लानत है नादानी पर, रेत का घर और पानी पर

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madni{ वसीम अकरम त्यागी**}
जब – जब उत्तर प्रदेश में सत्ता का हस्तांतरण होता है तो कुछ इमारतों, कुछ शहरों, नगरों, योजनाओं के नाम बदल दिये जाते हैं। उसी क्रम में मौजूदा सरकार सहारनपुर में बसपा शासन में बने कांशीराम मैडिकल कॉलेज का नाम बदलकर शैख उल हिंद करने जा रही है। आखिर क्या मिलेगा इस बदलेगी राजनीती से अगर नाम रखने का इतना ही शौक है तो नये कॉलेज का निर्माण किया जाता सपा सरकार जाट मुस्लिम भाईचारे को तो खा ही चुकी है अब दलितों और मुस्लिमों के बीच भी खाई को चौड़ी करने जा रही है। ऊपर से तुर्रा यह कि इससे मुस्लिमों में शिक्षा का स्तर बढ़ेगा यह अजीब पहेली समझ से बाहर है किसी संस्थान का नाम बदल देने से क्या किसी कौम का मुस्तकबिल बदल सकता है ? बेशक शैख उल हिंद बड़ी शख्सियत थे मगर क्या कांशीराम किसी शख्सियत का नाम नहीं है ? क्या वह नाम नहीं है जिसने राष्ट्रीय स्तर पर दलितों के लिये वह काम किया जिसे बाबा अंबेडकर नहीं कर पाये ? क्या यह आपसी सदभाव को ठेस पहुंचाना नहीं है ? क्या यह मुस्लिम तुष्टीकरण का हौवा खड़े करने वालों को एक और मुद्दा देना नहीं है ? और इससे भी शर्मनाक जमीयत उलेमा हिंद (अ) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का यह कहना कि सपा की रैली में जमीयत के लोग उनकी हौसला अफजाई करें इतना ही नहीं कल मुजफ्फरनगर में उनके गुट के पदाधिकारियों ने बाकायदा एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया और उसमें कहा कि 11 फरवरी जमीयत के कार्यकर्ता उनके साथ रहेंगे और मौलाना अरशद मदनी के गुट वाली जमीयत मुलायम सिंह यादव के काफिले की शोभा बढ़ाने के लिये सौ गाड़ियों का भी इंतजाम करेंगी जो मुजफ्फरनगर से लेकर सहारनपुर तक मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश की कैबिनेट के काफिले में शामिल होंगे।

यहां तक बात सही हर शख्स को अपना राजनीतिक निर्णय का लेने का अधिकार जम्हूरियत देती है। मगर क्या उस संप्रदाय विशेष के प्रति उनकी जवाबदेही नहीं बनती जिसकी वजह से वे रहबरे मिल्लत, रफीकुल मोमीनीन, बने ? जिस मुजफ्फरनगर में अरशद मदनी गुट ने रैला निकालने और मुलायम सिंह यादव का समर्थन देने का ऐलान किया है उसी मुजफ्फरनरग की सूनी हुई बाहें मुलायम सिंह यादव को कौस रही हैं, क्योंकि उन्हें दंगों के जख्म  दिये। कोई वुस्तानवी कोई महमूद मदनी अगर कथित सैक्यूलर पार्टी के खिलाफ एक लफ्ज भी कह देता है तो उसके कपड़े में उतारने में सो कॉल्ड मुस्लिम रहनुमा जरा भी देर नहीं करते, मगर यहां उल्टा हो रहा है मुलायम सिंह जिनके दामन पर दोनों संप्रदायों के खून के छींटे हैं  उनका खुलकर समर्थन किया जा रहा है। मगर किसी तरफ से कोई आवाज नहीं आ रही है ये कैसा दौगलापन है छद्म मुस्लिम रहनुमाओं द्वारा। क्या जमीयत से भी बड़ा कोई मुस्लिम संगठन है कोई इस देश में ? नहीं । और वही संगठन जिसकी एक आवाज पर लाखों लोग कभी राम लीला मैदान तो कभी आजाद मैदान का रिकार्ड तोड़ देते है अब स्वार्थी होता जा रहा है। ठीक है उन्हें राजनीती करनी है तो करिये राजनीति फिर क्यों दंभ भरते हो मुस्लिम रहनुमा होने का ? फिर क्यों देते हो समर्थन उन्हें जिन्होंने वोट के बदले मौत दी ? फिर क्यों खड़े होते हो उनके साथ जाकर जिनके हाथ बेगुनाहों के खून से सने हैं ? हो सकता है मौलाना अरशद मदनी राज्य सभा का टिकिट चाहते हैं और वो टिकिट उन्हें मिल भी गया लेकिन उसका वे करेंगे क्या ? अब से पहले भी वे राज्य सभा का टर्म पूरा कर चुके हैं और ये उस दौर की बात है जब बटला हाऊस फर्जी एनकाउंटर हुआ और वे कांग्रेस के सांसद थे क्या बिगाड़ लिया उन्होंने कांग्रेस का ? क्या उन्होंने कभी सरकार पर दबाव डाला आरक्षण के लिये ? क्या उन्होंने कभी कहा कि श्री कृष्ण कमीशन की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में किस लिये डाला गया है ? क्या उन्होंने कभी कहा कि मुसलमानों की बदहाली और सुझाव जानने के लिये बने रंगनाथ मिश्रा, और सच्चर समिती की सिफारिशों को लागू किया जाये ? चलो छोड़ो वह केंद्र का मामला है फिलहाल जिस पार्टी विशेष की वे तरफदारी कर रहे हैं वही पार्टी विशेष आर डी निमेष आयोग को अपने नीचे दबाये बैठी है। क्या उसे लागू करने के लिये उन्होंने कोशिश की ? अफसोस उसके बाद भी ये रहबरे मिल्लत, कैसे आखिर ? बेशक मौलाना सौदेबाजी करें, बेशक वे मुलायम सिंह की चाटुकारिता करें। मगर इस तरह नहीं उन्हें चाहिये था कि आरक्षण दे दो, निमेष आयोग की रिपोर्ट लागू कर दो मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ितों को इंसाफ दिला दो। अगर ऐसा होता तो मौलाना समर्थन देने के लिये तैयार हैं मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया एक अस्थायी कुर्सी को पाने के लिये मुसलमानों की भावनाओं के साथ दलितों की भी भावनाओं को बेच डाला। ताकि दलित और मुसलमान आपस में लड़ते रहे।
नोट – मौलाना अरशद मदनी का फोटो इस हॉर्डिंग पर लगा है आप गौर से देखिये। 

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वसीम अकरम त्यागी**वसीम अकरम त्यागी
युवा पत्रकार
9927972718, 9716428646
journalistwasimakram@gmail.com

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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