रामज़ादों के ऐसे बोल?

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SADHAVEE NIRNJANA,cabinet minister sadhvi nirnjana– तनवीर जाफ़री –
भारतीय राजनीति में मर्यादा,विवेक तथा सद्भावना को तिलांजलि देने का एक और उदाहरण पिछले दिनों दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान हो रही भारतीय जनता पार्टी की एक जनसभा में उस समय देखने को मिला जबकि स्वयं को साध्वी कहने वाली तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार में शामिल की गई केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण राज्यमंत्री निरंजन ज्योति ने भारतीय समाज को बड़े ही गंदे व घटिया शब्दों द्वारा दो भागों में बांटने की कोशिश की। जिस पक्ष यानी भाजपा की सरकार बनाने की वह पैरवी कर रही थी उस पक्ष को उन्होंने ‘रामज़ादों’ यानी भगवान राम की औलादों का नाम दिया जबकि दूसरे पक्ष को जिसमें कि सभी गैर भाजपाई शामिल हैं !
उन्हें ‘हरामज़ादों’ जैसे गंदे,अभद्र,अशिष्ट व गाली समझे जाने वाले अपशब्द के साथ संबोधित किया। जैसीकि उम्मीद थी साध्वी निरंजना ज्योति के इस बेहूदे,गैरजि़म्मेदाराना अपशब्द के बाद संसद से लेकर टेलीविज़न की बहस, संपादकीय आलेखों तक में इस बदज़ुबान तथा कथित महिला संत द्वारा बोले गए अपशब्दों की कटु आलोचना की जाने लगी। इस साध्वी ने बड़े तकनीकी तरीके से अपने बयान के प्रति कभी खेद व्यक्त किया तो कभी प्रधानमंत्री अपने पार्टी नेताओं को नसीहत देते दिखाई दिए तो कभी उन्होंने अपनी इस ‘होनहार’ मंत्री को नया मंत्री बताकर उसे क्षमा किए जाने की अपील की। भाजपाईयों द्वारा उस समय तो हद ही कर दी गई जबकि साध्वी के बचाव में भाजपाई यह तर्क देने लगे कि चूंकि साध्वी निरंजना ज्योति एक दलित महिला हैं इसलिए विपक्ष उनके विरोध पर अड़ा हुआ है।

जबकि मायावती के अनुसार वे दलित नहीं बल्कि निषाद समाज से आने वाली पिछड़ी जाति वर्ग की महिला हैं। सवाल यह है कि क्या किसी भी धर्म अथवा जाति का स्वयं को संत कहने वाले एक ऐसे व्यक्ति पर जोकि केवल संत ही नहीं बल्कि सांसद होने के साथ-साथ देश का एक जि़म्मेदार मंत्री भी है वह इस धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में सार्वजनिक रूप से जिसके विरुद्ध चाहे जैसे भी शब्दों व वाक्यों का प्रयोग करता फिरे? कल्पना कीजिए यदि आज स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम होते तो क्या वे निरंजन ज्योति के इस बेहूदी अवधारणा पर प्रसन्न होते? क्या रामायण के पूरे प्रसंग में तथा भगवान राम के पूरे जीवन में उनके इर्द-गिर्द इस प्रकार के कटु वचन अथवा गालियां बोलने वाले गैरजि़म्मेदार लोगों का जि़क्र हुआ है?

देश की राजनीति में गंदी भाषाओं का प्रयोग करना न तो कोई नया विषय है न ही इसके लिए कोई एक ही दल जि़म्मेदार है। इशारों-इशारों में जनता तक अपने दिल की बात पहुंचाने की भी एक नई तजऱ्-ए-सियासत इस देश में बड़े ही खतरनाक तरीके से शुरु हो चुकी है। सैकड़ों धर्म,आस्था,विश्वास तथा हज़ारों जातियों वाले इस देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खुला खेला जा रहा है। महंत योगी आदित्यनाथ,गिरीराज सिंह,साक्षी महाराज के अतिरिक्त नितिन गडकरी,अमित शाह सुब्रमण्यम स्वामी,उद्धव ठाकरे,राज ठाकरे,आज़म खां तथा अकबरूद्दीन ओवैसी,जैसे और कई नेताओं द्वारा समय-समय पर अपनी बदज़ुबानी व बदकलामी का सुबूत दिया जाता रहा है। भले ही आज नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री जैसे देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठकर अपने नेताओं को मर्यादा में रहने व शिष्टाचार का पालन करने जैसे सबक क्यों न सिखा रहे हों परंतु वह यह भी भलीभांति जानते हैं कि इस प्रकार के कटु वचनों व कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाना लगाने जैसे ज़हरीले शब्द बाणों ने ही उन्हें प्रधानमंत्री की गद्दी तक पहुंचने का रास्ता हमवार किया है। और कहना तो यह भी गलत नहीं होगा कि चुनाव पूर्व अपने भाषणों में मोदी जी ने स्वयं भी कई बार समाज को विभाजित करने वाले भाषण सार्वजनिक रूप से दिए हैं। चुनाव पूर्व नरेंद्र मोदी ने ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभाओं में तत्कालीन यूपीए सरकार पर गुलाबी क्रांति को बढ़ावा देने का बेहद संवेदनशील आरोप लगाया था।

