बर्दाश्त नहीं खाली में खलल : खाली ज़मीन को लेकर दिल्ली सरकारों के नजरिये पर टिप्पणी करता लेख

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– अरुण तिवारी –

aruntiwari,writeraruntivari,writer arun tiwari,author arun tiwari,article written by arun tiwari,invc news,invcnewsसंभवतः दिल्ली की पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकारें यही सोचती हैं कि निर्माण ही खाली पङी जगह का एकमेव उपयोग है। यमुना की ज़मीन पर खेल गांव निर्माण के विरोध में हुए ’यमुना सत्याग्रह’ को याद कीजिए। इस बाबत् तत्कालीन लोकसभाध्यक्ष श्री सोमनाथ चटर्जी के एक पत्र के जवाब में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित ने लिखा था – ’’हाउ कैन वी लेफ्ट सच एन वेल्युबल लैंड, अनयूज्ड’’ अर्थात ’इतनी बहुमूल्य भूमि को हम बिना उपयोग किए कैसे छोङ सकते हैं।’ दिल्ली ने एक ओर शीला दीक्षित जी को यमुना सफाई अभियान चलाते देखा और दूसरी ओर यमुना की ज़मीन को लेकर यह नजरिया! कभी इसी नजरिए के चलते भाजपा के केन्द्रीय शासन ने यमुना की ज़मीन पर अक्षरधाम मंदिर बनने दिया और कालांतर में खेलगांव, मेट्रो डिपो, माॅल और मकान बने। जिस यमुना तट के मोटे स्पंजनुमा रेतीले एक्यूफर में आधी दिल्ली को पानी पिलाने की क्षमता लायक पानी संजोकर रखने की क्षमता है, उसे हमारी सरकारों ने कभी इस नजरिये से जैसे देखा ही नहीं।

यमुना की जीवन कला भूला, आर्ट आॅफ लीविंग
ऐसे ही एक नजरिये की नज़ीर बनने वाला है, आर्ट आॅफ लिविंग की 35वीं सालगिरह। एक वक्त था, जब यमुना नेे आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर जी को यमुना स्वच्छता जागृति के नाम पर दिल्ली के ऐतिहासिक पुराने किले के भीतर एक भव्य आयोजन करते देखा; आज वक्त है कि वही श्री श्री रविशंकर जी आगामी मार्च में यमुना की ज़मीन को रौंदने आ रहे हैं।
यमुना जिये अभियान के हवाले से मिली खबर के अनुसार, आर्ट आॅफ लिविंग की 35 वीं सालगिरह मनाने के लिए, मयूर विहार फेज-एक (दिल्ली) के सामने यमुना की ज़मीन को चुना गया है। आर्ट आॅफ लिविंग, श्री श्री रविशंकर जी का ही एक उपक्रम है। उसकी सालगिरह का आयोजन साधारण नहीं होता। यह लाखों लोगांे और गाङियों का जमावङा होता है। उसके लिए एक बङे तामझाम और ढांचागत व्यवस्था की जरूरत होती है। यमुना जिये अभियान ने विकल्प के रूप में सफदरजंग हवाई अड्डे का स्थान भी सुझाया है और यह भी याद दिलाया है कि राष्ट्रीय हरित पंचाट के आदेशानुसार अब दिल्ली में यमुना के बाढ़ क्षेत्र में कोई निर्माण नहीं किया जा सकता। गौर कीजिए कि पंचाट की पहल पर बनी प्रधान समिति, जहां एक ओर यमुना को उसकी ज़मीन वापस लौटाने की योजना पर काम कर रही है। स्पष्ट है कि यमुना की ज़मीन पर ऐसा कोई भी आयोजन, पंचाट की मर्जी और यमुना की शुचिता के खिलाफ होगा। शंका है कि आयोजन के बहाने यमुना जी के सीने पर कहीं ’आर्ट आॅफ लिविंग धाम’ नाम की इमारत न खङी हो जाये। यह लेख लिखे जाने तक अनुरोध, अनुत्तरित है। उम्मीद है कि लोगों को जीवन जीने की कला सिखाने वाला ’आर्ट आॅफ लिविंग’, यमुना के जीवन जीने की कला में खलल डालने से बचेगा; साथ ही वह भी यह भी नहीं चाहेगा कि उनके आयोजन में आकर कोई यमुना प्रेमी खलल डाले।

मुंडका: खाली में बर्दाश्त नहीं खलल
खाली ज़मीन को लेकर ऐसे ही नजरिये का अगला शिकार बनने जा रही दिल्ली की ज़मीन है: मुंडका में मौजूद 147 एकङ में फैला मैदान। जुझारू कार्यकर्ता श्री दीवान सिंह कहते हैं कि मुलाकात के बावजूद वह इस बाबत् दिल्ली के मुख्यमंत्री का नजरिया नहीं बदल पाये। वह मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल को नहीं समझा पाये, कि वायु प्रदूषण में उद्योगों का योगदान, वाहनों से कम नहीं है।
श्री दीवान सिंह, दिल्ली का पानी और हरियाली बचाने को लेकर करीब एक दशक से जद्दोजहद कर रहे हैं। उनकी मांग है कि मुंडका और आसपास की आठ लाख की आबादी को सांस लेने के लिए कोई खुली जगह चाहिए कि नहीं ? कहते हैं कि यहां खेलने व खुले में सांस लेने के लिए ले-देकर यही तो एक जगह है। सरकार को चाहिए कि वह इसे एक जैव विविधता पार्क और खेल के विविध मैदानों के रूप में विकसित करे, न कि औद्योगिक क्षेत्र के रूप में। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार, मुंडका की इस जमीन पर औद्योगिक क्षेत्र बनाने के फेर में हैं और स्थानीय कार्यकर्ता, श्री दीवान सिंह के नेतृत्व में ’मंुडका किराङी हरित अभियान’ बनाकर इसका विरोध कर रहे हैं।

