बोफोर्स मामले ने बदली देश की राजनीति*

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तनवीर जाफ़री**,,

अमिताभ बच्चन हालांकि 1987 में इलाहाबाद लोकसभा सीट से त्यागपत्र देने के बाद सक्रिय राजनीति से अलग हो चुके हैं। फिर भी आज जब कभी कोई पत्रकार या मीडिया घराना उनसे साक्षात्कार करने में सफल हो जाता है तो वह अमिताभ से बोफोर्स तोप सौदे की तथा इसी से जुड़े दूसरे महत्वपूर्ण सवाल यानी नेहरू-गांधी परिवार के साथ उनके रिश्तों की चर्चा अवश्य करता है। ऐसा लगता है कि जैसे देश अब भी बोफोर्स तोप सौदे में अमिताभ बच्चन व उनके परिवार पर कुछ स्वार्थी राजनैतिक तत्वों द्वारा लगाए गए दलाली के आरोपों के विषय में अमिताभ के जवाब बार-बार सुनना चाहता है।

हो सकता है ऐसा इसलिए हो कि अमिताभ बच्चन की दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही लोकप्रियता के मद्देनज़र देश की जनता अभी भी यह यकीन ही न कर पा रही हो कि आखर इतने महान नायक पर इतने गंभीर आरोप किसने, क्यों और किन परिस्थितियों में किन कारणों के चलते लगा दिए। जनता अभी भी इस हकीकत से पूरी तरह नावाकिफ है कि अमिताभ व उनके परिवार को बोफ़ोर्स दलाली प्रकरण में खींचने का वास्तविक जि़म्मेदार कौन था और उसने ऐसा क्यों किया? और चूंकि इसी बो$फोर्स भूचाल के बाद अमिताभ ने लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दिया, राजनीति का क्षेत्र त्याग कर मात्र ढाई साल के अंतराल के बाद पुन: फल्म जगत में वापसी की और इसी के साथ-साथ नेहरू-गांधी परिवार के साथ उनकी दूरियां भी बढ़ती गई। इसलिए जनता आज लगभग 25 वर्षों बाद भी यह जानने को उत्सुक रहती है कि आखर इतने घनिष्ट पारिवारिक संबंध होने के बावजूद इन दोनों परिवारों के मध्य दूरी का कारण क्या है और वर्तमान समय में यह दूरियां, दूरियां ही बनी हुई हैं या फिर उनमें कुछ नज़दीकियां भी बनी हैं या बनने की संभावनाएं हैं?

पिछले दिनों अमिताभ बच्चन ने एक भारतीय हिंदी टीवी चैनल को अपना एक साक्षात्कार दिया जिसमें बोफ़ोर्स तोप सौदे के संबंध में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने एक बार फिर उन बीते दिनों को याद करते हुए कहा कि वो ऐसा दौर था जबकि कहीं सडक़ों पर या शूटिंग के दौरान उन्हें देखकर लोग गालियां दिया करते थे। परंतु लंदन की रॉयल कोर्ट द्वारा इस मामले में बरी किए जाने के बाद उन्हें व उनके परिवार को का$फी राहत मिली। उन्होंने अपने साक्षात्कार में फिर दोहराया कि यह उनके विरुद्ध रचा गया एक षड्यंत्र था।

गौरतलब है कि 1985-86 में बोफोर्स तोप दलाली का विवाद उठते ही अमिताभ बच्चन ने अपनी ओर उठने वाली सभी उंगलियों का प्रारंभ से ही जवाब देना शुरु कर दिया था। वे हमेशा पूरे विश्वास के साथ स्वयं को इस प्रकरण से अनभिज्ञ तथा असंबद्ध बताते थे। वे हमेशा कहते थे कि इस मामले से उनका कोई लेना-देना नहीं है। परंतु एक बड़े सुनियोजित व दूरगामी राजनैतिक षड्यंत्र के तहत बो$फोर्स तोप दलाली सौदे में कुछ ऐसी राजनैतिक शख्सियतों द्वारा अमिताभ बच्चन का नाम घसीटा गया जिनकी नज़रें सि$र्फ इस बात पर टिकी थीं कि किस प्रकार राजीव गांधी को व्यक्तिगत रूप से भ्रष्टाचार के आरोपों में उलझाया जाए, राजीव गांधी की सरकार को अस्थिर किया जाए तथा उन्हें किसी प्रकार सत्ता से हटाकर उनके हाथों से सत्ता छीन ली जाए।

