अब किसान को नीति चाहिए, राजनीति नहीं

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 – संजय रोकड़े –

sanjay-rokde-and-shivrajsinआजादी के सत्तर साल बितने के बाद भी भारत में किसान बदहाल बना हुआ है। इन  सात दशकों में जितनी भी सरकारें आई और गई इनमें से ज्यादातर ने किसान को राजनीति का जरिया बना कर अपना उल्लु सीधा किया है। किसान को लेकर राजनीति तो होती रही लेकिन दुर्भाग्य है कि उसको लेकर कोई कारगर नीति अभी तक नही बनी है। किसानों के हित और उनकी आर्थिक तरक्की की दुहाइयां भी हर नेता और दल देता रहा लेकिन व्यवहारिकता के धरातल पर कोई काम नही हुआ। आज भी किसान जग की जोरू के समान है, जो भी दल केन्द्र या राज्य की सत्ता पर काबिज होता है वह किसान को परेशान करता है। असल में अब किसान को राजनीति नही बल्कि नीति की दरकार है लेकिन यह अभी भी कहीं दिखाई नही देती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी के शासनकाल में भी किसान परेशान ही है। बता दे कि मोदी ने अपनी चुनावी रैलियों में किसानों को खुशहाल रखने के बडे-बडे वादे किए थे। किसानों से उनने कहा था कि यदि वे केन्द्र की सत्ता में आए तो उन्हें लागत से ऊपर 50 फीसदी मुनाफा दिलवाएंगे। इस वादे के बाद किसानों ने उन्हें जोरदार बहुमत से जीत दिलाई। अब मोदी का राज है। सत्ता में बैठे तीन साल बीत गए है बावजूद इसके अभी तक इस वादे की ओर कोई पहल नही की गई है। इसको लेकर अब आलम ये है कि मोदी इस पर चर्चा तक नहीं करना चाहते है। हाल ही में किसानों के आंदोलन के दौरान सत्ता पक्ष ने कांग्रेस पार्टी पर किसान शोषण का आरोप मढते हुए कहा कि आज किसानों की जो भी बदहाली है उसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है।

कांग्रेस आज अपनी नाकामियों को छीपाने के लिए इस समय किसान आंदोलन में आग में घी डालने का काम कर रही है। बेशक सत्ता पक्ष का ये आरोप कुछ हद तक सही भी हो सकता है लेकिन इसके चलते ये कतई नही कहा जा सकता है कि वर्तमान सरकार ने किसानों के हित में कोई कारगर कदम उठा कर उनकी बेहतरी की पहल की हो। मोदी सरकार के अभी तक के काम काज को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि इस सरकार ने भी किसानों के लिए ईमानदार से काम करने की बजाय प्रयोगों को ही अपना हथियार बनाया है। ये सरकार भी किसानों को उनकी उपज का सही दाम दिलाने की बजाय कर्ज पर ब्याज कम लेने जैसी नीतियों को ही उनका हित बताने की आदी होती जा रही है। असल में किसान की वास्तविक समस्या पर मोदी सरकार भी जोर नही दे रही है। कर्ज देना, चुनाव करीब आने पर उसे माफ कर देना या कर्ज पर कम ब्याज लेना जैसी थोथी कलाबाजियां ही दिखाई दे रही है। इस तरह के काम किसान हित में नही है। ये तो राजनीतिक दलों की मजबूरी है। किसान तो सभी प्रकार का ऋण अदा करना चाहता है लेकिन उसकी इतनी भर मांग है कि समय पर उसकी उपज का सही तोल और मोल दिया जाए। केन्द्र की मोदी सरकार के संबंध में इससे बड़ी हास्यास्पद और दुखद बात क्या हो सकती है कि बीते समय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने की संभावना से स्पष्ट इनकार कर दिया। जो भाजपा आज किसानों की हितैशी बनने का प्रपंच रच रही है उसकी सरकार वाले राज्यों की तरफ भी नजरे इनायत करते है। बता दे कि मध्यप्रदेश में हाल के दिनों में जो किसान आंदोनल भड़का था उसका एक मात्र कारण किसानों को अपनी उपज का सही दाम नही मिलना था।

