स्वयंभू ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों’ के यह हिंसक तेवर

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निर्मल रानी,,**

पिछले दिनों शिक्षक दिवस के अवसर पर जिस समय देश के अखबार,टीवी चैनल्स व सोशल वेबसाईटस पर गुरु-शिष्य के रिश्तों का बखान चल रहा था तथा इन माध्यमों से गुरु व शिष्य दोनों एक-दूसरे का आभार जताते नज़र आ रहे थे इसी दौरान मध्य प्रदेश राज्य से एक बार फिर दिल दहला देने वाला एक समाचार प्राप्त हुआ। समाचार के अनुसार भारतीय जनता पार्टी शासित इस राज्य में भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद तथा राष्ट्रीय स्वयं संघ सेवक परिवार के प्रमुख संगठन बजरंग दल से जुड़े कार्यकर्ताओं ने राज्य के बैतूल जि़ले में एक युवक को ज़िंदा जलाकर मार डाला। राहुल जोशी नामक यह छात्र पहले विद्यार्थी परिषद व बजरंग दल से जुड़ा था।

परंतु बाद में उसने राष्ट्रीय छात्र संगठन से अपना नाता जोड़ लिया था। बस, उसके पूर्व ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादी’ साथियों को जोशी का एनएसयूआई से नाता जोडऩा अच्छा नहीं लगा। और 31 अगस्त को कथित ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की शिक्षा प्राप्त किए उसके साथियों ने उसपर मिट्टी का तेल छिडक़ कर उसे ज़िंदा जला दिया। गत् तीन सितंबर को राहुल जोशी ने बैतूल के मजिस्ट्रेट के समक्ष अपना बयान दर्ज कराया जिसमें उसने कहा कि ‘उसे बजरंग दल वालों ने जलाया है। तीन-चार दिन पहले भी उन्होंने मुझे मारा था तब मैंने सहन कर लिया था। वह चाहते हैं कि मैं एनएसयूआई में काम नहीं करूं’। और इस बयान के रिकॉर्ड होने के बाद ही 4 सिंतबर को राहुल जोशी ने अपने प्राण त्याग दिए। बुरी तरह जले होने के बावजूद चार दिनों तक राहुल जोशी मौत से जूझता रहा। परंतु आख़िरकार जिंदिगी मौत के इस संघर्ष में मौत की जीत हो गई। सवाल यह है कि क्या इसी प्रकार ज़ोर-ज़बरदस्ती से फैलेगा देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद? क्या इस प्रकार की क्रूरतापूर्वक हरकतें तथा घृणित मंशा तालिबानी कारगुज़ारी का दूसरा रूप नहीं है?

इसी प्रकार कलयुग के इस दौर में ‘एकलव्य’ के देश भारत में अपने गुरु को कुछ अर्पित करने के बजाए अथवा उन्हें गुरु दक्षिणा देने के बजाए उन्हें अपमानित करने के कस्से भी कुछ ज़्यादा ही सुनाई देने लगे हैं। निश्चित रूप से देश के कई राज्यों से कभी-कभार शिष्य द्वारा अपने गुरुजन को अपमानित किए जाने की खबरें आती रहती हैं। परंतु इसे भी क्या एक इतिफ़ाक ही समझा जाए कि ऐसी घटनाओं में भी मध्य प्रदेश राज्य सबसे अधिक सुर्खयों में रहा है। और इस राज्य में शिक्षकों के साथ पेश आने वाली हिंसक घटनाओं में ज़्यादातर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्रों का ही हाथ बताया गया है। मिसाल के तौर पर इसी वर्ष मार्च महीने में भोपाल से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खंडवा नामक एक शहर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने एक स्थानीय कॉलेज के डीन पी पी शास्त्री के कार्यालय में जबरन प्रवेश किया। यह उपद्रवी छात्र वहां बैठे अशोक चौधरी नामक एक सहायक प्रोफ़ेसर के मुंह पर कालिख पोतने लगे। उसी समय वहां बैठे एक दूसरे प्रो$फेसर एसएस ठाकुर ने उत्पाती छात्रों की इस हरकत पर आपत्ति जताई तथा उन्हें ऐसा करने से रोकने का प्रयास किया। बस फिर क्या था। ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों’ की यह फौज प्रोफ़ेसर एस एस ठाकुर पर टूट पड़ी और उन्हें पीट-पीट कर गंभीर रूप से घायल कर दिया। इस घटना से सदमे में डूबे प्रो$फेसर ठाकुर की पिछले दिनों हृदय गति रुकने के कारण मौत हो गई।

2007 में भी इसी प्रकार की एक हिंसक घटना ने टी वी व अखबारों में प्रमुख स्थान लिया था। मध्य प्रदेश की प्रमुख धर्मनगरी उज्जैन में इन्हीं तथाकथित राष्ट्रभक्तों ने अपने एक प्रोफ़ेसर एच एस सब्बरवाल की पीट-पीट कर हत्या कर डाली थी। माधव कॉलेज उज्जैन के प्रोफ़ेसर एच एस सब्बरवाल छात्र संघ चुनावों के दौरान होने वाली अनिमितताओं को रोकने की कोशिश कर रहे थे। विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने प्रोफ़ेसर सब्बरवाल को चुनाव में दख़ल न देने की धमकी भी दी थी। परंतु प्रोफेसर सब्बरवाल अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे थे। उनकी कर्तव्य पालना विद्यार्थी परिषद के छात्रों को नहीं भाई। आखरकार हिंसा के इन पैरोकारों ने प्रोफेसर सब्बरवाल की पीट-पीट कर हत्या कर डाली। इस घटना का एक दर्दनाक पहलू यह भी है कि घटना के तीन वर्ष बाद अदालत ने आरोपियों के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण सभी 6 अभियुक्तों को बरी कर दिया। गोया प्रोफेसर सब्बरवाल के परिवार को शासन, प्रशासन यहाँ तक कि न्यायपालिका तक से न्याय नहीं मिल सका।

