लोक कलायें मनुष्यता को बचाने की दशा में लोक आराधना का मार्ग प्रशस्त करती हैं ! साथ ही क्षेत्रीय भाषा, अस्मिता, संस्कृति और सामाजिक जुडाव का काम करती हैं ! भगवान राम ने भी लोक आराधना के लिए अपनी पत्नी का भी त्याग कर दिया ! उक्त आशय के विचार राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष एवं प्रख्यात पत्रकार बलदेव शर्मा ने आज यहाँ लोकमंगल कि रजत जयंती पर मंडपम सभागार में आयोजित लोक कलाओं के संरक्षण विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए व्यक्त किये ! उन्होंने नगर और गाँव में बसने वाले समाज और उसकी संस्कृति को लोक की संज्ञा देते हुए स्पष्ट किया किया कि लोक संस्कृति समाज की सांझी विरासत होती है ! रामचरितमानस को लोक काव्य निरूपित करते हुए उन्होंने राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त की कृति साकेत की पंक्ति “खोकर रोये सभी मैं पाकर रोया” को भी उधृत किया ! समाज में संवाद की अनिवार्यता पर बल देते हुए आज जब शब्द बिखर रहे हैं ऐसे में लोक कलायें मनुष्यता को बचाने में महत्वपूर्ण कारक हो सकती हैं ! अत: लोक कलाओं का पूरी समग्रता से संरक्षण करना प्रासंगिक है !
माधवराव सप्रे संग्रहालय भोपाल के संस्थापक पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर ने कहा कि हमारे कई परम्परागत ज्ञान, विधाएं लोप हो रही हैं यह चिंता का विषय है ! लोक कलाकार हमारे असली स्वरूप और संस्कृति को संभाल कर रख रहे हैं अत: लोक कलाओं का दस्तावेजीकरण तथा संग्रहालयों की महती आवश्यकता साथ ही लोक कलाओं को पाखंड और नाटकीयता से बचाना होगा ! लोक कलाओं के संरक्षण का समाधान शासन प्रशासन और राजनीत के वश के बाहर है ! दर्शल यह काम समाज करता है और समाज को ही करना है ! शास्त्रार्थ की भारतीय परंपरा का स्मरण करते हुए उन्होंने विधायिका और समाज में बढ़ती संवाद हीनता और हिंसा के प्रति गहरी चिंता जतायी साथ ही उन्होंने कहा कि लोक संस्कृति मनुष्य को बेहतर मनुष्य बनाती है ! और लोक कलायें इस दिशा में अपना विशेष महत्त्व रखती हैं ! आज की संगोष्ठी की कामयाबी से इतने आह्लादित थे कि आज की आनंद की जय के उदघोष के साथ अपने वक्तव्य की समाप्ति की !
निर्वाचन आयोग की ब्रांड अम्बेसडर एवं प्रख्यात लोक गायिका विशिष्ट वक्ता श्रीमती मालिनी अवस्थी ने अपने जीवन से जुड़े अनुभव सुनाते हुए कहा कि शास्त्रीय संगीत कि बंदिशें आंचलिक भाषा से ही जन्मी हैं फिर लोक कलाओं एवं लोक कलाकारों से दोयम दर्जे का वयव्हार क्यों ? उल्लेखनीय है कि उन्होंने भारतीय समज में लोक कलाओं को सम्मनित दर्जा दिलाने के लिए लम्बा संघर्ष किया है ! श्रीमती अवस्थी ने कहा कि लोक परम्पराओं के निर्वहन का काम समाज का है राजाओं और फिर शासन प्रशासन ने तो शास्त्रीय कलाओं को ही पहचाना और सम्मान दिया लोक कलाओं को तो वास्तव में समाज ने ही सींचा है ! लोक संगीत जाति पाति ऊंच नींच का भ्रम तोड़ते हुए सामाजिक समरसता का विस्तार करता है ! अपने भाव पूर्ण उद्बोधन में फगुवा, चेती, विदाई, मंडप, सोहर, धोविया आदि के उदाहारण देकर पूरी वजनदारी से अपनी बात रखी ! अपनी बात को बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि हर लोक गीत एक कहानी कहता है लोक संस्कृति और लोक साहित्य का उदाहरन देते हुए कहा कि डेढ़ सौ साल पहले जो भारतीय फिजी गए थे उनके बच्चे आज भी हिंदी और अवधी को संरक्षित करते हुए रामायण और हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं ! उन्होंने अपने उद्बोधन में दिवंगत लोक कलाकारों का स्मरण करते हुए कहा कि वाचिक परम्परा का जितना क्षरण विगत बीस वर्षों में हुआ है उतना पहले कभी नहीं हुआ था ! श्रीमती मालिनी ने लोकमंगल के निदेशक अयोध्या प्रसाद गुप्त ‘कुमुद’ जी की प्रतिबध्यताऔर सक्रियता की सराहना करते हुए इस सार्थक आयोजन को अनुकरणीय बताया !
जनजातीय लोक कलाओं के मर्मज्ञ श्री बसंत निर्गुने ने अपने अकादमिक संबोधन में लोक कलाओं के संरक्षण में भारतीय दृष्टि विकसित करने की वकालत की ! उन्होंने कहा कि लोक कलाओं की वाचिक परंपरा श्रुति और स्मृति में जीवन का अभिभाज्य अंग थी ! उनका प्रदर्शन कारी रूप और दस्तावेजी करण के लिए संवेदनशीलता अनिवार्य है ! लोक कलाओं के संग्रहालय अथवा प्रदर्शन मात्र उनके परिचायक होते हैं उनका संरक्षण तो वास्तव में समाज में ही होता है ! अपनी संस्कृति के प्रति शहरी लोंगों में उपेकः का भाव है जबकि जनजाति के लोंगों ने लोक संस्कृति को सहेजा है !
अखिल भारतीय संस्कार भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री गणेश पन्त रोड़े ने जनप्रबोधन की शक्ति पर बल देते हुए कहा कि ईश्वर ने हमें जो लोक कला दी है उससे अपने समाज को आनंदित करना चाहिए जिससे समाज में एकता का भाव जागृत हो !
संगोष्ठी को हरिप्रसाद, गिरीश चन्द्र मिश्र, डॉ कुमारेन्द्र सिंह, डॉ, हरिमोहन पुरवार, डॉ राकेश नारायण दिवेदी ने लोक कलाओं के संरक्षण की दशा में महत्त्व पूर्ण सुझाव दिए ! संगोष्ठी के प्रारंभ में लोकमंगल के निदेशक श्री अयोध्या प्रसाद गुप्त कुमुद ने विषय परिवर्तन करते हुए उरई के इस तीन दिवसीय महोत्सव को लोक कलाओं के संरक्षण में अग्रगामी प्रयास निरुपित किया ! संस्कार भारती के संस्थापक बाबा योगेन्द्र ने सभी अतिथिओं को स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया ! संचालन दीप्ति कुशवाहा ने तथा सभी का आभार लोकमंगल की अध्यक्षा डॉ रेनू चंद्रा ने व्यक्त किया !
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