किसान इस मांग को लेकर लंबे समय से शिवराज सरकार से आग्रह करते रहे लेकिन सत्ता का गुमान ये कि मुख्यमंत्री किसानों को सुनने और उनसे बातचीत करने तक को तैयार नही थे। जब पानी सिर के उपर से जाने लगा तो किसानों ने सडकों पर उतर कर राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस आंदोलन में कांग्रेस ने बहती गंगा में हाथ धोने का भरशक प्रयास किया। इसका पूरी तरह से राजनीतिकरण करना भी चाहा जो सरासर गलत था लेकिन भाजपा भी इसमें पीछे नही दिखाई दी। हद तो तब हो गई जब राज्य का मुख्यमंत्री स्वंय जिस सीएम की कुर्सी पर बैठा हो और वही किसानों के लिए यह कह कर उपवास करे कि मैं तो किसान आंदोलन को शांत करने के लिए उपवास पर बैठा हूं, कितना जायज लगता है। खैर। कमोबेश हर राजनेता और राजनीतिक दल का यही चरित्र होता है, जब वह सत्ता में आ जाता है। शिवराज कोई बिरले नही है जिनने ये ढ़ोंग किया हो। अब हम चलते है महाराष्ट्र की ओर। यहां भी किसानों के साथ बड़ी परेशानी है। इस राज्य में भी किसानों के साथ कभी प्रकृति दगा करती है तो कभी सरकार की नीतियां लुटखसोट करती रहती है। महाराष्ट्र का सीएम बनने के पूर्व देवेन्द्र फडणवीस ने भी किसानों से बड़े और लुभवने वादे किए थे। वे अक्सर अपनी चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए कहते थे कि अगर राज्य में भाजपा की सरकार आई तो फसलों के दामों में उचित वृद्धि करेगें। वे उस समय हर फसल के दाम को लेकर भी स्पष्ट कहते थे कि आज जिस सोयाबीन की कीमत 3,800 है वह 6,000 होनी चाहिए और कॉटन को 4,000 से 7,000 रुपए प्रति क्विंटल होना चाहिए। अब देवेन्द्र भी जब से महाराष्ट्र के सीएम की कुर्सी पर बिराजे है तब से उनने कीमतें बढ़ाने की बात करना ही बंद कर दिया है।

