अंगोला के बहाने इस्लाम को प्रतिबंधित करने की साजि़श? *

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mousqe demolish{ तनवीर जाफरी ** }
पश्चिमी देशों द्वारा इस्लामी देशों में लगातार की जा रही द$खलअंदाज़ी और सैन्य हस्तक्षेप  इस्लामी जगत में पश्चिमी देशों के विरुद्ध आक्रोश तथा हिंसा व आतंकवाद का रूप धारण करता जा रहा है। यह स्थिति गत 2 दशकों से यह संकेत दे रही थी कि हो न हो एक दिन इस्लाम धर्म को तथा इस्लाम धर्म के अनुयाईयों को संदेह की दृष्टि से देखा जा सकता है। इतना ही नहीं बल्कि यह भी महसूस किया जाने लगा कि इस्लाम धर्म को प्रतिबंधित करने की साजि़श भी रची जा सकती है। हालांकि इसकी शुरुआत किसी पश्चिमी देश से तो नहीं हुई परंतु ब्रिटेन के सबसे घनिष्ठ दक्षिणी अ$फ्रीकी देश अंगोला से ऐसी $खबरें प्राप्त हो रही हैं कि यहां सभी $गैर इसाई अल्पसंख्यक समुदाय व विश्वास के धर्मों व समुदायों को प्रतिबंधित करने का काम शुरु कर दिया गया है। 1975 में पुर्तगाल से स्वतंत्रता प्राप्त करने वाला अंगोला हालांकि अपने इस प्रकार के किसी आदेश को अंगोला के संविधान तथा वहां के $कानून के अंतर्गत् उठाया जाने वाला $कदम बता रहा है। अंगोला के $कानूनों के मुताबिक यहां किसी भी धार्मिक संगठन,समुदाय अथवा विश्वास के सदस्यों को धार्मिक मान्यता प्राप्त करने के लिए उनकी कम से कम एक लाख से अधिक की संख्या होना ज़रूरी है। इसके अतिरिक्त देश के 18 में से कम से कम 12 प्रांतों में उनकी उपस्थिति होना भी अनिवार्य है। इस अनुपात तक पहुंचने पर ही किसी भी धर्म,विश्वास अथवा समुदाय के लोगों को अंगोला में अपना धर्मस्थल निर्माण करने,धार्मिक स्कूल अथवा संस्था बनाने की अनुमति मिल सकती है तथा इसके लिए उन्हें लाईसेंस जारी किया जा सकता है। परंतु वर्तमान समय में अंगोला की लगभग 18 मिलियन की आबादी में मुसलमानों की संख्या केवल 90 हज़ार है।
अंगोला के उपरोक्त $कानून की आड़ में सबसे पहले इस्लाम धर्म व इससे जुड़े धर्मस्थल विशेषकर mousque demolishमस्जिदों व शिक्षण संस्थाओं को निशाना बनाया जा रहा है। हालंाकि मुसलमानों के धर्मस्थलों के विरुद्ध कार्रवाई की शुरुआत 2010 से ही हो चुकी है। गत् दो वर्षों में अंगोला में आठ मस्जिदों को ध्वस्त करने, उन्हें गिराए जाने अथवा जलाए जाने का समाचार है। अंगोला में पूरे देश में कुल 78 मस्जिदें हैं जिनमें राजधानी लुआंडा के अतिरिक्त अन्य सभी मस्जिदें सरकार द्वारा यह कहकर बंद करा दी गई हैं कि इनके पास मस्जिद बनाने अथवा इन्हें संचालित करने का उपयुक्त लाईसेंस नहीं है। लुआंडा सरकार द्वारा उठाए जाने वाला इस्लाम विरोधी $कदम वहां की इसाई बाहुल्य जनता का भी मनोबल बढ़ा रहा है। अंगोला सरकार जिस किसी मस्जिद को अवैध घोषित करती है उसे स्वयं मुसलमानों के हाथों से गिराए जाने के लिए 73 घंटों की समय सीमा निर्धारित करती है। समय सीमा बीत जाने के बाद सरकारी अमले के लोग तथा इस्लाम विरोधी इसाई जनता स्वयं आकर मस्जिद को या तो ध्वस्त करने लग जाती है या फिर उसमें आग लगा देती है। अंगोला सरकार द्वारा $गैर इसाई धर्मों के विरुद्ध इस प्रकार का $कदम उठाए जाने का कारण देश का सांस्कृतिक संरक्षण भी बताया जा रहा है।
