महाशक्ति बनते भारत में मानव जीवन के मूल्य ?

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– तनवीर जाफ़री –

                       
भारतवर्ष विश्व की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। इस आशय का वातावरण देश की सरकार तथा उसके प्रोपेगंडा तंत्र द्वारा बनाया जा रहा है। भारत ने अमेरिका के इशारे पर ईरान से कच्चा तेल लेना बंद कर दिया। चीन तो चीन नेपाल जैसे भारत के  कृपापात्र रहने वाले देश जब देखिये तभी भारत के लिए असहज स्थिति पैदा करते रहते हैं। पुलवामा में भारतीय अर्धसैनिक बलों के ४० जवान शहीद हुए । उसके बाद हुई बालाकोट कार्रवाई में भारतीय विमानों को क्षति पहुंची। भारतीय पॉयलट पाकिस्तान में पकड़ा गया। मगर प्रोपेगंडा तब भी यही रहा कि "हमने पाकिस्तान के घर में घुस कर मारा"। किसे मारा, कितने मारे,अगर यह सवाल आपने पूछना चाहा तो आप "राष्ट्रविरोधी तत्वों" की सूची में शामिल हो जाएंगे। मंहगाई,बेरोज़गारी जैसे मुद्दे तो गोया पूरी तरह से गौण हो चुके हैं। काला धन कब आएगा और भगोड़े आर्थिक अपराधियों से वसूली कब होगी इन सब बातों से तो जैसे मीडिया का कोई वास्ता ही नहीं रह गया।संसद में शपथ ग्रहण के दौरान माननीयों द्वारा जय श्री राम,जय दुर्गा,राधे राधे,और अल्लाहुअक्बर जैसे नारे लगाने से देश के लोगों का क्या और कितना कल्याण होगा और इस की ज़रुरत इन माननीयों को है या देश के लोगों को ,कोई पूछने वाला नहीं। सत्ता में पुनः आने के बाद भी भाजपा की मोदी सरकार ने अपनी जो प्राथमिकताएँ निर्धारित की हैं उनमें "मुस्लिम तुष्टिकरण " सबसे पहले रखा गया है।हालाँकि सरकार इसे अल्पसंख्यकों के 'सशक्तीकरण' का नाम दे रही है। जिस सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में हज पर दी जाने वाली सब्सिडी समाप्त कर दी थी वह इस बात के लिए फूले नहीं समा रही कि उसने सऊदी अरब के सुल्तान से कहकर भारत से हज के लिए जाने वाले यात्रियों का कोटा बढ़वा दिया है। संसद की पहली कार्रवाई में भी तीन तलाक़ बिल ला कर मुस्लिम महिलाओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश की गई है।
                     
ऐसी परिस्थितियों में क्या यह देखना ज़रूरी नहीं कि हमारे देश की वास्तविक स्थिति है क्या। हमारे देश में इस समय मानवीय जीवन के मूल्य क्या हैं। धर्म व जातिगत वैमनस्य से लेकर पीने के पानी और स्वास्थ सेवाओं की हक़ीक़त क्या है। रोटी, कपड़ा,मकान तथा पीने का पानी उस देश के सभी नागरिकों को मिल भी  रहा है या नहीं,जिसके महाशक्ति बनने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है? यदि हम इस हक़ीक़त की पड़ताल करें तो हमें अपने आप को धोखे में पाने के सिवा और कुछ नज़र नहीं आएगा। सब कुछ सरकारी प्रोपेगंडा,झूठ तथा बिकाऊ मीडिया द्वारा प्रचारित "ख़ूबसूरत झूठ " के सिवा और कुछ नहीं। अब आइये कुछ ज़मीनी हक़ीक़तों पर नज़र डालते हैं। कृषि प्रधान देश जाने वाले हमारे देश में हालाँकि दशकों से क़र्ज़दार किसानों द्वारा आत्महत्या किये जाने की ख़बरें आती ही रही हैं। किसानों पर क़र्ज़ व उसका बढ़ता ब्याज किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर करता है| प्रायः किसान फ़सल की कटाई के लिए भी ऋण लेते हैं | परन्तु फ़सल की सही क़ीमत न मिलने से वो ऋण चुकाने में असमर्थ होते है |परिणामस्वरूप गात पांच वर्षों में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या ने अपने सभी रिकार्ड तोड़ डाले। किसानों द्वारा संसद भवन पर कई बार प्रदर्शन किये गए। किसानों के गले में उन मृतक किसानों के कंकाल खोपड़ी व हड्डियां आदि पड़ी थीं जिन बदनसीब किसानों ने आत्म हत्या की थी। इस कृषक समाज को खुश करने के लिए राजनैतिक शब्दावली के  "अन्नदाता " शब्द का प्रयोग किया जाता है। ज़रा फ़ैसला कीजिये क्या एक अन्नदाता को फांसी पर लटकने के लिए मजबूर होना चाहिए? क्या उसे सरकार की नीतियों से आजिज़ व परेशान होकर देश की संसद के बाहर अपने ही मलमूत्र का सेवन करने के लिए मजबूर होना चाहिए ? पैदावार का सही मूल्य न मिलने से  किसानकभी सड़कों पर प्याज़ फेंकते हैं तो कभी टमाटर।  सरकारी नीतियों से दुखी होकर कभी दुग्ध उत्पादक लाखों लीटर दूध सड़कों पर फेंक देते है। क्या किसी विकसित या विकासशील देश में ऐसा होता है ? हमारे देश में सरकारी नाकारेपन की वजह से जब मौतें होती हैं तो उससे भविष्य के लिए सबक़ लेने के बजाए एक दूसरे को दोषी ठहराने का खेल शुरू कर दिया जाता है। ज़िम्मेदार लोगों द्वारा अक्सर यह भी कहा जाता है कि भीषण गर्मी की वजह से यह मौतें हो रही हैं और जब गर्मी कम होगी तो यह सिलसिला थम जाएगा। यह कितना बेहूदा व शर्मनाक तर्क है। परन्तु देश इन सब बातों को सुनता व सहन करता रहता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के गृह नगर गोरखपुर में गत वर्ष चंद दिनों के भीतर 63 बच्चों की मौत हो गयी। बताया गया कि इस सामूहिक मौत का कारण ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी था। और जब ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी का कारण तलाश किया गया तो ज्ञात हुआ कि ऑक्सीजन सिलेंडर के आपूर्तिकर्ता को 70 लाख रूपये का भुगतान नहीं हुआ था इसलिए उसने ऑक्सीजन की आपूर्ति रोक दी। क्या यही है एक अच्छी शासन व्यवस्था की पहचान ?यही है विश्व की महाशक्ति बनने के रंग ढंग ?
                     