जबकि इस हत्या के बरी हुए अभियुक्त निश्चित रूप से अपने किए पर पछतावा करने के बजाए और बुलंद हौसलों के साथ दूसरे शिक्षक को अपमानित करने के लिए बाइज़्ज़त बरी हो गए। आखर क्या वजह है कि स्वयं को योग्य शासक बताने वाले शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल में शिक्षकों का इस हद तक अपमान किया जा रहा है? केवल अपमान ही नहीं बल्कि उनकी हत्या तक कर दी जाती है। इस प्रकार के अनेक छोटे-छोटे हादसे राज्य में अक्सर होते रहते हैं जिनसे राज्य की कानून व्यवस्था की हालत का तो अंदाज़ा होता ही है साथ-साथ यह भी पता चलता है कि जिस संगठन के लोग भारत वर्ष की प्राचीन संस्कृति के रखवाले होने का दम भरते हैं वही लोग भारतीय प्राचीन परंपरा में गुुरु द्रोणाचार्य व शिष्य एकलव्य के रिश्तों को तथा इसमें छिपे त्याग व श्रद्धा की भावना को किस प्रकार भूल जाते हैं।
मध्य प्रदेश के ही टीकमगढ़ क्षेत्र में 2008 में एक अध्यापक की पिटाई इन्हीं ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों’ द्वारा की गई थी। इस अध्यापक को उसकी तीन बेटियों के समक्ष बुरी तरह पीटा व अपमानित किया गया था। इस घटना में भी आश्चर्यजनक बात यह रही कि बजाए इसके कि अध्यापक की शिकायत पर दोषियों व अभियुक्तों के विरुद्ध पुलिस व प्रशासन द्वारा कोई स$ख्त कार्रवाई की जाती, बल्कि उस शिक्षक का ही दूसरे जि़ले में तबादला कर दिया गया। शिक्षक को बेवजह पीटने की सज़ा गुंडे छात्रों द्वारा दी गई और इसके बाद उसी अध्यापक को स्थानांतरण की सज़ा शासन द्वारा दे दी गई। क्या शिवराज चौहान के शासनकाल में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की रक्षा किए जाने का यही खास अंदाज़ है? ज़ाहिर है अध्यापक को पीटने वाले भी सांस्कृतिक राष्टवाद की दुहाई देने वाले लोग हैं तो वहां की सत्ता चलाने वाले भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का ही दम भरते हैं। तो क्या यह मान लिया जाना चाहिए कि सांस्कृतिक राष्ट्रवादी होने के यही मापदंड हैं? और जिस प्रकार सत्ता में आने के लिए यह शक्तियां एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाए रहती हैं तो क्या सत्ता में आने के बाद भी यह ताक़तें तथाकथित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के ऐसे ही नमूने अन्य राज्यों में भी पेश करती रहेंगी।

वैसे तो पूरी दुनिया में शिक्षकों व गुरुजनों को पूरा आदर व मान-सम्मान दिया जाता है। परंतु हमारे देश में तो गुरु को भगवान के समतुल्य माना गया है। संत कबीरदास ने अपने एक अतिप्रसिद्ध व प्रचलित दोहे में फ़रमाया है कि-

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाए। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाए।।

इस दोहे से साफ ज़ाहिर होता है कि हमारे देश में संतों द्वारा गुरु और गोविंद अर्थात् भगवान को समान दर्जा दिया गया है। और यह परंपरा कोई आज की नई परंपरा नहीं बल्कि संत कबीर और उससे भी पहले महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य के युग से चली आ रही है। परंतु बड़ी अजीब सी बात है कि यही उपद्रवी शक्तियां जो आज अपने गुरुओं को अपमानित करने पर तुली हैं। इसी विचारधारा के लोग हमारे देश की प्राचीन संस्कृति, प्राचीन परंपरा की रक्षा की भी दुहाई देते हैं। और बड़े गर्व से कहते हैं कि हम हैं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रखवाले। ऐसा नहीं लगता कि इस प्रकार की हिंसक प्रवृति रखने वाले, अपने गुरुओं के मुंह पर कालिख पोतने वाले तथा पीट-पीट कर अपने गुरुजनों की हत्या कर देने वाले लोग कभी देश की सांस्कृतिक धरोहर के प्रहरी भी हो सकते हैं? हां इनकी तुलना उन तालिबानी उपद्रवियों से ज़रूर की जा सकती है जो अपनी हठधर्मी व रूढ़ीवादी सोच से आगे बढक़र कुछ भी नहीं सोच सकते और अपनी अमानवीय करतूतों के चलते पूरी दुनिया में अपने धर्म को भी बदनाम व कलंकित करते रहते हैं।

*निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer)
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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