वे तो अब ये भी भूल गए है कि जब वे चुनावी रैलियों को संबोधित करते थे तब किस फसल का कितना दाम होने की दुहाइयां देते थे। शर्मनाक तो यह है कि महाराष्ट्र सरकार अबकि बार किसानों को तुअर दाल के लिए 5,050 रुपए प्रति क्विंटल का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं दे सकी। वह भी तब जब उत्पादन कई गुना बढ़ गया है। मंडियों में हफ्तों इंतजार के बाद किसानों ने हताशा में 3,500 रुपए प्रति क्विंटल की साधारण कीमत पर तुअर बेची। दरअसल किसानों की मौजूदा समस्या अनाज, दलहन, प्याज और सोयाबीन में उत्पादन अधिक होने और बाजार में भाव न मिलने से उपजी है। लेकिन क्या भाजपा, क्या कांग्रेस हर कोई इसे अवसर के रूप में देख रही है। समाधान नही करना चाहती है। विपक्ष में रहते हुए सारे दलों के नेता ऊंची आवाज में किसानों के पक्ष में बोलते थकते नही है। किसानों को जब तो चांद दिलाने का वादा करते हैं पर सत्ता में आते ही किसान उनकी प्राथमिकता वाली सूची से गायब हो जाते है। सत्तर बरसों से यही हो रहा है फिर सत्तारूढ़ दल कोई भी क्यों न रहा हो। सभी राजनीतिक दलों का यही रवैया है। मैं किसानों से आग्रह करता हूं कि वे अवसरवादी नेताओं के बहकावे में न आएं। भाजपा जो आज किसानों की हितैशी बनने का तमगा लगाकर ये बताने की कोशिश कर रही है कि असल में किसानों की सच्ची परवाह करने वाली पार्टी वही है ये भी किसानों के साथ छल और दगा ही कर रही है। बताएं कौन से राज्य में भाजपा ने किसानों के लिए कोई ईमानदार पहल की है। भाजपा के बड़े नेता जो ये बातें करते थकते नही है कि किसानों की कर्ज माफी असल समाधान नही है। वहीं भाजपा और उसके बड़े नेता उत्तरप्रदेश में किसानों की कर्ज माफी जैसी नाजायज हरकते करके किसान तुष्टीकरण की थोथी राजनीति कर रही है। बताते चले कि जब कर्ज माफी जैसी तुष्टिकरण की चाले चली जा रही थी तब भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपरसन अरुंधती भट्टटाचार्य ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को आपत्ति जताते हुए स्पष्ट कहा था कि किसानों का 36,356 करोड़ का कर्ज माफ करने पर अनुशासनहीनता फैलेगी। लेकिन उनकी एक न मानी गई और किसानों के साथ वही किया गया जो आज तक कांग्रेस करती रही है। यह भी बता दे कि आरबीआई गर्वनर ने भी कृषि ऋणमाफ करने के खिलाफ आगाह किया था। उनने कहा था यदि राज्यों के पास इसकी वित्तीय गुंजाइश नहीं है तो पिछले कुछ वर्षों में वित्तीय अनुशासन से जो कुछ भी हासिल किया है, वह खत्म हो जाएगा। इन सबकी चेतावनी के बाद भी किसान की कर्जमाफी कितनी उचित है। क्या इसमें दोहरे मानदंडों की गंध नहीं आती? बहरहाल केन्द्र की मोदी सरकार का मानना है कि अब तक गांव, गरीब, किसान, मजदूर, महिला और युवा को लेकर जितने भी काम किए गए है इस सरकार के पूर्व किसी भी सरकार ने इस तरह से काम नही किया है।

केन्द्र सरकार और भाजपा का स्पष्ट कहना है कि किसानों को लेकर तो मोदी सरकार बेहद संजीदा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले दिन से ही यह साफ कर दिया था कि उनकी सरकार की शीर्ष प्राथमिकता में किसान है। इनके द्वारा किसानों के हित में अभी तक जो भी काम किए गए है उनकी प्रामाणिकता के लिए आंकड़ेबाजी और योजनाओं की जानकारी भी जारी की गई है। ये आंकड़े और योजनाएं बयां करती है कि मोदी सरकार ने वर्ष 2022 तक किसान की आय दोगुनी करने के लिए कई किसान हितैषी पहल की हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसान की फसल के बीमा की दिशा में सबसे बड़ा योगदान है। इसमें न्यूनतम प्रीमियम के तहत अधिकतम मुआवजा देने की बात है और यह योजना सभी मौसम की सभी फसलों को दायरे में लेती है। 50,000 करोड़ रुपए की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत हर खेत को पानी पहुंचाने का लक्ष्य है। करीब 7.1 करोड़ सॉइल हैल्थ कार्ड जारी किए गए हैं और लक्ष्य सभी 14 करोड़ किसानों को ये कार्ड जारी करने का है। ई-नाम के जरिये किसान सारे कृषि बाजारों से जुड़ जाएगा और जहां अच्छा भाव मिले उपज वहां बेच सकेगा। सरकार के प्रयासों के कारण ही दलहनों का उत्पादन बढ़ा है। 2016-17 में अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,625 से बढ़ाकर 5,050 रुपए, उड़द 4,625 से बढ़ाकर 5,000 और मूंग 4,850 से बढ़ाकर 5,250 रुपए प्रति क्विंटल किया गया है। रबी फसलों का समर्थन मूल्य भी काफी बढ़ा दिया है। इस साल बजट में खेती के कर्ज के लिए 10 लाख करोड़ रखे गए हैं। खेती में आने वाली नई टेक्नोलॉजी और नवीनतम जानकारियों से किसानों को वाकिफ कराने के लिए दूरदर्शन ने खास किसान चैनल शुरू किया है। मतलब साफ है कि आंकड़े जो कहानी दर्शा रहे उसे देख कर तो यही कहा जा सकता है कि इतना सब कुछ होने के बाद किसानों को कोई आंदोलन खड़ा नही करना चाहिए था लेकिन फिर भी मध्यप्रदेश के निमाड़-मालवा से चलकर यह आंदोलन देश भर में फैला। मंदसौर में दस से अधिक किसानों को अपनी वाजिब हक की मांग को लेकर जान गवां पडी। अब इतना बड़ा हादसा होने और किसान आंदोनल के उग्र होने के बाद सत्ता पक्ष के नेता ये दलील दे रहे है कि कांग्रेस इस आंदोलन को लेकर बेकार की राजनीति कर रही है। पांच दशकों तक अपने राज के दौरान किसानों की उपेक्षा करने के बाद उनके बारे में बात करने का क्या कांग्रेस को कोई हक है?

