अक्ल से पैदल डिग्रीधारी, कर रहे हैं रक्षा विभाग में एफ.डी.आई. की तरफदारी

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भ्रष्टाचार विरूद्ध भारत जागृति अभियान, मोदी के अंधभक्त, सोनिका क्रांतिवीर , रामपुरी चाकु, देसी कट्टों,AK47 ,हथियार,B.H.E.L., H.A.L, रक्षा सौदों में दलाली , रक्षा में दलाल , रक्षा मंत्रालय में दलाल ,{ सोनिका क्रांतिवीर }
हम अपने घर के सदस्यों की काबलियत पर ध्यान नहीं देते, उनके हुनर का उपयोग नहीं होने देते, उन्हें मजबूर कर देते हैं अपने खुद के हुनर का उपयोग, गलत दिशा में ले जाने के लिये| एक ज़माना था, जब हमारे देश के यह अनपढ हुनरमंद तलवारों, तीरों पर अपनी काबलियत दिखाते हुये खुद को राजा के महत्वपूर्ण आदमियों में शुमार कर लेते थे|

आज हम इनके उन रामपुरी चाकु, देसी कट्टों या उनके द्वारा बनाये गये नकली विदेशी(Imported) हथियारों को बनाने के जुर्म में जेल में सड़ाने पर मजबूर कर देते हैं| जबकि यही हथियार बनाने के लिये हम विदेशियों की चापलूसी करते हुये उन्हें 50-50 लाख रु. माह की तनख्वाह व रॉयल्टी देकर आमंत्रित करते हैं| अगर हम चाहें तो केवल 25000/- रु. माह देकर इन अनपढ हुनरमंदों का उपयोग करके एक से एक विदेशी हथियार स्वदेशी तकनीक का उपयोग करके बना सकते हैं| परन्तु हम उन विदेशियों की जी-हुजूरी करते हुये AK47 जैसे हथियार 50 लाख रु. में लेने को तैयार रहते हैं जबकि हमारे घर के देशी अनपढ हुनरमंद उस हथियार से भी बेहतर क्वालिटी का हथियार हमें सिर्फ 50000/- रु. में बनाकर दे सकते हैं|

हम विदेशी जालसाज़ों द्वारा उस कागज़ी चक्रव्यूह में फँसा दिये गये हैं, जहाँ अक्ल से पैदल डिग्रीधारी, व अपने आपको महान वैज्ञानिक कहलाने वाले पैदा होते हैं जबकि एक भी आविष्कार करने या उसकी नकल करने में वे असमर्थ होते हैं मगर फिर भी हम इनकी डिग्री की जी-हुजूरी करते हुये उन्हें उच्च से उच्च पदों पर आसीन करने में गर्व महसूस करते हैं जबकि इन अनपढ हुनरमंद वैज्ञानिकों को मजबूर कर देते हैं गरीबी व भुखमरी में भूखा मरने के लिये जिसका फायदा बिचौलिये और तस्कर उठाते हैं और इन अनपढ हुनरमंद वैज्ञानिकों को भूखा-नंगा रखते हुये खुद इनके द्वारा बनाये गये आविष्कारों का उपयोग खुद को दौलतमंद बनाने में करते हैं|

अगर हम समीक्षा करेंगे तो पायेंगे कि ये डिग्रीधारी जो असल में अनपढ, बेवकूफ, अक्ल से पैदल हैं जो वातानुकूलित(ए.सी.) कमरों में बैठकर, 50-50 लाख की तनख्वाह पाते हैं और खुद को बहुत बड़ा वैज्ञानिक साबित करने की कोशिश करते हुये इस देश को प्रगति के बजाये गढ्ढे में धकेलने का कार्य कर रहे हैं| यह लोग केवल 9:00 से 5:00 बजे तक आरामदायक कार्यालय में बैठकर, सिर्फ कागज पर लकीरें उकेरने का 50-50 लाख रु. प्रति माह लेते हैं जबकि हमारे यह देशी अनपढ हुनरमंद उसी कागज के टुकड़े पर बनाई गई रेखाओं को बिना देखे, सीधे आविष्कार कर देते हैं| क्या हम उन अनपढ हुनरमंदों को अपराधी की जगह वैज्ञानिक या देश के भविष्य निर्माणकर्ता नहीं मान सकते?

