
सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों ने सड़क मंत्रालय से वाहनों में सीएनजी किट के रेट्रो-फिटमेंट के लिए डिजिटल निगरानी समेत कड़े नियम जारी करने का किया अनुरोध
अभी चल रही सीएनजी रेट्रो-फिटमेंट तकनीक में गैस टैंक, फ्यूल लाइन, इंजेक्शन सिस्टम और इलेक्ट्रिकल उपकरण ऐसे वाहन में लगाए जाते हैं, जो सीएनजी के अनुकूल बनाए ही नहीं गए थे और इससे पैदा होता है जान को खतरा
आई एन वी सी न्यूज़
दुनिया भर में बेहतर और अधिक सुरक्षित सड़कों के लिए काम कर रही जिनेवा स्थित वैश्विक सड़क सुरक्षा संस्था इंटरनेशनल रोड फेडरेशन (IRF) ने केंद्रीय भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से अनुरोध किया है कि सड़कों पर पहले से चल रही कारों में बाद सीएनजी किट के रेट्रो फिटमेंट (बाद में सीएनजी किट लगाए जाने) के लिए डिजिटल निगरानी प्रणाली समेत कठोर तकनीकी जरूरतों के नियम तैयार किए जाएं और फौरन लागू भी किए जाएं।
इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के मानद अध्यक्ष श्री केके कपिला ने कहा, “इंटरनेशनल रोड फेडरेशन (IRF) ने भारत में वाहनों के लिए क्रैश टेस्ट समेत नवीनतम वैश्विक सुरक्षा नियम लाने में भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के साथ अहम भूमिका निभाई। मंत्रालय ने मानव जीवन की रक्षा के लिए कानूनी एवं नियामक माहौल तैयार करने का काम किया है। यूरोपीय क्रैश टेस्ट नियम, मोटर यान संशोधन अधिनियम, एयरबैग का नियम, सीटबेल्ट रिमाइंडर, एबीएस इसके उदाहरण हैं। इसी तर्ज पर अब मंत्रालय को वाहनों में सीएनजी किट के रेट्रो-फिटमेंट के संबंध में भी कठोर नियम एवं दिशानिर्देश जारी करने की जरूरत है।”
उन्होंने कहा, “आज सड़कों पर यात्री वाहन और हल्के वाणिज्यिक वाहन समेत 18 लाख से ऊपर हल्के सीएनजी वाहन दौड़ रहे हैं और उनमें से 60-65 प्रतिशत में सीएनजी किट बाद में लगवाई गई है यानी रेट्रोफिट कराई गई है। सीएनजी रेट्रोफिट करने की जो तकनीक इस्तेमाल हो रही है, उसमें गैस टैंक, फ्यूल लाइन, इंजेक्शन सिस्टम और इलेक्ट्रिकल उपकरण ऐसे वाहन पर बाद में लगाए जाते हैं, जो सीएनजी के लिहाज से बनाया ही नहीं गया था। सीएनजी किट बनाने वाले भी “बिना मंजूरी की और अप्रमाणित” सीएनजी फ्यूल किट बेच रहे हैं।”
श्री कपिला ने कहा, “हम जानते हैं कि सरकार और निजी क्षेत्र ने NATRIP के जरिये ARAI, ICAT और NATRAX जैसी परीक्षण संस्थाएं खड़ी करने में हजारों करोड़ रुपये लगाए हैं ताकि मानव जीवन बचाने के लिए ये परीक्षण किए जा सकें। लेकिन अफसोस की बात है कि मुनाफा कमाने के चक्कर में वाहन कंपनियां सीएनजी रेट्रोफिट करने वालों के साथ मिलकर आम आदमी की जिंदगी की परवाह नहीं कर रही हैं क्योंकि ये रेट्रोफिट करने वाले नियमों का अनुपालन नहीं करने वाली सीएनजी किट वाहनों में लगाकर सुरक्षा नियमों का खुला उल्लंघन कर रहे हैं। सीएनजी किट का टाइप अप्रूवल मिलने के बाद वे वाहनों में घटिया किट लगा देते हैं क्योंकि आरटीओ के स्तर पर टाइप अप्रूवल नियमों का सख्ती के साथ अनुपालन ही नहीं कराया जाता। मंत्रालय भी ये बातें जानता है और उसने NIC की निगरानी में डिजिटल तकनीक के जरिये सीएनजी फिटमेंट की पूरी प्रणाली पर नजर रखने की कवायद की थी। NIC इस दिशा में कुछ कदम उठा चुकी है मगर पूरे देश में इसका असर अब भी नहीं दिखा है।”