नियोजन कीजिए, नजीर बनिये

उक्त नजीरों से स्पष्ट है कि आबोहवा को लेकर सरकारों को अपने नजरिये मंे समग्रता लानी होगी। समझना होगा कि दिल्ली को उद्योग भी चाहिए, किंतु दिल्ली वासियों की सेहत की कीमत पर नहीं।
समझना होगा कि सिर्फ हवा ही नहीं होती, आबोहवा! आबोहवा को दुरुस्त रखने के लिए हवा के साथ, आब यानी पानी को भी दुरुस्त रखना होगा। हमारे नगर नियोजकों को सोचना होगा खाली पङी जमीन बेकार नहीं होती। बेहतर आबोहवा सुनिश्चित करने में खाली और खुली ज़मीन का भी कुछ योगदान होता है। अतः स्वस्थ आबोहवा चाहिए, तो नगर नियोजन करते वक्त कुल क्षेत्रफल में हरित क्षेत्र, जल क्षेत्र, कचरा निष्पादन क्षेत्र व अन्य खुले क्षेत्र हेतु एक सुनिश्चित अनुपात तो पक्का करना ही होगा। कुल नगरीय क्षेत्रफल में निर्माण क्षेत्र की अधिकतम सीमा व प्रकार भी सुनिश्चित करना ही चाहिए। इससे छेङछाङ की अनुमति किसी को नहीं होनी चाहिए। हमें यह भी समझना होगा कि निराई-गुङाई-जुताई होते रहने से जमीन का मुंह खुल जाता है। जलसंचयन क्षमता बरकरार रहती है। अतः जहां पार्क की जरूरत हो, वहां पार्क बनायें, किंतु पूर्व इकरारनामे के मुताबिक यमुना की शेष बची ज़मीन पर बागवानी मिश्रित सहज खेती के लिए होने दें; पूर्णतया अनुकूल जैविक खेती। रासायनिक खेती की कोई अनुमति यहां न हो। समग्र सोच से ही बचेगी आबोहवा की शुद्धता और निवास की समग्रता।

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aruntiwari,writeraruntivari,writer arun tiwari,author arun tiwari,article written by arun tiwariपरिचय -:
अरुण तिवारी
लेखक ,वरिष्ट पत्रकार व् सामजिक कार्यकर्ता

1989 में बतौर प्रशिक्षु पत्रकार दिल्ली प्रेस प्रकाशन में नौकरी के बाद चौथी दुनिया साप्ताहिक, दैनिक जागरण- दिल्ली, समय सूत्रधार पाक्षिक में क्रमशः उपसंपादक, वरिष्ठ उपसंपादक कार्य। जनसत्ता, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला, नई दुनिया, सहारा समय, चौथी दुनिया, समय सूत्रधार, कुरुक्षेत्र और माया के अतिरिक्त कई सामाजिक पत्रिकाओं में रिपोर्ट लेख, फीचर आदि प्रकाशित।

1986 से आकाशवाणी, दिल्ली के युववाणी कार्यक्रम से स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता की शुरुआत। नाटक कलाकार के रूप में मान्य। 1988 से 1995 तक आकाशवाणी के विदेश प्रसारण प्रभाग, विविध भारती एवं राष्ट्रीय प्रसारण सेवा से बतौर हिंदी उद्घोषक एवं प्रस्तोता जुड़ाव।

इस दौरान मनभावन, महफिल, इधर-उधर, विविधा, इस सप्ताह, भारतवाणी, भारत दर्शन तथा कई अन्य महत्वपूर्ण ओ बी व फीचर कार्यक्रमों की प्रस्तुति। श्रोता अनुसंधान एकांश हेतु रिकार्डिंग पर आधारित सर्वेक्षण। कालांतर में राष्ट्रीय वार्ता, सामयिकी, उद्योग पत्रिका के अलावा निजी निर्माता द्वारा निर्मित अग्निलहरी जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के जरिए समय-समय पर आकाशवाणी से जुड़ाव।

1991 से 1992 दूरदर्शन, दिल्ली के समाचार प्रसारण प्रभाग में अस्थायी तौर संपादकीय सहायक कार्य। कई महत्वपूर्ण वृतचित्रों हेतु शोध एवं आलेख। 1993 से निजी निर्माताओं व चैनलों हेतु 500 से अधिक कार्यक्रमों में निर्माण/ निर्देशन/ शोध/ आलेख/ संवाद/ रिपोर्टिंग अथवा स्वर। परशेप्शन, यूथ पल्स, एचिवर्स, एक दुनी दो, जन गण मन, यह हुई न बात, स्वयंसिद्धा, परिवर्तन, एक कहानी पत्ता बोले तथा झूठा सच जैसे कई श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम। साक्षरता, महिला सबलता, ग्रामीण विकास, पानी, पर्यावरण, बागवानी, आदिवासी संस्कृति एवं विकास विषय आधारित फिल्मों के अलावा कई राजनैतिक अभियानों हेतु सघन लेखन। 1998 से मीडियामैन सर्विसेज नामक निजी प्रोडक्शन हाउस की स्थापना कर विविध कार्य।

संपर्क -:
ग्राम- पूरे सीताराम तिवारी, पो. महमदपुर, अमेठी,  जिला- सी एस एम नगर, उत्तर प्रदेश ,  डाक पताः 146, सुंदर ब्लॉक, शकरपुर, दिल्ली- 92
Email:- amethiarun@gmail.com . फोन संपर्क: 09868793799/7376199844

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