गोलीबारी में पांच लोगों की मौत पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस्तीफा मांगना कांग्रेस की दीवालिया सोच का ही परिचायक है। मध्यप्रदेश के ही बैतूल जिले के मुलताई में दिग्विजय सिंह के शासन (1998) में गोलीबारी से 24 किसान मारे गए थे, तब तो सिंह ने इस्तीफा नहीं दिया था। क्या कांग्रेस ने उनसे इस्तीफा मांगा था? क्या सोनिया गांधी वहां गई थीं? वास्तविकता तो यह है कि मध्यप्रदेश में चौहान के रूप में अब अत्यधिक किसान हितैषी मुख्यमंत्री है। उनके फोकस के कारण पिछले दो साल में राज्य में कृषि वृद्धि दर 20 फीसदी हो गई है। कृषि हित में उठाए कदमों में कृषि कर्ज पर शून्य प्रतिशत ब्याज सब्सिडी, किसानों को बिजली पर 4,500 करोड़ रुपए की सब्सिडी और कृषि क्षेत्र को करीब 10 घंटे अबाधित बिजली सप्लाई। सिंचाई क्षेत्र को 7.5 लाख हैक्टेयर से 40 लाख हैक्टेयर तक बढ़ा दिया गया है। सभी फसलों पर वाजिब दाम के लिए मध्यप्रदेश सरकार अब मूल्य स्थिरता निधि स्थापित करने वाली है। प्रदेश सरकार ने मालवा की नदियों में नर्मदा लाने का अनोखा कार्यक्रम शुरू किया है और क्षिप्रा के साथ नर्मदा को तो जोड़ भी दिया है। एक लाख किलोमीटर ग्रामीण सड़कें बनाई गई हैं। किसानों को सबसे बड़ा बीमा कवरेज दिया है। रबी के लिए 4,060 करोड़ और खरीफ के लिए 4,416 करोड़ रुपए के दावे प्राप्त हुए हैं। यह सोचना नादानी ही होगा कि रातों रात सब हल कर लिया जाएगा। इसके साथ ही सत्ता पक्ष ये भी दलील दे रहा है कि सच तो यह है कि किसानों की दशा यूपीए की लगातार दो सरकारों के दशक भर के शासन के दौरान खराब हुई, जब किसानों की आत्महत्याएं अत्यधिक बढीं थी और कृषि में वृद्धि दर भी दो फीसदी से नीचे गिर गई थी। इन्ही सब गड्डों को भरने का काम अब मोदी सरकार मुस्तैदी से कर रही है। किसान के हित में गोदाम बनाने की बात हो, कोल्ड स्टोरेज चैन, रेफ्रिजरेटर वैन, बिजली, फूड प्रोसेसिंग यूनिट के माध्यम से वैल्यू एडिशन, किफायती व समय पर कर्ज और बाजार की जानकारी तक पहुंच, कृषि से जुडे सारे मसलों पर एनडीए सरकार कोई कसर नहीं छोड रही है। आज भी प्रधानमंत्री किसान की दशा सुधारने और उनकी आय दोगुनी करने के लिए दृढ संकल्पित हैं। खैर। इन दलीलों के बाद भी खेती किसानी की बर्बादी साफ दिखाई दे रही है। कारण भी जाहिर है। किसानों की समस्या का एक ही समाधान है- कृषि में लगने वाली चीजों की लागत पर नियंत्रण और कृषि उपज की वाजिब कीमतें सुनिश्चित करना। आज भी खाद्य पदार्थों की महंगाई को काबू में रखने के लिए किसानों को वाजिब कीमत नहीं दी जा रही है।

बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि अनाज उपजाने की उन्हें सजा ही दी जा रही है। इस स्थिति को ऐसे समझने का प्रयास करें। 1970 और 2015 के बीच गेहूं का खरीद मूल्य सिर्फ 19 गुना बढ़ा है जबकि, इसी अवधि में सरकारी कर्मचारी की आमदनी 120 से 150 गुना बढी है। कॉलेज टीचर्स की 150 से 170 और स्कूल टीचर की 280 से 320 गुना बढ़ गई है। इस समय कर्मचारियों को कुल 108 भत्ते मिलते हैं जबकि किसान को एक भी नहीं। सरकारों का किसानों के प्रति जो रवैया है उसे देखते हुए वह यह नही समझ पाता है कि वह कृषि उपज की खेती करता है या घाटा पैदा करने वाली खेती करता है। असल में किसानों की विभिन्न चिंताएं दूर करने के लिए लगातार प्रयास करने होंगे। इस समय किसानों की बदहाली को देखते केन्द्र की मोदी सरकार को उनकी एक सुनिश्चित आय की और भी ध्यान देना जरूरी हो गया है। इस मामले में भी मोदी सरकार को सोचने की आवश्यकता है। 2016 का आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि देश के 17 राज्यों में, जो देश का मोटे तौर पर आधा हिस्सा होता है, किसानों की सालाना औसत आय 20 हजार रुपए से भी कम है। यह रकम एक व्यक्ति के लिए तय गुजारे भत्ते से भी कम है। इतनी मामूली आमदनी में किसान परिवार कैसे अपना पालन-पोषण करता होगा। अब समय आ गया है कि किसान की आमदनी और उसकी खुशहाली के लिए आंकड़ेबाजी की जादूगरी से उपर उठ कर धरातल पर कुछ किया जाए। सही मायने में तभी भारतीय जनता पार्टी और केन्द्र की नरेन्द्र भाई मोदी सरकार किसानों की हितैशी मानी जाएगी। इतना सब कुछ होने के बावजूद कुछ कारगर कदम नही उठाए गए तो आने वाली पीढिय़ां जब कांग्रेस- भाजपा में तुलना करेगी तो भाजपा को कांग्रेस से बदतर समझेगी। कारण कथित तौर पर कांग्रेस ने अपने राजकाल में किसानों के साथ शोषण ही किया है लेकिन भाजपा तो उस शोषण से बचाने और उनको खुशहाल जीवन देने का वादा करके सत्ता में बैठी है।

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sanjay-rokde-writer-sanjay-rokde.-story-by-sanjay-rokde-sanjay-rokde-social-thinker111परिचय – :

संजय रोकड़े

पत्रकार ,लेखक व् सामाजिक चिन्तक

संपर्क – :
09827277518 , 103, देवेन्द्र नगर अन्नपुर्णा रोड़ इंदौर
लेखक पत्रकारिता जगत से सरोकार रखने वाली पत्रिका मीडिय़ा रिलेशन का संपादन करते है और सम-सामयिक मुद्दों पर कलम भी चलाते है।

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his  own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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