अनुपमा सरकार की पाँच कविताएँ

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सोनाली बोस की टिप्पणी : अनुपमा सरकार की कविताएँ अपने आप में , आपस में बात करती हुई  कविताएँ हैं ! सभी कविताएँ सलीके से अपनी बात कह कर वापस अपनी जगह आकर ठहर जाती हैं और इन्तिज़ार करती हैं उनको को पढ़ने वाले पाठको की प्रतिक्रिया का ! शुभकामनाएँ !
सोनाली बोस
उप – सम्पादक
अंतराष्ट्रीय समाचार एवंम विचार निगम व्  इंटरनेशनल न्यूज़ एंड वियुज़ डॉट कॉम

 

अनुपमा सरकार की पाँच कविताएँ 

1.       परिक्रम

शीतल सी लगे ये धूप
उबलती सी लगे चांदनी
बादल थमे थमे से
भागी सी ये धरती

उलट पुलट रहा जग में
तेरा सारा विधान
चोर सिपाही सांप नेवला
बन गए इक दूजे की जान

हंस चल रहा कौवे की चाल
कागा हंसता खड़ा खड़ा
धर्म हुआ लुप्त
अधर्म सिर माथे चढ़ा

तेरे अवतार की राह तकते
धर्मभीरु लोग सभी
संत असंत की परिभाषा में
अब उलझे गुरू भी

बदल रहा परिक्रम सारा
विधियों को दी तिलांजलि
कैसा देश कैसी भक्ति
और कैसी ये श्रद्धांजलि!

2.       तब्दीली

यूं ही बैठे-बैठे ख्याल आया
क्या हो गर बर्फ की चादर
बिछ जाए उस तारकोल की सड़क पर
क्या हो गर वो सूरज
भूल जाए रोज़ पूरब से खिलखिलाना

चांद न चमके पूनम पर
तारों का खो जाए फसाना
शिवली झरना छोड़ दे
बरगद की दाढ़ी बढ़ना बंद हो जाए

पीपल पर फूल खिलें
गुलमोहर के पत्ते खो जाएं
थम जाए नदियां तालाब बहने लगे
ज्वालामुखी शीतल हो जाए
बादल आग उगलने लगे

क्या हो गर भूल कर अपना पता
दरवाज़े चलने लगें
दीवारों के पंख लग जाएं

पंछी छतों पर जम जाएं
जंगल शहर में बस जाएं
गाँव टापुओं में बदल जाएं

शायद तबाही कहोगे तुम इसे
पर क्यों भला
केवल नाम ही तो बदले हैं
दुनिया चलती रहेगी वैसी ही
कहीं कोई तब्दीली नहीं !

3.       शायर 

पसीना बहा सुफेद पन्नों पर
नज़्में नहीं लिखी जातीं
न किसी की खिल्ली उड़ा
गज़लों में जान आती है

जज़्ब करने पड़ते हैं आंसू
खून जलाया जाता है
नासूर से गलती हड्डियों से
टपकता पीब मवाद
खूबसूरत परतों में सहेज
लफ्ज़ों में सजाया जाता है

तब उभरती है कागज़ की
ज़मीन पर एक फसल
जिसके कबूल होने की चाह में
शायर आज़माया जाता है

4.       ज्ञानी

ज्ञानी, ध्यानी, मानी
कितने स्वरूप हैं इस मन के
कभी आध्यात्म पक्ष मुखर हो उठता
हर बात में कारण टटोलता

कभी डूब जाता अथाह सागर में
गोते लगा नित नये मोती खोजता
अवलोकन की सतर्क क्रिया से अनजाने ही
मूल्यांकन की प्रक्रिया में विलीन हो जाता

ज्ञान, ध्यान खो जाते मान की जटाओं में
भटकने लगते विचार संकरी कंदराओं में
अपना औचित्य भूल ढलने लगते
दुर्गंधित प्रतिक्रियाओं में

पतित हो उठते सकारात्मक घटक
क्रोध की अग्नि में भस्म पंचतत्व !!

5.       चेहरे

कुछ चेहरे बेहद हैरान करते हैं
करीब आकर भी अनजान ही लगते हैं
हर पल इक नया रंग दिखाते हैं
जाने अलबेले ढंग से क्या छिपाते हैं।

आवरण ओढ़े बैठे हैं शायद
एक फिसला तो दूजे के
पीछे मुंह ढक लिया
खैर हमें क्या!

इंद्रधनुषी दुनिया है ये
चमकीले सितारे भी होंगें
भड़कीली उल्काएं भी
कभी एक दूजे से भिड़ते
कभी प्रेम से गले मिलते नज़र आएंगें।

पूनम को चांद मुस्कुराएगा
अमावस को भाग जाएगा
जीवन है नित नया पाठ पढ़ाएगा
चेहरों से नकाब कभी तो हटाएगा
और न भी हटे तो हमारा क्या बिगड़ जाएगा।

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ANUPMA SARKAR ,anupma sarkar invc newsपरिचय
अनुपमा सरकार

संपर्क – : 126 ए, डी डी ए फ्लैट, विक्रान्त एन्क्लेव, माया पुरी, नई दिल्ली 110064 

 फोन – : 9891441966 – इमेल : anupamasarkar10@gmail.com –

 वेबसाइट : www.scribblesofsoul.com

पत्रिकाएं व् समाचारपत्र   :  हंस, उपासना समय, भोजपुरी पंचायत, आकाश, भोजपुरीजिनगी,   डिफेंडर,सौरभ दर्शन

   

3 COMMENTS

  1. दूसरी कविता आपकी सबसे उम्दा कविता लगी बाकि भी शानदार हैं ! सासन शब्दों का चयन आपकी सबसे बड़ी खूबी हैं आप इसे बनाएं रखे !

  2. शानदार कविताएँ ,चेहरे आपकी सबसे शानदार कविता हैं मेरे ख्याल से ,बधाई

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