एक्यूट इंसेफ़लाइटिस सिंड्रोम (एईएस)  नामक बीमारी से बच्चों की हो रही लगातार मौतों को लेकरबिहार इन दिनों देश विदेश में चर्चा में है। बिहार के 16 ज़िले इस समय दिमाग़ी बुख़ार या एक्यूट इंसेफ़लाइटिस सिंड्रोम से प्रभावित हैं। 160 से अधिक बच्चों की मौत इस बीमारी के नाम पर हो चुकी है।मुज़फ़्फ़रपुर सबसे अधिक प्रभावित ज़िला है जहाँ मरने वाले बच्चों की तादाद सबसे अधिक है। जानकारों का मानना है कि इस के लिए बीमारी कम सरकारी दुर्व्यवस्था अधिक ज़िम्मेदार है। अस्पताल भवन,डाक्टरों व नर्सों की कमी,आई सी यू की कमी इलाज के लिए पर्याप्त मशीनों व संसाधनों का न होना,तथा पर्याप्त उपयुक्त दवाइयों का न होना प्रशासनिक ग़ैर ज़िम्मेदारियों में शामिल है। उधर देश का भविष्य समझे जाने वाले इन नौनिहालों के प्रति देश के प्रधान मंत्री से लेकर मुख्य मंत्री व स्वास्थ मंत्री की संवेदनहीनता का क्या आलम है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस दिन मुज़फ़्फ़रपुर में बच्चों की मौत पर कोहराम बरपा था उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में अपने नए सांसदों के साथ आलीशान पार्टी में मशग़ूल थे। जब मोदी जी 21 जून को "योग शो" में मुख्य अतिथि के रूप में रांची पधारे उस समय भी उन्होंने मुज़फ़्फ़रपुर जाना तो दूर इस विषय पर अपनी संवेदना व्यक्त करना तक ज़रूरी न समझा। शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री ने अब तक जितने भी ट्वीट किए हैं उनमें  मुज़फ़्फ़रपुर के बच्चों की बारी नहीं आ पाई है.अपने पिछले कार्यकाल में भी प्रधानमंत्री ने कथित गौरक्षकों द्वारा की जाने वाली हत्याओं,रेल दुर्घटनाओं तथा गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में  हुई 63 बच्चों की मौत जैसे अनेक मामलों में पूरे पांच वर्ष तक कोई ट्वीट नहीं किया। इस बार भी मोदी ने  मुज़फ़्फ़रपुर के बच्चों के मौत पर चिंता सम्बन्धी ट्वीट तो नहीं किया परन्तु उन्होंने भारत के सलामी बल्लेबाज़ शिखर धवन के टूटे अंगूठे पर इस भाषा में ट्वीट ज़रूर किया, "शिखर, बेशक पिच पर आपकी कमी खलेगी, लेकिन मैं उम्मीद करता हूँ कि आप जल्द-से-जल्द ठीक हो जाएं और मैदान पर लौटकर देश की जीत में और योगदान करे सकें." परन्तु एक आम भारतीय मानव जीवन की प्रधान मंत्री की नज़रों में क्या क़ीमत है इसका स्वयं अंदाज़ा लगाया जा सकता है। उधर स्वयं को विकास बाबू प्रचारित करने वाले मुख्यमंत्री नितीश कुमार की आँखें मुज़फ़्फ़रपुर में 100 से अधिक बच्चों की मौत के बाद खुलीं। वे बिलखते तड़पते व असहाय परिजनों के बीच 17 दिनों बाद "प्रकट" हुए। अत्याधिक सुरक्षा होने की वजह से वे अस्पताल से सुरक्षित वापस आ सके अन्यथा उनके विरुद्ध इसी बात को लिकर भारी जनाक्रोश था की आपको  17 दिनों बाद मरने वाले बच्चों की सुध लेने की फ़िक्र हुई ?
               