गुलाबी क्रांति अर्थात मांस का उद्योग अथवा इसका निर्यात करने का व्यापार। इस विषय पर उन्होंने जनता की भावनाओं को झकझोरने की सफल कोशिश की। और यूपीए सरकार को देश में चलने वाले पशुओं के कत्लखानों का सीधा जि़म्मेदार ठहरा दिया। महंत योगी आदित्यनाथ की पूर्वी उत्तर प्रदेश में चलाई जा रही सांप्रदायिकतापूर्ण मुहिम व उनके ज़हरीले भाषणों के परिणामस्वरूप, नरेंद्र मादी के कत्लख़ानों के विरुद्ध दिए गए बयान व मुज़फ्फरनगर में अमितशाह द्वारा धर्म विशेष के लोगों से ‘बदला लेने’ हेतु भाजपा के पक्ष में मतदान करने जैसी अपीलों ने भाजपा को यूपी में 73 सीटों पर जीत दिला दी। परंतु अब तक देश या प्रदेश के कोई भी पशुवध केंद्र बंद नहीं हुए। आिखर क्यों? ऐसे वक्तव्य केवल सत्ता हथियाने के मकसद से समाज को भावनाओं के आधार पर विभाजित करने के प्रयास नहीं तो और क्या हैं?

हमारा देश न केवल विभिन्न धर्मों,जातियों,विश्वासों तथा आस्थाओं का देश है बल्कि इस देश की व्यवस्था को संचालित करने हेतु निर्मित संविधान भी पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष मान्यताओं पर ही आधारित है। हमारा संविधान देश के शासकों को सभी धर्म व विश्वास के लोगों को साथ लेकर चलने का निर्देश देता है। सभी धर्मावलंबियों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने की बात हमारे देश का संविधान करता है। जिस महात्मा गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान में अपने आदर्श पुरुष के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की,जिस महान नेता सरदार पटेल के नाम पर वे अपनी राजनीति आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं यह सभी आदर्श पुरुष धर्मनिरपेक्षता तथा देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के ही रक्षक थे। सरदार पटेल ने अपने गृहमंत्री रहते हुए सांप्रदायिक शक्तियों को उनकी किस औकात तक पहुंचा दिया था यह बात किसी से छुपी नहीं हैं। और यह बात भी किसी से पोशीदा नहीं है कि इन्हीें सांप्रदायिक ताकतों ने गांधी जैसे उस धर्मनिरपेक्षतावादी महापुरुष को हम से छीन लिया जो पूरे विश्व में सर्वधर्म संभाव तथा सांप्रदायिक सौहाद्र्र के पक्षधर तथा छुआछूत एवं ऊंच-नीच के प्रबल विरोधी के रूप में जाना जाता है। महात्मा गांधी को स्वच्छता अभियान का प्रतीक बनाकर उन्हें मान-सम्मान नहीं दिया जा रहा बल्कि एक साधारण से विषय के लिए उनके नाम का प्रयोग मात्र किया जा रहा है। दुनिया में उनकी पहचान सत्य और अहिंसा के महान प्रेरक आदर्श पुरुष के रूप में थी और हमेशा रहेगी।

