विकराल रूप धारण करती नक्सल समस्या *

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Jharkhand News, Jharkhand Hindi News,Naxals In Jharkhand,Naxal ,Naxalite, Naxalism , Maoist Naxal ,Jharkhand records highest Naxal violence,War against Naxalites goes digital in Jharkhand,War against Naxalites , naxali{ तनवीर जाफरी ** } छतीसगढ़ में पिछले दिनों बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी की बाईस वाहनों के साथ चल रही परिवर्तन यात्रा पर माओवादियों द्वारा एक बड़ा हमला किया गया जिसमें 29 लोगों के मारे जाने की $खबर है। चंूकि इस हमले में कांग्रेस पार्टी के कुछ राज्यस्तरीय शीर्ष नेताओं को निशाना बनाया गया तथा विद्याचरण शुक्ला जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी नक्सलियों के निशाने पर रहे इसलिए यह हमला और ज़्यादा चर्चा में है। इस घटना के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तथा कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का आनन-फ़ानन में छत्तीसगढ़ का दौरा किया जाना तथा मृतकों के परिजनों को सांत्वना देना व घायलों से मुला$कात करना घटना के महत्व को और भी बढ़ा देता है। अन्यथा यह कोई पहला हादसा नहीं है जबकि नक्सलियों द्वारा 29 लोगों की नृशंस हत्या की गई हो। अभी गत् वर्ष ही इन्हीं लोगों ने अर्धसैनिक बलों के 86 जवानों को एक साथ शहीद कर दिया था। अर्धसैनिक बलों व अन्य सुरक्षाकर्मियों पर तो प्राय: नक्सली हमले होते ही रहते हैं। परंतु मीडिया अथवा सरकारें जवानों पर होने वाले हमलों को संभवत: इतनी अहमियत नहीं देतीं जितनी कि कांग्रेस नेताओं पर हुए हमले के बाद देखा जा रहा है। छत्तीसगढ़ की इस ताज़ातरीन घटना के बाद एक बार फिर इस विषय पर बहस छिड़ गई है कि आ$िखर इस समस्या का समाधान है क्या? कोई हल है भी या नहीं? नक्सल व माओवादियों द्वारा बेगुनाह लोगों की हत्याओं का यह सिलसिला आ$िखर कभी थमेगा भी या नहीं? इन समस्याओं का जि़म्मेदार है कौन? कब तक जारी रहेगा यह सिलसिला? इनकी बढ़ती ता$कत का आ$िखर रहस्य क्या है? भविष्य में इनके लक्ष्य व इरादे क्या हैं?Jharkhand News, Jharkhand Hindi News,Naxals In Jharkhand,Naxal ,Naxalite, Naxalism , Maoist Naxal ,Jharkhand records highest Naxal violence,War against Naxalites goes digital in Jharkhand,War against Naxalites , naxali1
कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुए हमले में माओवादियों ने मुख्य रूप से महेंद्र कर्मा तथा नंद कुमार पटेल नामक राज्य के दो प्रमुख कांग्रसी नेताओं को निशाना बनाया। इस घटना के बाद सीपीआई(माओवादी) के एक नेता गुडसा उसेंडी ने एक वक्तव्य जारी किया जिसमें उन्होंने इस घटना में निशाना बनाए गए नेताओं के विषय में तथा उनपर आक्रमण के बारे में अपनी बातें कही गईं। उसेंडी के अनुसार -‘छत्तीसगढ़ के पूर्व गृहमंत्री तथा छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष नंद कुमार पटेल दमनकारी नीतियां लागू करने के दोषी थे। वे दमनचक्र चलाने में आगे थे। पटेल के गृहमंत्री काल में ही पहली बार बस्तर क्षेत्र में अर्धसैनिक बलों की तैनाती हुई थी।’ इसी प्रकार माओवादी नेता ने महेंद्र कर्मा के विषय में कहा कि -‘कर्मा का संबंध एक सामंती माझी परिवार के साथ था।  उनका परिवार भूस्वामी होने के साथ-साथ आदिवासियों का शोषक व उत्पीडक़ भी रहा है।’ कर्मा सलवा जुडूम अभियान के जनक थे। उसेंडी के अनुसार-‘एक हज़ार से अधिक लोगों की हत्या कर 640 गांवों को $कब्रगाह में परिवर्तित कर हज़ारों घरों को लूट कर मु$र्गों,बकरों तथा सुअरों आदि को खाकर तथा दो लाख से ज़्यादा लोगों को विस्थापित कर एवं पचास हज़ार लोगों को बलपूर्वक राहत शिविरों में घसीट कर सलवा जुडूम लोगों के लिए अभिशाप बना था और यह हादसा सलवा जुडूम के हाथों हुई हत्याओं का बदला है जिनकी सलवा जुडूम के गुंडों व सशस्त्र बलों के हाथों हत्या की गई थी।’
