां लड़ रहे हैं। चाहे राज्य की हो या केंद्र की, सत्ता उनको दबाने की हर संभव कोशिश कर रही है। आज एक बार फिर संपूर्ण क्रांति की याद आने लगी है। लोकनायक जयप्रकाश नें सम्पूर्ण क्रांति के बारे में बताते हुए कहा था कि इसमें सात क्रांतियां शामिल है – राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति। एक बार फिर अन्ना के आंदोलन के साथ जुड़कर युवा जेपी को याद कर रहे हैं। अन्ना के आंदोलन ने रास्ता दिखा दिया है। फेसबुक, ट्वीटर पर अन्ना हजारे के समर्थन में युवाओं ने एक मुहिम छेड़ दी। पूरे देश के युवा एक दूसरे से भ्रष्टाचार पर चर्चा कर रहे हैं। अन्ना हजारे के लोकपाल बिल में युवाओं को समाधान दिखने लगा है। पूरे देश में राजनेताओं से घृणा की एक लहर सी चल पड़ी है। सरकार और उसके कारिंदे जो सुलझाने के बहाने उलझाने की राजनीति कर रहे हैं, उसे पढ़ा-लिखा युवा समाज समझ रहा है। यह समाज फेसबुक, ट्वीटर से बाहर निकलकर अन्ना के आंदोलन में सड़क पर पहुंच चुका है। युवा समाज इतिहास पढ़ चुका है। इसे पता है कि हमारे शहीदों ने कुर्बानी देकर ही परतत्रंता की बेड़ियों को तोड़कर हमें आजादी की सुहानी सुबह दी है। इसको सहेजना हमारा कर्तव्य है।

आज हमारी व्यवस्था के बारे में कुछ मूलभूत प्रश्न पूछने का समय आ गया है। आपको देश की न्याय प्रणाली पर कितना विश्वास है? संसद के सामने सबसे बड़ा सवाल अपनी महत्ता व विश्वसनीयता बनाए रखने की है। आज इस संसद में 160 सांसदों से अधिक पर अपराधिक मुकदमें दर्ज हैं। क्या यह संसद इस देश को गरीबी, भुखमरी और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला सकती है? जनलोकपाल बिल ने व्यवस्था के हर पहलू को उजागर कर दिया है। पूरे देश में आलम यह है कि पुलिस आम जनता की नजर में वर्दी वाला गुंडा बन चुकी है। सीबीआई भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई करने में असक्षम है क्योंकि राजनीति उसको संरक्षण देती है। अब चर्चा किसी सरकार के खिलाफ नहीं, व्यवस्था के खिलाफ होने लगी है। जनलोकपाल बिल में संसद का रवैया यह बता रहा है कि संसद समाधान के बजाए समस्या बनती जा रही है। आज हर जगह यह व्यवस्था सड़ी-गली महसूस हो रही है। बदलाव अब व्यवस्था में चाहिए। युवा यह समझ चुका है कि भ्रष्ट अपने आप ही अपने गले में फंदा नहीं डालेंग। जब तक पूरी व्यवस्था को पूर्ण रूप से नहीं बदला जाएगा, क्या तब तक जन लोकपाल कानून आ सकता है? पूरे देश ने संसद में आम जन के खिलाफ हो रहे चर्चा को देखा। लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, कांग्रेस के रणनीतिकार और विपक्ष सहित पूरे संसद ने जिस तरह से आम जन की भावना को सांप-सीढ़ी का खेल बना दिया, उससे संसद पर युवाओं का भरोसा उठने लगा है। आज जनलोकपाल बिल में युवा अपना भविष्य देख रहे हैं। संसद में हो रहे खुला खेल फर्रूखाबादी देख युवा हताश और निराश हो गए हैं। अब इन्हें इस व्यवस्था से भरोसा उठने लगा है। आज जरूरत यह है कि इनको दिग्भ्रमित होने से बचा लिया जाए। युवा अपने सपने को चकनाचूर होते नहीं देख पाएंगे। इन्हें बर्दाश्त करने की आदत नहीं है। अब युवा जिम्मेदारी के साथ जवाबदेही चाहते हैं। देश के नीति निर्धारक जल्द ही भ्रष्टाचार को काबू में करने के लिए कोई कड़ा कदम नहीं उठाए, तो डर इस बात का है कि कहीं जवानी जोश में होश न खो बैठे। आज के युवकों को पता है कि बुजुर्गों के मार्गदर्शन में ही जवानी जंग लड़ती है। महात्मा गांधी, जयप्रकाश या अन्ना का आंदोलन, सबके पीछे हर कुर्बानी देने के लिए युवा खड़ा रहा। व्यवस्था में परिवर्तन के लिए अब देश को वैचारिक क्रांति की जरूरत है।

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