अंगोला की इस घटना के बाद पूरे विश्व में इस बात को लेकर व्यापक बहस छिड़ गई है कि क्या अपने bannedसांस्कृतिक संरक्षण के नाम पर दूसरे धर्म व विश्वास के लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छीन लेना जायज़ है? क्या किसी देश को इस बात का ह$क हासिल है कि वह $कानून की आड़ में किसी धर्म व आस्था को $गैर $कानूनी या अवैध ठहरा सके? वैसे तो अंगोला में $खुद इसाई धर्म से संबंध रखने वाले लगभग एक हज़ार विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं। परंतु उनमें कैथोलिक इसाईयों की संख्या आधी से अधिक है जबकि एक चौथाई लोग प्रोटेस्टेंट विचारधारा से जुड़े इसाई हैं। जबकि मुसलमानों की जनसंख्या अंगोला की कुल जनसंख्या का मात्र एक प्रतिशत है। और यह लगभग सभी विदेशी हैं तथा पश्चिमी अ$फ्रीकी देशों तथा अन्य दूसरे देशों से अंगोला आए हैं। इन मुसलमानों में अधिकांशत: सुन्नी मुसलमान हैं। यहां विदेशी इसाई मिशनरीज़ भी का$फी सक्रिय हैं। अंगोला की स्वतंत्रता से पूर्व यानी 1975 से पहले तो पूरे अंगोला में मिशनरीज़ का बोलबाला था। परंतु अब अंगोला सरकार द्वारा कुछ स$ख्ती किए जाने के बाद पश्चिमी देशों द्वारा प्रायोजित मिशनरीज़ की संख्या में का$फी कमी आ चुकी है। अंगोला सरकार का मानना है कि मिशनरीज़ का देश में प्रचार-प्रसार यहां के नागरिकों में देश की स्वतंत्रता से पूर्व की भावनाओं का पोषण करता है।
बहरहाल,दक्षिण अ$फ्रीकी देश अंगोला का नाम अब दुनिया के पहले ऐसे देश के रूप में लिया जाने लगा है जिसने इस्लाम धर्म को प्रतिबंधित करने जैसा विवादित $कदम उठाया है। $खबरें हैं कि वहां राष्ट्रीय संस्कृति के संरक्षण के नाम पर दूसरे कई बाहरी धर्मों व मतों पर पाबंदी लगाए जाने का काम भी अंगोला सरकार द्वारा शुरु कर दिया गया है। अंगोला की सांस्कृतिक मंत्री रोसा क्रूज़ के अनुसार-‘न्याय और मानवाधिकार मंत्रालय ने इस्लाम को अंगोला में $कानूनी वैधता नहीं दी है इसलिए अगले आदेश तक देश की सभी मस्जिदें बंद रहेंगी’। इतना ही नहीं बल्कि अंगोला की सभी मस्जिदों को गिराए जााने के आदेश दिए जाने का भी समाचार है। सरकारी सूत्र इन आदेशों को किसी पूर्वाग्रह के अंतर्गत् उठाया गया $कदम मानने के बजाए यह कहकर अपने आदेश को उचित ठहरा रहे हैं कि अंगोला के $कानून व नियम पूरे न होने के कारण मस्जिदों को प्रतिबंधित किया गया है। सरकारी सूत्रों की मानें तो इनके पास उचित लाईसेंस नहीं है। परंतु अंगोला में सक्रिय इस्लामी संगठन का आरोप है कि इस देश में $गैर इसाई धर्मों व मतों के अनुयाईयों के साथ का$फी लंबे समय से सौतेला बर्ताव होता आ रहा है। उदाहरण के तौर पर यहां की सरकार ने देश के सभी धर्मस्थलों,धार्मिक संस्थाओं व संस्थानों में सरकार की ओर से एयरकंडीशंड लगवाए जाने का आदेश जारी किया था। परंतु अब तक अंगोला में जिन 83 स्थानों पर एसी लगाए गए हैं वे सभी स्थान या तो इसाई धर्म के चर्च हैं या इसाई धर्म से जुड़ी अन्य संस्थाएं। जबकि मुसलमानों की ओर से अपने धर्मस्थलों व धार्मिक संस्थानों में लगाए जाने हेतु जो 194 प्रार्थना पत्र दिए गए थे उनमें से किसी एक पर भी आदेश नहीं किया गया है। अंगोला सरकार द्वारा पक्षपात पूर्ण $फैसले लिए जाने का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है?download (1)