हमें क्यूँ शर्म आती है, इन्हें वैज्ञानिक कहने में? आज हम रक्षा विभाग में F.D.I. किसलिए लाना चाहते हैं? क्या सिर्फ डिग्रीधारी बेवकूफ वैज्ञानिकों को आरामदायक कुर्सीयों पर बैठाने के लिये? जहाँ बैठ कर वे सिर्फ 4 लकीरें उकेरेंगे पेपर पर जबकि उससे हज़ार गुना काम हमारे यह अनपढ वैज्ञानिक बैठे-बैठाये कई गुना कम खर्च पर कर के दे सकते हैं| सिर्फ इन्हें आवाज़ भर लगाने की देर है, एक नहीं लाखों अनपढ वैज्ञानिक दौडे चले आयेंगे और आपको एक से एक बढकर बेशकीमती, आधुनिकतम, आपकी सोच भी जहाँ तक नहीं पहुँची होगी वैसे-वैसे आविष्कार, वैसे-वैसे आधुनिकतम मशीनें आपको बनाकर देते चले जायेंगे| जरूरत है उनको सिर्फ वह सुविधा उपलब्ध करवाने की जिसका उपयोग करके वे देश को आर्थिक ही नहीं राजनैतिक दृष्टि से भी मालामाल कर देंगे| एक बिचौलिया, एक दलाल अगर इनका उपयोग खुद को दौलतमंद या रईस बनाने के लिये कर सकता है तो क्या सरकार इनका उपयोग देश को खुशहाल करने के लिये नहीं कर सकती?

हम सब जानते हैं कि अगर एक परिवार में चार बच्चे हैं उसमें से अगर एक तलवारबाज़ी में निपुण है, दूसरा मल्लयुद्ध में, तीसरा शास्त्रों में और चौथा चित्रकारी में तो क्या हमें चित्रकार से मल्लयुद्ध करवाना चाहिये या तलवारबाज़ से शास्त्रों का पाठ करवाना चाहिये? अगर घर का मुखिया सूझ-बूझ व अनुभव में कुशल होगा, तो वह इन पुत्रों का उपयोग सूझबूझ के साथ करते हुये परिवार को समृद्धि के रास्ते पर पहुँचायेगा ना कि घर में उपलब्ध हुनरमंदों की अपेक्षा बाहरी डिग्रीधारी को इनपर हुक्म चलाने के लिये आमंत्रित करेगा|

हमें एक कुशल प्रशासक की आवश्यकता है, जो इन अनपढ हुनरमंदों को भूखे मरने की अपेक्षा उनका उपयोग करके देश को प्रगति के पथ पर आगे बढाये| क्या हमारे प्रशासक इन अनपढ हुनरमंदों की काबलियत पर नज़र डालेंगे और उन्हें देश की प्रगति में सहयोग देंगे?

आज हालात यह है, कि यह अनपढ हुनरमंद इन बिचौलियों के कारण B.H.E.L., H.A.L. या इस प्रकार के सरकारी प्रतिष्ठानों के काम तो करते हैं मगर पैसा क्या मिलता है उसके बारे में आप और हम शायद जानते ही नही हैं| यह गरीबी और भुखमरी से इतने मजबूर हैं कि आपस में प्रतिस्पर्धा करते हुये इन बिचौलियों द्वारा करवाये गये काम को बिना पैसा लिये सिर्फ कबाड़ में मिले सामान को ही अपनी मजदूरी मानकर काम करने को तैयार हो जाते हैं| हमें इन हुनरमंदों का सही उपयोग करके उन बिचौलियों को लात मारनी होगी जो इनका भरपूर शोषण कर रहे हैं|

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सोनिका क्रांतिवीर—- सोनिका क्रांतिवीर
sonikashiv@yahoo.com

भ्रष्टाचार विरूद्ध भारत जागृति अभियान से जुडी हुईं हैं !
सोनिका क्रांतिवीर का खुद के बारे में कहना हैं : मैं एक आम इन्सान हूँ इस देश में भ्रष्टाचार या कुछ यूँ कहा जाये, कि इन भ्रष्टाचारी नेताओं ने पूरे देश में भ्रष्टतंत्र का जाल तैयार कर दिया है, जिसमें ऊपर से लेकर नीचे तक कोई न कोई किसी न किसी रूप में बिक रहा है या बिकने को तैयार हैं| मगर आम इन्सान इस भ्रष्ट तंत्र द्वारा कुछ इस तरीके से बंध गया है कि वह इस चाहकर भी इसका विरोध करने का साहस नहीं कर पाता क्योंकि उसके पास इतना वक्त ही नहीं बच पाता है और गरीब परिवार तो खुद भूखे मरने की स्थिती में रहते हैं, तो वह क्या विरोध कर पायेंगे|

हमारा संगठन इन आम इन्सानों की लड़ाई के लिये जिम्मेदार अधिकारियों को अपने काम के प्रति ईमानदारी बनाये रखने के लिये कलम, विश्लेषण व कानून का सहारा लेकर मजबूर करने के लिये तत्पर है|

———*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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