फिर बेलगाम हुए राज ठाकरे

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निर्मल रानी**,,

गत् 11 अगस्त को मुंबई में असम व म्यांमार में अल्पसंख्यक समाज के साथ हो रहे अन्यायपूर्ण बर्ताव व अत्याचार को लेकर कुछ मुस्लिम संगठनों के आह्वान पर बुलाए गए रोष प्रदर्शन के दौरान जो हिंसक घटना घटी वह वास्तव में न केवल निंदनीय बल्कि चिंताजनक भी है। कहा जा सकता है कि इतनी बड़ी हिंसक घटना,तोडफ़ोड़, आगजऩी तथा उपद्रव को न केवल मुंबई पुलिस व प्रशासन रोक पाने में असफल रहा बल्कि खुफया विभाग के लोग भी इस हिंसा का पूर्वानुमान नहीं लगा सके। बहरहाल यदि बर्मा व असम की घटनाओं को लेकर यदि इन मुस्लिम संगठनों की चिंताओं को जायज़ $करार दिया जा सकता है वहीं इन संगठनों द्वारा मुंबई में किए गए ऐसे हिंसक उपद्रव को कतई सही नहीं ठहराया जा सकता जिसमें कि करोड़ों रुपये की सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाए, बेगुनाह लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ें या फिर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई इस प्रकार के हिंसक कृत्यों से कलंकित होती नज़र आने लगे।

बहरहाल, मुंबई में हुए 11 अगस्त के इस हिंसक उपद्रव के सिलसिले में जहां पुलिस सीसीटीवी कैमरों,चश्मदीद गवाहों अथवा टीवी कैमरों की सहायता से दोषी लोगों की धरपकड़ कर रही है वहीं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने इस घटना को अपनी मराठी राजनीति चमकाने व सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए एक अच्छे अवसर के रूप में चिन्हित किया है। पिछले दिनों यह खबर सुनकर आश्चर्य हुआ था कि राज ठाकरे पुन: अपने पुराने घर में वापस हो रहे हैं। यानी बाल ठाकरे व उद्धव ठाकरे के साथ उनके संबंध सामान्य होने जा रहे हैं। यह समाचार सुनकर एक प्रश्र ज़रूर दिमाग में आया कि यदि यह दोनों ठाकरे बंधु एक होने जा रहे हैं फिर आखर इनके अलग होने या इनके मध्य मतभेद का कारण क्या था? परंतु गत् 20 अगस्त को जिस प्रकार राज ठाकरे ने मुंबई की 11 अगस्त की हिंसक घटना का बहाना बनाकर तथा इस वारदात के लिए महाराष्ट्र सरकार विशेषकर मुंबई पुलिस को निशाना बनाते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बैनर तले एक विशाल रैली निकाली और बाद में इस रैली को आज़ाद मैदान में जनसभा के रूप में परिवर्तित किया उसे देखकर साफतौर पर यह कहा जा सकता है कि राज ठाकरे अभी भी अपना व अपनी पार्टी मनसे का अपना अलग मज़बूत जनाधार बनाना चाह रहे हैं। और इसके लिए वे लगातार न केवल महाराष्ट्रीयन व गैर महाराष्ट्रीयन के मध्य ध्रुवीकरण कराने में सक्र्रिय हैं बल्कि आज़ाद मैदान में दिए गए उनके भाषण के बाद यह भी नज़र आने लगा है कि अब वे सांप्रदायिक आधार पर भी समाज में ध्रुवीकरण कराना चाह रहे हैं।

यहां यह भी गौरतलब है कि राज ठाकरे ने अपने निवास से आज़ाद मैदान तक जुलूस व रैली की शक्ल में जाने की इजाज़त मुंबई पुलिस से मांगी थी। परंतु पुलिस ने उन्हें इसकी इजाज़त नहीं दी। इसके बावजूद राज ठाकरे ने अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे उनके घर से आज़ाद मैदान तक निकलने वाली रैली में शामिल हों। राज्यस्तर का बुलाया गया यह प्रदर्शन भीड़ के लिहाज़ से काफी सफल बताया जा रहा है। इस रैली को तथा आज़ाद मैदान की जनसभा को नियंत्रित करने हेतु प्रशासन ने पंद्रह हज़ार पुलिस जवान तैनात किए थे। राज ठाकरे ने इस रैली में एक बार फिर उत्तर भारतीयों के विरुद्ध ज़हर उगला। उन्होंने मुंबई को बंगलादेशियों व पाकिस्तानियों का अड्डा बताया। 11 अगस्त के हिंसक प्रदर्शन को नियंत्रित न कर पाने के लिए राज ठाकरे ने राज्य के गृहमंत्री आर आर पाटिल व मुंबई नगर पुलिस कमिश्रर अरूप पटनायक से त्यागपत्र की मांग की। ठाकरे ने अपने भाषण में अपनी आदत व ‘योग्यता’ के अनुसार असंसदीय भाषाओं का भी प्रयोग किया। हालांकि इसके लिए मुंबई पुलिस ने राज ठाकरे के विरुद्ध मुकद्दमा भी दर्ज कर लिया है। राज ठाकरे के इस बयान ‘कि भिवंडी व मानखुर्द में एक लाख बंगलादेशी व पाकिस्तानी रहते हैं’, के जवाब में मुंबई के विधायक व समाजवादी पार्टी नेता अबु आज़मी ने राज ठाकरे को चुनौती देते हुए कहा है कि यदि वे दो महीने के भीतर मुंबई में अथवा भिवंडी या मानखुर्द में एक लाख बंगलादेशी अथवा पाकिस्तानी लोगों के रहने का प्रमाण दे दें तो वे उन्हें दो करोड़ रुपये का इनाम देंगे। अन्यथा आज़मी के अनुसार राज ठाकरे को सक्रिय राजनीति छोड़ देनी चाहिए।

