दिल्ली,,
प्रख्यात रामकथा वाचक मुरारी बापू ने माना कि उन्होंने अंबानी बंधुओं के बीच चले कटु विवाद को हल करने के बाबत श्रीमती कोकिलाबेन अंबानी के आग्रह पर पहल की थी। “कोकिलाबेन मेरे गांव मुझ से मिलने के लिए आईं थीं जिससे कि उनके पुत्रों के बीच चल रहे विवाद को सौहार्दपूर्ण तरीके से हल किया जा सके। मैंने उन्हें यही कहा था कि एक साथ द्धेषपूर्ण तरीके से रहने से बेहतर है कि अलग-अलग प्रेम के साथ रहा जाए। कोकिलाबेन ने मेरे से कहा कि मैं यह बात लिख कर दे दूं। मैंने उनके कहने पर लिख भी दिया था,जिसे उन्होंने अपने पुत्रों को पढ़वाया होगा,” मुरारी बापू ने पहली बार यह रहस्योद्घाटन किया न्यूज 24 की प्रधान सम्पादक सुश्री अनुराधा प्रसाद के साथ उनके साप्ताहिक कार्यक्रम आमने –सामने में । इस दौरान मुरारी बापू ने राम से लेकर राजनेताओं और राजनीति की मौजूदा स्थिति से लेकर तमाम दूसरे मसलों पर पूछे गए सवालों के दो-टूक सारगर्भित उत्तर दिए।
पिछले करीब 50 वर्षों से मानसरोवर से लेकर हवाई जहाज तक पर रामकथा सुना चुके मुरारी बापू ने माना कि उनके पास बीच-बीच में लोग आते रहते हैं आर्शीवाद लेने के लिए। ‘ क्या आपके पास राजनीतिज्ञ भी आते हैं आर्शीवाद लेने के लिए ?’ मुरारी बापू ने कहा, “ हां,राजनीतिज्ञ भी आते हैं। नवदम्पती भी आते हैं। नेताओं से तो तो मेरा यही कहना रहता है कि वे समाज कल्याण के लिए कार्य करें। नवदम्पती को तो मैं कहता हूं कि वे परस्पर प्रेम बनाकर रखें।“
मुरारी बापू राजनीतिज्ञों को अस्वस्थ मानते हैं। उनका मानना है कि “ स्वस्थ लोग राजनीति नहीं कर सकते। जो भी राजनीति कर रहे हैं, वे कुछ मात्रा में तो अस्वस्थ हैं। सत्ता में रहकर आप स्वस्थ कैसे रह सकते हैं।“
‘ तो कैसे बदले और बेहतर हो राजनीति का चेहरा ? ’ मुरारी बापू कहने लगे, “नेताओं की सोच बदलनी होगी ताकि वे समाज और देश के मंगल के लिए कार्य करें। भारत में मतदाता हैं, नागरिक नहीं है। सबको मालूम है कि वोट कैसे प्राप्त किए जाते हैं।”
‘ तो आपको युवा नेताओं में उम्मीद की कोई किरण नजर आ रही है ?‘ मुरारी बापू ने कहा कि युवा होना तो ठीक है, पर प्रौढ़ता के महत्व को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। राष्ट्र चलाने के लिए धैर्य और शौर्य दोनों आवश्यक हैं।
‘ क्या आप देश की वर्तमान दशा से संतुष्ट है ?’ कुछ गम्भीर होते हुए मुरारी बापू कहने लगे, “ प्रसन्नता की कोई वजह तो नजर नहीं आ रही है। मैंने हरिद्धार में आयोजित एक आयोजन में प्रधानमंत्री का आहवान किया था कि उन्हें भीष्म की बजाय भीम बनने की आवश्यकता है। भीष्म बनकर बात नहीं बनेगी।“
राम के नाम यानी राम कथा के बढ़ते व्यवसायीकरण से संबंधित एक सवाल को सुनकर राम भक्त मुरारी बापू विचलित नहीं होते। वे इतना ही कहते हैं, “ मैं तो रामकथा सुनाने के बदले में एक पैसा भी नहीं लेता। पोथी लेकर आता हूं, पोथी लेकर चला जाता हूं। मैं मानता हूं कि धर्म धंधा नहीं हो सकता। “
‘ मुरारी बापू,आपका राम से अनुराग कब शुरू हुआ ?’ उन्होंने बताया कि उनका राम से पहला साक्षात्कार अपन दादा के माध्यम से हुआ। परमात्मा की कृपा तो रही ही। आप कह सकते हैं कि मां के गर्भ से ही राम से संबंध स्थापित हो गया। राम नाम में एसा रमा कि बाकी सबकुछ पीछे छूट गया। मैट्रिक में तीन बार फेल हुआ। पर मुझे न तो मेरे अध्यापकों ने और ने ही मेरे अभिभावकों ने कुछ कहा। उन्होंने साथ ही यह भी जोड़ा कि वे शिव और कृष्ण से भी दूर नहीं हो सकते। वे इनके भी करीब हैं। राम सत्य,कृष्ण प्रेम और शिव करुणा के प्रतीक हैं।
रामकथा वाचक के रूप में शुरूआती दिनों के अनुभवों का उल्लेख करते हुए मुरारी बापू ने बताया कि गोमुख से जब गंगा निकलती है तो उसकी धारा छोटी ही रहती है। गंगोत्री के रास्ते जब गंगा प्रयाग और गंगासागर तक पहुंचती है तो वो उसका रूप विशाल हो जाती है। मेरी यात्रा भी छोटी से बड़ी होती गई।
‘ आप राम को सर्वगुण सम्पन्न व्यक्तित्व मानते है ? ‘ वे कहते हैं कि हालांकि राम पर भी उंगुलियां तो उठीँ। पर उनका व्यक्तित्व युगों-युगों से आदर के रूप में देखा जा रहा है और देखा जाता रहेगा।
‘आप कथा सुनाते वक्त फिल्मी गीतों को भी उद्धत करते हैं। क्या यह सही है ?’ “ मैं कथा सुनाते वक्त कुरान,बाइबल,गुरुग्रंथ साहिब और तमाम दूसरे ग्रंथों को भी उद्धत करता हूं। यह सब सुनकर मेरे पास कथा सुनने के लिए आने वाले आनंदित भी होते हैं और हैरत भी करते हैं।”
और अंत में अपने व्यक्तित्व के संबंध में पूछे गए एक सवाल को उन्होंने एक उम्दा शेर कहकर बताने की कोशिश की। मुरारी बापू ने कहा, “ यह अजब सिलसिला है उसकी मोहब्बत का, न उसने कैद में रखा, न हम फरार हुए।“