यदि गांधी के नाम को अपने नाम के साथ या अपने कर्मों के साथ जोडऩे की कोशिश करनी है तो गांधी की उस रामधुन से भी अपना सुर मिलाना होगा। यानी रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीता राम। ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान। और जिस दिन गांधी द्वारा पढ़ी जाने वाली यह रामधुन किसी भी विचारधारा के व्यक्ति के भीतर समाहित हो जाएगी उस दिन उस व्यक्ति को सभी रामज़ादे ही नज़र आएंगे। कोई भी हरामज़ादा नहीं दिखाई देगा।

साध्वी निरंजन ज्याति के रामज़ादे वाले बयान के बाद उनका एक और फ़लसफा सामने आया। आप फरमाती हैं कि-‘भारत में रहने वाले चाहे फिर वह मुसलमान हों या ईसाई कहीं न कहीं श्री राम की ही संतान हैं। हम देश में रहने वाले सभी लोग हिंदू संस्कृति और सभ्यता को मानने वाले व शिरोधार्य करने वाले ही रहे हैं। जो इस को नहीं मानते वे इस देश में रहने का हक नहीं रखते। उन्हें देश छोड़ देना चाहिए’। अब ज़रा इस केंद्रीय राज्यमंत्री के बयान की भारतीय संविधान में विभिन्न धर्म,विश्वास तथा मान्याताओं के मानने वाले लोगों के बारे में उल्लिखित व्यवस्थाओं  से तुलना कीजिए। पूरी तरह से इस प्रकार का गैर संवैधानिक बयान देने वाली यह महिला क्या सांसद व मंत्री बनते समय ली गई संविधान की रक्षा की शपथ का पालन कर रही हैं? या यह स्वयं देश के संविधान की धज्जियां उड़ा रही है? और सोने पर सुहागा तो यह कि विपक्ष द्वारा संसद में हंगामा करने के बाद इस बदज़ुबान मंत्री से कभी उसके शब्दों के लिए ‘तकनीकी खेद’ प्रकट करवाया जा रहा है तो कभी प्रधानमंत्री द्वारा उसे नई मंत्री बताकर माफ करने की अपील की जा रही है। इस पूरे प्रकरण में कुछ चीज़ें ऐसी हैं जो हालांकि नज़र नहीं आ रहीं परंतु पूरा प्रकरण उन्हीें अदृश्य बातों के इर्द-गिर्द ही घूम रहा है। याद कीजिए 15 अगस्त को लाल िकले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वह भाषण जिसमें उन्होंने पूरे भारतवासियों से दस वर्षों तक के लिए देश से सांप्रदायिकता खत्म कर देश के विकास में लग जाने का आह्वान किया था।

उनके इस आह्वान के बावजूद उनके मंत्रिमंडल के मंत्री समाज को रामज़ादों और हरामज़ादों के बीच विभाजित कर रहे हैं। इसके दो ही अर्थ हैं या तो मोदी की पार्टी के सांसद यहां तक कि उनके मंत्री उनके किसी दिशानिर्देश तथा उनकी बातों का पालन नहीं कर रहे हैं? या फिर उन्हें इस बात का विश्वास है कि वे जो कुछ भी बोल रहे हैं उससे मोदी जी नाराज़ नहीं बल्कि प्रसन्न ही होंगे। ऐसे कटु वचन व उन्माद फैलाने वाले लोगों को अपने मुख्यिा यानी नरेंद्र मोदी के निर्देशों की आवश्यकता नहीं बल्कि वे देश के ‘प्रधानसेवक’ की ‘अदृश्य’ नीति तथा नीयत से भलीभांति वािकफ हैं? और उनके कड़वे बोल भले ही समाज को बांटने का काम क्यों न करते हों परंतु संप्रदाय के आधार पर होने वाले ध्रुवीकरण में ऐसे वक्तव्य उनको,उनकी पार्टी को और उनके इरादों को फायदा ही पहुंचाएंगे? परंतु ऐसे हालात देश की एकता व अखंडता के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं।

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Tanveer-Jafriwriter-Tanveer-Jafriinvc-newsTanveer Jafri

Columnist and AuthorAuthor Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

Email : tanveerjafriamb@gmail.com –  phones :  098962-19228 0171-2535628
1622/11, Mahavir Nagar AmbalaCity. 134002 Haryana

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

1 COMMENT

  1. जाफ़री साहब आपने बहुत सारे स्वाल् खड़े कर दियें है जिनके जबाब किसी के पास होंगे ये तो आने वाला वकाठी बताएगा !

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