उन्होंने कहा, “सीएनजी स्वच्छ ईंधन है और अगर सड़क मंत्रालय द्वारा निर्धारित क्रैश टेस्ट और अन्य मानकों के हिसाब से यह कार में सवार लोगों तथा राहगीरों की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं है तो प्रदूषण की चिंता को देखते हुए इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए। मगर सबसे पहले प्रदूषण नियंत्रण की बात करें तो हमें पता ही नहीं है कि रेट्रोफिट सीएनजी कारों से प्रदूषण में कमी आती भी है या नहीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक ही प्रकार की किट इंजन की ट्यूनिंग या प्रोग्रामिंग बदले बगैर तमाम तरह के इंजनों और वाहनों में लगा दी जाती है। फिटिंग के बाद यह देखने के लिए कभी कार की जांच ही नहीं की जाती कि किट उसके अनुकूल है या नहीं।”
श्री कपिला ने कहा, “बाद में सीएनजी किट लगाने से कार के बूट में करीब 100 किलो वजन बढ़ जाता है। इसमें फ्यूल लाइन्स और इलेक्ट्रिकल वायर कनेक्शन कार में जबरदस्ती फिट किए जाते हैं, जबकि उस कार में सीएनजी किट और ये उपकरण फिट करने के लिए जगह ही नहीं बनाई गई थी। किट लगाने के बाद यह सुनिश्चित करने के लिए जांच ही नहीं होती कि ब्रेक पहले की तरह कारगर हैं, क्रैश टेस्ट में सुरक्षा पहले जैसी है, फ्यूल लाइन्स बैटरी के करीब से तो नहीं गुजर रहीं और सुरक्षा के बाकी तकनीकी पहलू पहले जैसा काम कर रहे हैं या नहीं।”
यह स्पष्ट नहीं है कि सीएनजी किट बाहर से या डीलर के पास से लगवाई जाए तो टक्कर होने या किसी की जान जाने पर जिम्मेदारी किसकी होगी? सीएनजी को रेट्रोफिट करने वाले की? डीलर की? कनेक्शन लगाने वाले मैकेनिक की? कई वर्षों से हम बाद में सीएनजी किट लगवाने वाली कारों को सड़कों पर धूं-धूं कर जलते देख रहे हैं और असहाय हैं क्योंकि नियम-कानून की कमी के कारण इस समस्या से निपटने का कोई तरीका ही नहीं है। गाड़ी में बिजली का कनेक्शन करते समय रेट्रोफिट करने वाले कारोबारी कई बार सही कनेक्शन सुनिश्चित करने वाले स्प्रिंग युक्त कपलर के बजाय कुछ पैसे बचाने के लिए अपने मैकेनिक को तार का इंसुलेशन छीलकर तारों को आपस में बांधने जैसा जुगाड़ करने के लिए कह देते हैं। ये तार ढीले बंधे होते हैं और कई बार चिनगारी निकलने लगती है। सीएनजी में सामान्य तापमान पर भी आग लग सकती है और चिनगारी उठने पर तो कुछ सेकंड में ही कार लपटों में घिरकर जलने लगती है। कई बार तो कार में बैठे लोगों को बाहर निकलने का वक्त तक नहीं मिल पाता।
ऐसे गंभीर परिणामों को देखते हुए सड़क मंत्रालय को पूरे देश में सीएनजी किट फिटिंग की डिजिटल निगरानी शुरू करनी चाहिए ताकि बाद में किट लगाने पर वे पुर्जे ही इस्तेमाल हों, जिन्हें टेस्ट एजेंसियों ने मंजूरी दे दी है। यदि वे सीएनजी किट इस्तेमाल करना चाहते हैं तो उन्हें अपनी डिजाइन और प्रणाली की जांच CMVR के तहत निर्धारित नियमों के अनुसार टेस्ट एजेंसियों से करा लेनी चाहिए। CMVR के नियम UNECE के नियमों जैसे ही हैं, जिन्हें पूरी दुनिया में मान्यता प्राप्त है। हमें पूरी तरह दोषरहित प्रणाली लागू करनी होगी वरना हम सुरक्षा से समझौता करते रहेंगे और उचित किट नहीं होने तथा उसे बाद में लगवाने के कारण कार जलती रहेंगी और उनमें सवा लोग भी जलकर जान गंवाते रहेंगे।