अंगोला में यदि कोई मुस्लिम लडक़ी स्वेच्छा से स्का$र्फ या हिजाब सिर पर रखकर स्कूल जाती है तो उसे मिशनरी स्कूल की अध्यापिका कक्षा में दा$िखल नहीं होने देती। इसाई मिशनरी ऐसी स्का$र्फधारी लडक़ी को अपनी सभ्यता व संस्कृति के विरुद्ध मानती है। हालंाकि इन स्कूलों के पास स्का$र्फ या हिजाब पहनने वाले बच्चों को कक्षा में दा$िखल न होने देने संबंधी कोई लिखित आदेश नहीं है फिर भी अध्यापिकाएं ऐसी लड़कियों को कक्षा में प्रवेश नहीं देतीं। हिजाब का विरोध करने वाले लोग अंगोला में सा$फतौर पर यह कहते सुनाई देते हैं कि देश छोड़ो या परदा छोड़ो। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अभी कुछ वर्ष पूर्व तक ही गृह युद्ध की त्रासदी का सामना करने वाले अंगोला के लिए किसी धर्म अथवा मत के विरुद्ध $कानून बनाना, उन्हें अमल में लाना तथा इस प्रकार दूसरे मत व विश्वासों के लोगों की भावनाओं को आहत करना किसी भी $कीमत पर मुनासिब नहीं है। अंगोला सरकार द्वारा अल्पसंख्यक मतों के लोगों के विरुद्ध उठाया जाने वाला इस प्रकार का $कदम जहां उन शक्तियों को बल प्रदान करेगा जोकि इस्लाम धर्म को आतंकवाद से जोडक़र देखने की कोशिश कर रही हैं। वहीं यह $कदम मुस्लिम जगत में एक और आक्रोश का कारण भी बन सकता है।इतना ही नहीं बल्कि अंगोला सरकार के इस $कदम से इस्लाम धर्म में सक्रिय आतंकवादी ता$कतों को भी सक्रिय होने का एक और बहाना मिल सकता है।
अंगोला सरकार द्वारा उठाए गए इस $कदम के परिणामस्वरूप दुनिया के कई उन मुस्लिम बाहुल्य देशों में भी इसका प्रभाव नकारात्मक पड़ सकता है जहां इसाई समुदाय के लोग अल्पसंख्या में रहते हैं। लिहाज़ा न केवल अंगोला बल्कि किसी भी देश के द्वारा उठाया जाने वाला ऐसा कोई $कदम सामुदायिक संघर्ष को हवा देने वाला $कदम ही माना जाएगा। दुनिया के किसी भी देश को यह अधिकार $कतई नहीं होना चाहिए कि वह  छोटी से छोटी संख्या रखने वाले समुदाय के धर्म,मत तथा विश्वास को मान्यता प्रदान करने अथवा न करने जैसे आदेश जारी करे या $कानून बनाए। यदि दुनिया का कोई देश किसी भी धर्म तथा विश्वास को समान आदर,सम्मान,सुविधाएं तथा प्राथमिकताएं नहीं दे सकता तो कम से कम उसे अपमानित करने अथवा उसके विरुद्ध साजि़श रचने या उसके धर्मस्थलों को गिराकर अथवा उनके धर्मग्रंथों को जलाकर उसकी भावनाओं को आहत करने का अधिकार अपनी राष्ट्रीय संस्कृति के नाम पर तो $कतई नहीं होना चाहिए।

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Tanveer Jafri**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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