उधर मुज़फ़्फ़रपुर पहुंचकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन जब मीडिया से रूबरू थे उस समय उनके ठीक बग़ल में बैठे स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्वनी चौबे महत्वपूर्ण चर्चाओं से बेफ़िक्र होकर नींद में ख़र्राटे भर रहे थे। परन्तु यदि आप इन से  इस विषय पर कुछ पूछें तो वे यही बताएंगे की 'हम चिंतन मनन' कर रहे थे। सच्चाई तो यही है कि बिहार में मासूमों की मौत की ज़िम्मेदार बीमारी काम बदहाली व कुशासन अधिक है।पिछले दिनों मानव संवेदनाओं को झकझोर कर रख देने वाली एक और ख़बर मुज़फ़्फ़रपुर के इसी श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल (एस के एम् सी एच ) से प्राप्त हुई। ख़बरों के मुताबिक़ जहाँ सैकड़ों बच्चे बीमारी या प्रशासनिक लापरवाही से दम तोड़ रहे थे,जहाँ मुख्यमंत्री व अनेक मंत्रियों के आने जाने का सिलसिला जारी था,जहाँ मीडिया का जमावड़ा था उसी हॉस्पिटल कैम्पस के पीछे 100 से अधिक मानव कंकाल ज़मीन के नीचे दबे हुए तथा कुछ बोरियों में बंधे हुए पाए गए। अस्पताल में यह मानव कंकाल कहाँ से आए,किसने यहाँ फेंके,यह किसके कंकाल हैं, यह सब अभी पहेली बानी हुई है।  बिना अंतिम संस्कार किये इंसानों की लाश को जानवरों की लाश की तरह फेंक देना,हमारे देश में मानव जीवन के मूल्य क्या रह गए हैं, इस बात का निश्चित रूप से एहसास कराता है। एक तरफ़ मुज़फ़्फ़रपुर में बच्चों की मौत व कंकाल की बरामदगी से कोहराम मचा है तो दूसरी तरफ़ इसी राज्य के औरंगाबाद, गया और नवादा ज़िलों में लू लगने के कारण सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है।विकास बाबू ने लू प्रभावित इस क्षेत्र का हवाई सर्वेक्षण करने का फैसला किया था परन्तु यह समाचार आते ही मीडिया ने उनके "हवाई सर्वेक्षण " के इरादों पर सवाल खड़ा किया और बाद में उन्होंने अपना इरादा बदला व सड़क मार्ग से लू पीड़ित लोगों का हाल चाल पूछने  प्रभावित क्षेत्रों में गए।
                     
सवाल यह है कि जिस देश में आम आदमी के जीवन का कोई मूल्य ही न हो,जहाँ आए दिन सड़क पर घूमने वाले आवारा पशुओं से टकराकर,गड्ढे या खुले मेन होल में गिरकर लोग अपनी जान गँवा बैठते हों,जहाँ किसानों द्वारा असुरक्षा तथा पशुओं के उत्पात से भयभीत होकर खेतीबाड़ी त्यागी जा रही हो,जहाँ के अस्पताल शमशान घाट का दृश्य पेश कर रहे हों,जहाँ भगदड़ से तथा ट्रेनों से कटकर या मानवरहित रेल क्रॉसिंग पर आए दिन लोगों के जान गंवाने की ख़बरें आती रहती हों,जहाँ उग्र भीड़ द्वारा जब और जिसे चाहे निशाना बना दिया जाता हो,उस देश के सरबराह यदि देश के नागरिकों को जी डी पी के आंकड़े बताकर ख़ुश करने की कोशिश करें और निकट भविष्य में देश को महाशक्ति बनाने का स्वप्न दिखाते रहें तो देश की जनता के साथ इससे बड़ा छल और क्या हो सकता है ?
 

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

 

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
 
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

 

 Contact – : Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003
 

 

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