छत्तीसगढ़ में दिन-दहाड़े एक साथ हज़ारों पुरुष व महिला माओवादियों द्वारा घात लगाकर किए गए इस हमले के बाद न सि$र्फ माओवादी नेता उपरोक्त बयान देकर राज्य और केंद्र की सरकारों के सामने चुनौती पेश कर रहे हैं बल्कि गुप्तचर एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार इस घटना के पश्चात छत्तीसगढ़ से लेकर झारखंड,आंध्रप्रदेश तथा उड़ीसा के माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में इनके द्वारा जश्र भी मनाया जा रहा है। यही नहीं बल्कि अब इस बात की भी $खबर आ रही है कि माओवादी अब संभवत: जंगलों व सुनसान क्षेत्रों से बाहर निकल कर बड़े शहरों में अपने लक्ष्यों को निशाना बनाने की योजना बना रहे हैं। और यदि $खुदा न $ख्वास्ता ऐसा हुआ तो आतंकवाद तथा स्थानीय स्तर पर दिनोंदिन बढ़ती जा रही अराजकता व आपराधिक गतिविधियों का सामना कर रही सरकार के समक्ष $कानून व्यवस्था बनाए रखने की एक और बड़ी चुनौती सामने आ सकती है। $खबर इस बात की भी है कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं को निशाना बनाने के बाद अब माओवादी भारतीय जनता पाटी के नेताओं को उचित समय व स्थान पर अपना निशाना बनाए जाने की $िफराक़ में हैं। क्योंकि उनका मानना  है कि कांग्रेस व भाजपा दोनों ही उनकी नज़रों में पूंजीवादी व्यवस्था के पोषक हैं तथा इसे बढ़ाने व संरक्षण देने वाले दल हैं। लिहाज़ा उनकी नज़रों में दोनों ही दल एक समान हैं।
कांग्रेस नेताओं पर हमले के बाद इस बात की चर्चा भी हो रही है कि माओवादियों के विरुद्ध अर्धसैनिक बलों द्वारा अथवा सरकार की ओर से की जाने वाली कार्रवाई क्या पर्याप्त है? गोया माओवादियों अथवा नक्सलियों की हिंसक गतिविधियों को प्रतिहिंसा के साथ कुचलने के उपायों व संसाधनों को लेकर चर्चा की जा रही है। यदि हम इस पहलू पर $गौर करें तो हमें यह नज़र आएगा कि गत् वर्ष जब अर्धसैनिक बलों के 86 जवानों को माओवादियों ने अपना निशाना बनाया था उस समय भी इस बात को लेकर चर्चा चली थी कि माओवादी प्रभावित हज़ारों किलोमीटर का वह जंगली क्षेत्र जोकि छतीसगढ़, मध्यप्रदेश,उड़ीसा,आंध्रप्रदेश, व झारखंड के क्षेत्रों में फैला हुआ है उसे सेना के हवाले कर दिया जाना चाहिए। इतना ही नहीं बल्कि इस विशाल जंगली एवं बीहड़ क्षेत्र के बीचोबीच एक सैन्य बेस कैंप बनाने का भी प्रस्ताव था। जिसके कारण सेना का आवागमन उस सुनसान एवं जंगली माओवाद प्रभावित क्षेत्र में शुरु होता तथा सेना की सक्रियता के भयवश माओवादी उन जंगलों से पलायन करने पर मजबूर होते। पंरतु उस समय भी भारतीय सेना ने ऐसी किसी योजना को अपने हाथों में लेने से इंकार कर दिया था। सेना का तर्क था कि उसका प्रशिक्षण व तैयारी सीमा पार के दुश्मनों से लडऩे के लिए होती है। उनके  हथियार भी उसी स्तर के होते हैं। अत: स्वेदशी माओवादियों व नक्सलवादियों से लडऩा या उनके विरुद्ध किसी प्रकार का सैन्य आप्रेशन करना सेना के लिए संभव नहीं है। यही बात पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुए हमले के पश्चात रक्षामंत्री ए के एंटोनी द्वारा भी इस प्रकार से