बिस्तर पर रहने को मजबूर मरीज की जिंदगी हुई सामान्य

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यह अपनी तरह का पहला मामला है जिसमेँ कम्प्युटर नेविगेशन की सहायता से इतनी अधिक वजन के मरीज के दोनोँ घुटनोँ का एक साथ प्रत्यारोपण किया गया है


आई एन वी सी न्यूज़ 

नई दिल्ली , 

मोटापा किस तरह किसी के शरीर को गम्भीर रूप से प्रभावित कर सकता है इसका एक उदाहरण है श्रीमती उषा शर्मा का मामला। पिछ्ले दो साल से बिस्तर पर लेटे रहने को मजबूर 62 साल की श्रीमती उषा शर्मा के दोनोँ घुटनोँ में ऑस्टियोऑर्थराइटिस की वजह से तेज दर्द रहता था। यह मामला और गम्भीर इसलिए हो गया क्योंकि मरीज का वजन बहुत ज्यादा था। 135 किलो वजन की वीना को मॉर्बिड ओबेसिटी है, जिसके चलते उन्हेँ कई गम्भीर स्वास्थ्य समस्याएँ  हैं।

इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर के जॉइंट रिप्लेसमेंट एंड ऑर्थोस्कोपी सर्जन डॉ. विवेक महाजन जिन्होने मरीज का इलाज किया है, वे कहते हैं,”किसी ऑर्थोपेडिक सर्जन के लिए इतने अधिक वजन वाले मरीज का ऑपरेशन करना बडी चुनौती का काम होता है। शायद यही वजह थी कि वह  कई अन्य जगहोँ पर अपना इलाज कराने के लिए मना कर देती थीँ। मोट लोगोँ में, जब परम्परागत तरीके से सर्जरी की जाती है तब शरीर के उस हिस्से की हड्डी को सही ढंग से मार्क करके काटना मुश्किल होता है जहाँ ट्रांसप्लांट लगाना होता है। यहाँ तक कि मामूली सी भी गलती इम्पांट के फेल होने की वजह बन सकती है। बेहद मोटे लोगोँ में परम्परागत तरीके से होने वाली सर्जरी के फेल होने का खतरा अधिक रहता है। चूंकि इस मरीज का वजन 135 किलो था, ऐसे में हमने कम्प्युटर नेविगेशन तकनीक का इस्तेमाल करके उनके दोनोँ घुटनोँ का ट्रांसप्लांट किया।“

ऑस्टियोऑर्थराइटिस अथवा उम्र से जुडी जोडोँ की अन्य समस्याएँ सामान्य से अधिक वजन वाले लोगोँ को ज्यादा होती हैं, क्योंकि शरीर का अतिरिक्त भार गुटनोँ पर दबाव डालता है। यही वजह है कि अधिक वजन वाले लोगोँ को सामान्य लोगोँ की तुलना में जॉइंट रिप्लेसमेंट की जरूरत अधिक पडती है। अधिक वजन वाले लोगोँ में जोडोँ के कार्टिलेज में तेजी से ब्रेकडाउन होता है, और मोटे लोगोँ की जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है। यद्यपि, आधुनिक तकनीकोँ की उपलब्धता और सर्जरी करने में विशेषज्ञता हो तो ऑपरेशन सफल रहते हैं। डॉ. महाजन ने कहा, “सम्भवतः यह पहला मामला होगा जिसमेँ इतनी अधिक वजन के मरीज का कम्प्युटर नेविगेशन तकनीक के जरिए दोनोँ घुटनोँ का प्रत्यारोपण हुआ है। सर्जरी के बाद एक साल में मरीज ने करीब 30 किलो वजन कम किया है। कम्प्युटर नेविगेशन तकनीक से सही जगह पर चीरा लगाने और इम्प्लांट फिट करने में मदद मिलती है। कम्प्युटर असिस्टेड तकनीक में ऑपरेशन के दौरान छोटा सा चीरा लगता है और परिणाम भी बेहतर आने की उम्मीद रहती है।“

चीरा छोटा लगने का मतलब है कि मरीज का खून कम बहेगा और मसल्स एवम लिगामेंट को भी कम से कम नुकसान होगा। इन सारे फायदोँ की वजह से मरीज की रिकवरी जल्दी होती है, हॉस्पिटल से जल्द छुट्टी मिल जाती है और घुटने बेहतर काम करते हैं। सर्जरी के कुछ ही समय बाद श्रीमती शर्मा वॉकर की मदद से टहलने में सक्षम हो गई और एक हफ्ते के भीतर ही वह एक लकडी के सहारे चलने लगीँ।  डॉ. महाजन कहते हैं, वह दो हफ्ते बाद ही बिना सहारे के चलने लगीँ।  कम्प्युटर असिस्टेड तकनीक जो कि दुनिआ भर में तेजी से इस्तेमाल आ रही है, इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर में भी उपलब्ध हो चुकी है यह एक ऐसा हॉस्पिटल है जो खुद को हमेशा अप-टु-डेट रखता है, यहाँ मॉड्युलर ओटी और अत्याधुनिक उपकरणोँ की व्यवस्था है।

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