हरीश रावत ने गंगा के कायाकल्प के लियें मागे केंद्र से 9222 करोड़ - दिया पूरा ब्योरा
आई एन वी सी ,
दिल्ली,
उराखण्ड सरकार ने केंद्र सरकार से उराखण्ड में गंगा के कायाकल्प के लिए राष्ट्रीय गंगा नदी बेसीन प्राधिकरण के तहत कुल 9222 करोड़ रूपए की मांग की है। इसके अतिरिक्त 25 मेगावाट तक की जलविद्युत परियोजनाओं की स्वीकृति का अधिकार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में दिए जाने का भी अनुरोध किया है। सोमवार को नई दिल्ली में केंद्रीय जलसंसाधन, नदी विकास तथा गंगा पुनरूद्धार मंत्री की अध्यक्षता में आयोजित एनजीआरबीए की चतुर्थ बैठक में प्रतिभाग करते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने नदियों को उनके उद्गम में ही दूषित होने से बचाये जाने व इसके लिये निवारक उपायों को अपनाये जानेे की आवश्यकता पर बल दिया।
मुख्यमंत्री ने उŸाराखण्ड में गंगा नदी के संरक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई कार्ययोजना की विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि राज्य में गंगा नदी एवं सहायक नदियों के किनारे 132 बस्तियाँ हैं। यहाँ घरेलू सीवरेज प्रणाली के लिए 7634 करोड़ रु0 की आवश्यकता है। यात्रा मार्ग एवं मेला क्षेत्रों में 730 ऐसे स्थल चिन्हित किये गये हैं जहाँ से यात्री चार धाम की यात्रा पर जाते हैं। इन स्थलों पर सामुदायिक शौचालय निर्माण के लिए 219 करोड़ की धनराशि प्रस्तावित है। नदी क्षेत्रों के किनारे 159 ऐसे स्थल चिन्हित किये गये हैं जहाँ पारम्परिक अंतिम संस्कार किये जाते हैं। यहाँ पर उन्नत काष्ट आधारित अथवा विद्युत श्मशान स्थापित किये जाने पर गंगा नदी में अपशिष्ट निपटान में कमी आयेगी। इस पर 52.47 करोड़ रु0 खर्च प्रस्तावित है। राज्य में 233 स्थल चिन्हित किये गये है जहाँ विकन्द्रीकृत जमीन भराई के साथ ही साथ ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन किये जाने की आवश्यकता है। इस पर 829 करोड़ 66 लाख़ रु0 खर्चा आयेगा। मुख्यमंत्री ने बताया कि चार धाम क्षेत्रों, मेला क्षेत्रों, यात्रा मार्ग एवं पर्यटक स्थलों पर 1223 स्थान चिन्हित किये गये हैं जहाँ 122 करोड़ 30 लाख रु0 की लागत से जैव उपचारित शौचालयों का निर्माण किया जाना है। उपरोक्त वर्णित सभी बुनियादी सुविधाओं को अंत में संचालन तथा रखरखाव हेतु स्थानीय निकायों को (यू0एल0बी0) को हस्तांतरित करना होगा, इसके लिये कार्मिकों का उचित प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण जरूरी है। इस प्रस्ताव की अनुमानित लागत 6 करोड़ 73 लाख रु0 है। आगुन्तक प्रवाह एवं विरासत मानचित्रण अध्ययन का कार्य नदी फ्रंट विकास(आरएफडी) हेतु ऋषिकेश एवं हरिद्वार में चल रहा है इसके प्रारम्भिक कार्य के लिये 300 करोड़ रु0 की आवश्यकता होगी। हरिद्वार एवं काशीपुर के औद्योगिक क्षेत्रों में अपशिष्ट उपचार सयंत्र निर्माण हेतु 25 करोड़ की धनराशि अपेक्षित है। मुख्यमंत्री ने कहा कि नियमों को लागू करने के लिये प्रवर्तन तंत्र को सुदृढ़ करना होगा। श्रमशक्ति को बढ़ाने तथा प्रयोगशालाओं के उच्चीकरण हेतु 10 करोड़ रु0. के प्रस्ताव प्रेषित किये गये हैं। ऊपरी गंगा नदी में जलीय जीवन के अध्ययन तथा रक्षा के लिये 3 करोड़ 92 करोड़ लाख रूपए, धार्मिक क्रियाओं से उत्पन्न बेकार सामग्री के प्रबन्धन हेतु एक तन्त्र विकसित करने के लिये रु0 4 करोड़ 60 लाख रूपए निवेश की आवश्यकता है। जबकि गंगा एवं इसकी सहायक नदियों के किनारे रहने वाले समुदायों की आजीविका गतिविधियों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने व इसके अध्ययन के लिये 15 करोड़ 29 लाख रु0 की आवश्यकता है। इस प्रकार, उत्तराखण्ड राज्य में गंगा के कायाकल्प हेतु एन0जी0आर0बी0ए0 के अर्न्तगत कुल 9222 करोड़ रु0 की आवश्यकता है।
