ज़ाकिर हुसैन

नई दिल्ली. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने इंटरपोल से इटली के व्यवसायी ओत्तावियो क्वात्रोच्चि का नाम रेड कार्नर नोटिस सूची से हटाने को कहा है. काबिले-ज़िक्र यह भी है कि काफ़ी अरसे तक राजीव गांधी का नाम भी बोफ़ोर्स मामले के अभियुक्त्तों की फ़ेहरिस्त  में शामिल रहा, लेकिन उनकी मौत के बाद उनका नाम इस मामले की सूची से हटा दिया गया था.

गौरतलब है कि भारत के कहने से 64 करोड़ रुपए के बोफोर्स रिश्वत घोटाले के आरोपी क्वात्रोच्चि का नाम पिछले 12 साल से इंटरपोल की मोस्ट वांटेड सूची में है. बताया जा रहा है कि एटर्नी जनरल मिलन बनर्जी से कानूनी सलाह लेने के बाद यह फ़ैसला किया गया है.

सीबीआई के प्रवक्ता हर्ष बहल के मुताबिक़ बोफोर्स रिश्वत का मामला 1999 से अदालतों में चल रहा है। एटर्नी जनरल ने दो बार क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण में सीबीआई की असमर्थता का ज़िक्र किया। पहली बार मलेशिया में  2003  और दूसरी बार अर्जेंटीना में 2007 में भी ऐसा ही हुआ. दोनों मामलों में फैसले दर्शाते हैं कि प्रत्यर्पण के लिए उचित आधार नहीं था। एटर्नी जनरल मिलन बनर्जी के मुताबिक़ वारंट हमेशा के लिए जारी नहीं रह सकता। इसलिए फरवरी 1997 का वारंट अपनी वैधता खो चुका है.

काबिले-गौर है कि सीबीआई के आरोप पर ओत्तावियो क्वात्रोच्चि के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. सीबीआई का आरोप था कि स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी बोफ़ोर्स ने भारत के साथ एक सौदे के लिए 1.42 करोड़ डॉलर की रिश्वत बांटी थी और एक बिचौलिए के रूप में ओत्तावियो क्वात्रोच्चि को रिश्वत का एक बड़ा हिस्सा मिला था. कुल 400 बोफ़ोर्स तोपों की ख़रीद का सौदा 1.3 अरब डॉलर का था. इटली की एक कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में ओत्तावियो क्वात्रोच्चि 1993 तक दिल्ली में रहे थे.

सीबीआई ने 1999 में ओत्तावियो क्वात्रोच्चि को भगोड़ा घोषित किया था और 1997 के गैर जमानती वारंट के आधार पर उनके खिलाफ रेड कार्नर नोटिस जारी करने की मांग की थी. इसके बाद इंटरपोल के वारंट की बिनाह पर क्वात्रोच्चि को छह फरवरी 2007 को अर्जेन्टीना में गिरफ्तार किया गया। ओत्तावियो क्वात्रोच्चि की गिरफ्तारी के बावजूद सीबीआई उनके प्रत्यर्पण के लिए कोई कोशिश नहीं कर पाई. नतीजतन जून 2007 में भारत अर्जेंटीना की एक अदालत में मुकदमा हार गया। इतना ही नहीं वहां के जज ने भारत को क्वात्रोच्चि के कानूनी खर्च की अदायगी करने का आदेश भी दिया.  इसके बाद एनडीए के शासनकाल में 22 अक्तूबर 1999 को सीबीआई ने क्वात्रोच्चि के खिलाफ एक अभियोग पत्र दायर किया, जिसके चलते सीबीआई ने क्वात्रोच्चि और उनकी पत्नी के खिलाफ आरोप तय किए। ठोस सबूतों के अभाव में मलेशिया से ओत्तावियो क्वात्रोच्चि को प्रत्यर्पित नहीं किया जा सका और उसी साल वह वहां से इटली लौट गए। इटली ने भी उनके प्रत्यर्पण का अनुरोध ठुकरा था.

बोफ़ोर्स मामले को लेकर सीबीआई की ख़ासी किरकिरी होती रही है. आखिरकार सीबीआई ने इस मामले पीछा छुड़ाते हुए इंटरपोल से ओत्तावियो क्वात्रोच्चि का नाम रेड कार्नर नोटिस सूची से हटाने को कहा कह दिया है.

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