राज ठाकरे के आज़ाद मैदान के भाषण में एक बार फिर उनके मुंह से वही रटा-रटाया राजनैतिक वाक्य सुनने को मिला कि-मैं तो एक ही धर्म जानता हूं और वह धर्म है महाराष्ट्र धर्म। गोया बावजूद इसके कि वे इस रैली के माध्यम से तथा 11 अगस्त को कुछ मुस्लिम संगठनों द्वारा आयोजित रोष प्रदर्शन के बाद भडक़ी हिंसा का विरोध कर जहां सांप्रदायिक कार्ड खेलने की कोशिश कर रहे थे तथा राज्य में धर्म आधारित धु्रवीकरण का संदेश देना चाह रहे थे वहीं वे अपने बुनियादी राजनैतिक सिद्धांतों यानी मराठा प्रेम को भी छोडऩा नहीं चाह रहे थे। ज़ाहिर है वे ऐसा इसलिए भी नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने अपने संगठन का नाम भी अपनी राजनैतिक आकांक्षाओं व राजनैतिक मकसद के अनुरूप रखा है। वैसे कई बार राज ठाकरे की राजनैतिक गतिविधियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वे मराठा राजनीति के साथ-साथ हिंदुत्ववादी राजनीति करने में भी अपनी पूरी दिलचस्पी रखते हैं। परंतु वे यह भी भलीभांति जानते हैं कि उत्तर भारतीयों की नज़रों में गिरने के बाद उनकी हिंदुत्ववादी राजनीति का कोई भविष्य नहीं है। कुछ समय पूर्व महाराष्ट्र विधानसभा में हिंदी भाषा में शपथ लेने के चलते समाजवादी पार्टी विधायक अबु आज़मी से मनसे विधायकों द्वारा मारपीट किया जाना तथा सदन में उन्हें अपमानित करने जैसी गंभीर घटना राज ठाकरे की उसी सांप्रदायिकतापूर्ण राजनीति करने का ‘ट्रेलर’ पेश करती है। परंतु इसके साथ-साथ हिंदी भाषा का विरोध करना व मराठी भाषा को हिंदी भाषा से ऊपर का दर्जा देने की कोशिश करना उनके राजनैतिक विस्तार को भी रोकता है।

कुल मिलाकर राज ठाकरे द्वारा अगले संसदीय व विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र स्वयं को संगठित व मज़बूत करने का ज़ोरदार प्रयास किया जा रहा है। उनकी यह कोशिशें जहां बाल ठाकरे परिवार से होने वाली उनकी संभावित सुलह-सफाई की खबरों को धूमिल करती हैं वहीं मुंबई प्रशासन की इजाज़त के बिना इतनी बड़ी रैली का निकाला जाना तथा इस बिना अनुमति की रैली को पंद्रह हज़ार पुलिस कर्मियों का संरक्षण व सुरक्षा दिया जाना इस बात की ओर भी इशारा करता है कि हो न हो महाराष्ट्र सरकार की दिलचस्पी भी कहीं न कहीं इस बात में ज़रूर है कि राज ठाकरे व उनकी पार्टी और अधिक मज़बूत हो ताकि उनकी मज़बूती का सीधा प्रभाव शिवसेना व बाल ठाकरे पर पड़े। संभवत:यही वजह है कि महाराष्ट्र सरकार एक दो नहीं बल्कि कई बार राज ठाकरे के प्रति नर्म रवैया अपनाते हुए दिखाई देती है। उनकी बदकलामी, असंसदीय भाषा का प्रयोग किए जाने अथवा समाज को विभाजित किए जाने वाले उनके भाषणों के विरुद्ध या तो कोई मामला दर्ज नहीं होता या फिर वे पुलिस या अदालत में पेश नहीं होते। गोया ऐसा महसूस होता है कि महाराष्ट्र सरकार ने ही जानबूझ कर राज ठाकरे के घूम-घूम कर सांप्रदायिक व क्षेत्रीय दुर्भावना फैलाने के उनके मिशन से आंख मूंद रखी है।

बहरहाल, महाराष्ट्र में ठाकरे बंधुओं की परस्पर राजनैतिक स्पर्धा में जिस प्रकार क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता व धर्म-जाति आदि हथकंडों का प्रयोग किया जा रहा है तथा समाज को विभिन्न वर्गों में विभाजित करने हेतु जिस प्रकार गलत आंकड़े पेश किए जा रहे हैं वह निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है। एक सच्चा राष्ट्रवादी भारतीय नागरिक यदि मुंबई की 11 अगस्त की हिंसक घटनाओं को उचित नहीं मानता, उसकी निंदा करता है तथा उसे राष्ट्रविरोधी शक्तियों की कार्रवाई महसूस करता है तो उस हिंसक घटना के विरोध के नाम पर राज ठाकरे द्वारा की गई रैली व उस रैली के माध्यम से समाज को क्षेत्रवाद के आधार पर बांटने का प्रयास करना भी उतना ही निंदनीय है। एक निष्पक्ष राष्ट्रवादी भारतीय नागरिक केवल देश को जोडऩे व सभी धर्मों,क्षेत्रों व सभी समुदाय के लोगों को एक साथ जोडक़र चलने व मज़बूत व अखंड भारत के निर्माण की कल्पना कर सकता है। वास्तविक राष्ट्रवादी भारतीय सर्वप्रथम अपने राष्ट्रधर्म को जानेगा न कि महाराष्ट्र धर्म अथवा किसी अन्य ‘राज्य धर्म’ को।

*निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer)
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City  134002
Haryana
phone-09729229728

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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