कही गई कि छत्तीसगढ़ में सेना की तैनाती का कोई इरादा नहीं है। सेना की तैनाती उस क्षेत्र में न किए जाने के बारे में चाहे जो भी कारण बताए जा रहे हों तथा तर्क भी जो चाहे दिए जाएं परंतु $िफलहाल तो सा$फतौर पर यही दिखाई दे रहा है कि भारतीय सेना इन शक्तियों से मु$काबला नहीं करना चाह रही है। अब इसका वास्तविक कारण क्या यही है जो सेना के जि़म्मेदार लोगों द्वारा बताया जा रहा है अथवा कोई ऐसा कारण जिसे खुलकर बताया नहीं जा सकता? इस विषय पर कुछ कहना मुनासिब नहीं है।  Jharkhand News, Jharkhand Hindi News,Naxals In Jharkhand,Naxal ,Naxalite, Naxalism , Maoist Naxal ,Jharkhand records highest Naxal violence,War against Naxalites goes digital in Jharkhand,War against Naxalites , naxali2
जहां तक माओवादियों तथा दूसरे वामपंथी हिंसक आंदोलन चलाने वाले संगठनों की रणनीति का प्रश्र है तो निश्चित रूप से वे एक लंबी दूरगामी तथा जनहितैषी दिखाई देने वाली एवं तथाकथित समतामूलक आंदोलन को संचालित कर रहे हैं। वे पंूजीवादी व्यवस्था, विदेशी पंूजीनिवेश तथा सामंती व्यवस्था के विरुद्ध हैं। लिहाज़ा वे सशस्त्र क्रांति के बल पर केवल सत्ता में ही नहीं बल्कि पूरे देश की व्यवस्था में परिवर्तन लाने की बात करते हैं। उन्हें यह बात भलीभांति मालूम है कि उनसे मु$काबला करने के लिए पहले राज्य सरकार की पुलिस उनका मु$काबला करेगी और उसकी हिम्मत पस्त होने के बाद अर्धसैनिक बलों को उनके मु$काबले के लिए उतारा जाएगा। और जब अर्धसैनिक बल भी इनसे मु$काबला करने में डरने,घबराने या कतराने लगेंगे अथवा अपनी हार मान बैठेंगे फिर अंत में सेना ही एकमात्र विकल्प बचेगी जिसको कि सरकार इनके विरुद्ध प्रयोग कर सकती है ऐसा लगता है कि अब वह स्थिति $करीब आ पहुंची जबकि अर्धसैनिक बल इनके समक्ष पस्त होते दिखाई दे रहे हैं। इसका प्रमाण केवल अर्धसैनिक बलों की माओवादियों के हाथों हो रही हत्याएं ही नहीं बल्कि यह भी है कि अर्धसैनिक बलों के तमाम अधिकारी व सिपाही अब माओवाद व नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ड्यूटी पर जाने के बजाए वी आर एस लेना ज़्यादा पसंद करते हैं। कई लंबी छुट्टियों पर चले जाते हैं। तजुर्बेकार भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी भी उन क्षेत्रों में जाना नहीं चाहते। ऐसे में सरकार नए प्रशिक्षित भारतीय पुलिस सेवा के $गैर तजुर्बेकार युवा अधिकारियों को वहां भेजकर माओवादियों से मु$काबला करने की योजना बनाती है। इन हालात को देखकर इस नतीजे पर आसानी से पहुंचा जा सकता है कि नक्सल समस्या अब इतनी छोटी व आसान समस्या नहीं रह गई है जिससे कि रातोंरात आसानी से निपटा जा सके। $खासतौर पर हमारे देश की उन ढुलमुल सरकारों के लिए तो $कतई आसान नहीं जो गंभीरता व ईमानदारी के साथ इन समस्याओं की जड़ों में जाने का प्रयास नहीं कर पातीं। बजाए इसके हिंसा का जवाब प्रतिहिंसा से देकर ऐसी समस्याओं में जलती आग में घी डालने का काम करती है। और शायद यही वजह है कि यह समस्या हल या समाप्त होने के बजाए और अधिक विकराल रूप धारण करती जा रही है।  

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Tanveer-Jafri-columnis-Author-Tanveer-Jafri-Former-Member-of-Haryana-Sahitya-Academy-Shasi-ParishadTanveer-Jafri-writer-columnist-based-in-Haryana**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.Contact Email : tanveerjafriamb@gmail.com
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