और निश्चित रूप से यह झूठा ढिंढोरा पीटने वाली ताकतें अपने म$कसद में कामयाब हुईं। बोफोर्स तोप सौदे में दलाली ली गई या नहीं, किसने ली, किसने नहीं,इस कथित घोटाले का मुख्य किरदार कौन था, दलाली यदि ली गई तो इसके पैसे किस-किस ने कितने-कितने खाए इन सब बातों से देश की जनता आज तक बेख़बर है। अब भी इस प्रकरण को लेकर कभी-कभी आरोप-प्रत्यारोप होते दिखाई देते हैं। परंतु राजीव गांधी को जहां स्वीडन की तोप कंपनी बोफ़ोर्स की ओर से बेगुनाह घोषित किया जा चुका है वहीं लंदन की रॉयल कोर्ट द्वारा अमिताभ बच्चन को भी इस मामले में निर्दोष पाया गया है। स्वीडन के एक अधिकारी ने भी कुछ समय पूर्व यह रहस्योद्घाटन किया था राजीव गांधी का नाम इस मामले में घसीटना एक सुनियोजित राजनैतिक षड्यंत्र था।

बहरहाल अमिताभ बच्चन व उनके परिवार को इस प्रकार के बेबुनियाद आरोपों से जो क्षति पहुंची है उसकी पूर्ति नहीं की जा सकती। अमिताभ बच्चन भी अब उन पिछली कड़वी यादों को भुलाने के पक्षधर हैं। यहां तक कि अब अमिताभ बच्चन जानते हुए भी उन लोगों का नाम तक नहीं लेना चाहते जिन्होंने उन्हें बदनाम करने व फंसाने की साजि़श रची। परंतु देश को, देश की राजनैतिक व्यवस्था को इस घटना के बाद जो नुक़सान पहुंचा है उसकी भरपाई शायद अगले कई दशकों तक होती दिखाई नहीं दे रही है।
इसी कथित बोफ़ोर्स घोटाले ने देश को एकदलीय सरकार के बजाए गठबंधन की राजनीति के दौर में धकेल दिया है। और गठबंधन की राजनीति के नतीजे क्या सामने आ रहे हैं यह भी किसी से छुपा नहीं  है । जहां एकदलीय सरकार की व्यवस्था में कामयाबी और नाकामी का पूरा जि़म्मा किसी एक सत्तारुढ़ दल का होता था वहीं गठबंधन दौर की राजनीति में सरकार की नाकामियों का ठीकरा गठबंधन दल बड़ी आसानी से एक-दूसरे पर फोड़ कर अपने को बचाने की कोशिश करते रहते हैं। जनता को अस्वीकार्य होने वाली तमाम बातों को तो सरकार के मुखिया गठबंधन राजनीति की मजबूरी कह कर पचा ले जाते हैं। और राष्ट्रीय दलों की हालत देखकर तो ऐसा लगता है कि 1987 के बाद देश में शुरु हुई गठबंधन दलों की राजनीति जल्दी देश का पीछा नहीं छोडऩे वाली। ज़ाहिर है इस वर्तमान राजनैतिक हालात की जड़ में बोफ़ोर्स घोटाले की घटना ही पाई जाती है। इस कथित घोटाले को उस समय तूल देने वाले चतुर राजनीतिज्ञ नि:संदेह कीचड़ उछालने की अपनी राजनीति में सफल रहे तथा अपने जीवन के उस राजनैतिक लक्ष्य को उन शक्तियों ने हासिल भी कर लिया जिसके लिए उन्होंने यह सारे प्रपंच रचे थे। दरअसल इन लोगों को अमिताभ बच्चन व राजीव गांधी की पारिवारिक घनिष्टता रास नहीं आ रही थी। सांसद चुने जाने के बाद अमिताभ बच्चन को न केवल 2/ए मोतीलाल नेहरू मार्ग जैसा केंद्रीय मंत्री स्तर का विशाल बंगला एक सांसद के रूप में आबंटित किया गया था बल्कि दिल्ली रहने के दौरान अमिताभ बच्चन जब चाहते थे तब 7 रेसकोर्स रोड जाकर राजीव गांधी से मुला$कात भी कर लिया करते थे। और उस समय राजीव से मुला$कात के लिए प्रतीक्षारत वरिष्ठ मंत्रियों के सीने पर सांप लोट जाया करता था। अमिताभ ने अपने ढाई साल के सांसद कार्यकाल के दौरान इलाहाबाद के विकास के लिए भी जो योजनाएं मंजूर कराईं इसे भी उनसे राजनैतिक ईष्र्या रखने वाले लोग अपने राजनैतिक भविष्य के लिए अच्छा नहीं समझते थे। उनकी बढ़ती लोकप्रियता व जनता के मध्य उनकी स्वीकार्यता ने ऐसे राजनीतिज्ञों को अमिताभ बच्चन के विरुद्ध षड्यंत्र रचने के लिए बाध्य कर दिया जो यह महसूस करने लगे थे कि अमिताभ के इलाहाबाद से चुनाव जीतने के बाद अब कहीं उनकी अपनी ‘दुकानदारी’ चौपट न हो जाए।