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एन0जी0आर0बी0ए0 को जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के अधीन अधिष्ठापित करने के लिए बधाई देते हुए हुए कहा कि इसके दूरगामी लाभ होगें। गंगा नदी का उद्गम उत्तराखण्ड राज्य से है और इसकी बड़ी सहायक नदियाँ जैसे यमुना, अलकनंदा, मंदाकिनी, रामगंगा, और शारदा भी उत्तराखण्ड से ही निकलती हैं। आवश्यकता इस बात की है कि नदियों को उनके उद्गम में ही दूषित होने से बचाया जाये एवं इसके लिये निवारक उपायों को अपनाया जाये, तभी नदियों के प्रदूषण स्तर को नियंत्रित कर कम किया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार नदी के न्यूनतम पारिस्थितिक प्रवाह के विभिन्न पहलुओ के बारे में भी गम्भीर है। विशेषज्ञों के एक समूह को इसके हितधारकों के साथ संवाद स्थापित कर आम सहमति पर पहुँचना होगा। समस्त जलग्रहण क्षेत्र में नदियों के विभिन्न बिन्दुओं पर न्यूनतम प्रवाह की आवश्यकता का आकलन किया जाना है। यह न्यूनतम प्रवाह नदी के विभिन्न स्थानों पर, सहायक नदियों एवं नालों से अतिरिक्त जल प्रवाह के कारण भिन्न हो सकता है। एक आम सहमति बन जाने पर यह राज्य मानकों का पालन कर सकता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सामान्य मौसम में नदी का प्रवाह बहुत कम होने के कारण भण्डारण हेतु छोटे जलाशय बनाये जा सकते हैं और चरम मौसम में अतिरिक्त वर्षा के जल को इसमें भंडारित कर इसे फिर सामान्य मौसम में नीचे बहने वाली आवश्यक धारा प्रवाह को सुनिश्चित किया जा सकता है। राज्य में वनों, पंचायत एवं बंजर भूमि में जल धाराओं के रिचार्ज हेतु 1 लाख छोटे जलाशयों को निर्मित एवं पुर्नजीवित किया जाना प्रस्तावित किया है। राज्य ने अपने संसाधनों से अल्मोड़ा जिले में कोसी गगास एवं पौड़ी जिले में नयार नदियों के जल संग्रहण क्षेत्र के जलाशयों के कायाकल्प को हाथ में लिया है। इस प्रयास से उत्तराखण्ड से बहने वाली जलधाराओं के रिचार्ज में लगभग 3 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। उन्होंने एन0जी0आर0बी0ए0 को आर्थिक सहायता के लिये अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वच्छ भारत अभियान के माध्यम से सफाई पर अधिक ध्यान दिया गया है। यदि पहाड में सूखे जलाशयों के कायाकल्प एवं रिचार्ज हेतु एक चौथाई धनराशि भी दी जाती है तो नदियों में शुद्ध प्रवाह बढ़ेगा जिससे नदी की स्वंय सफाई क्षमता में वृद्धि होगी साथ ही साथ इससे नदियों के जलीय जीवन में भी सुधार में सहायता मिलेगी। यदि केन्द्र सरकार से सहायता मिलती है तो राज्य द्वारा नदियों के दोनो ओर 500 मी0 तक जैविक कृषि हेतु सीमांकन किया जा सकता है। इससे भूमिगत जल में कीटनाशक अवशेष जमा नहीं हो सकेंगे और नदियों में प्रवाहित नहीं हो पायेगंे। इस प्रकार गंगा, यमुना एवं दूसरी सहायक नदियों की पवित्रता इनके उद्गम स्थानों तथा राज्य की सीमा से बाहर प्रवाहित होने पर कायम रह सकती है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उŸाराखण्ड में ग्ंागा कार्य योजना चरण 1 एंव 2 के अर्न्तगत अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता एवं एन0जी0आर0बी0ए0 हेतु कुल 337.06 करोड़ रूपये स्वीकृत किये गये थे, जिसके अन्तर्गत ऋषिकेश एवं हरिद्वार में मलउपचार संयंत्र का निर्माण हुआ है सीवर लाइन्स एवं सीवेज पंपिग स्टेशन कई शहरों जैसे मुनी-की-रेती, गोपश्वर, देवप्रयाग आदि में स्थापित किये गये हैं। इसी प्रकार घरेलू सीवेज जो कि पूर्व में सीधे नदियों में छोड़ा जाता था इसे अब अंतिम निपटान से पहले उपचारित किया जा रहा है।