अमिताभ बच्चन को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। मैं उनके साथ कार्य कर चुका हूं इसलिए मैं का$फी हद तक उनके स्वभाव से भी परिचित हूं। उनमें पारंपरिक राजनेताओं जैसी वह सोच $कतई नहीं है कि राजनीति को किस प्रकार धनार्जन,धन संग्रह या साम्राज्य स्थापित करने का माध्यम बनाया जाए। बजाए इसके अमिताभ अपने निजी पैसे ख़र्च कर लोगों की सहायता करने यहां तक कि यदि संभव हो तो सार्वजनिक कामों में भी अपने पैसे ख़र्च  करने की क्षमता व सोच रखते हैं। चूंकि वे अपने इस प्रकार के धर्मार्थ अथवा सहायतार्थ किए जाने वाले कामों की सार्वजनिक रूप से चर्चा करना पसंद नहीं करते इसलिए केवल उनके निकट सहयोगियों को ही इन बातों का पता चल पाता था। अब भी बावजूद इसके कि अमिताभ बच्चन किसी राजनैतिक दल से नहीं जुड़े हैं फिर भी वे अपने स्वभाव के अनुरूप आज भी गरीबों व ज़रूरतमंदों की मदद करने से पीछे नहीं हटते। अभी पिछले ही दिनों गत् जुलाई महीने में उन्होंने महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कजऱ् व ग़रीबी  से तंग आकर आत्महत्या करने वाले किसानों की सहायता के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए। उन्होंने लगभग तीस लाख रुपये की सहायता देकर सौ से अधिक किसानों को आत्महत्या करने से तथा भूखे रहने से बचाया। ज़ाहिर है ऐसी सोच रखने वाला व्यक्ति किसी प्रकार के दलाली प्रकरण में नहीं पड़ सकता और न ही इस प्रकार की शैली वर्तमान ढर्रेके राजनीतिज्ञों को रास आ सकती है। आशा की जानी चाहिए कि जिस प्रकार अमिताभ बच्चन के माथे पर षड्यंत्र रचकर लगाया गया बोफ़ोर्स दलाली का धब्बा पूरी तरह सा$फ हो चुका है उसी प्रकार गांधी-नेहरू परिवार व बच्चन परिवार के बीच उसी समय से पैदा हुआ मनमुटाव भी यथाशीघ्र समाप्त हो जाएगा।

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**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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