
निरन्तर बदल रहे आर्थिक, वैश्विक, तकनीकी परिवेश में शासन की व्यवस्थाओं में सामयिक और आवश्यकतों के अनुकूल परिवर्तन जरूरी है। उक्त आशय के विचार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आज यहां योजना आयोग के संबंध में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आहूत बैठक में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि यद्यपि योजना की आवश्यकता कम नहीं होती परन्तु उसके विभिन्न आयामों को नई दृष्टि से देखने तथा उसे क्रियान्वित करने की नई व्यवस्था तैयार करना आज की महती आवश्यकता है। श्री चौहान ने आगे कहा कि देश के समक्ष नई चुनौतियां व समस्याओं का समय पर समाधान आवश्यक है। इसके लिए नीति निर्धारण तथा नीति निष्पादन की रणनीति में समय की मांग के अनुसार बदलाव आना चाहिए। इस दृष्टि से योजना आयोग के स्थान पर नई संस्था बनाने की माननीय प्रधानमंत्री जी पहल सामयिक है।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि भारतीय संघीय ढांचे में राज्यों का विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। प्रत्येक राज्य की भौगोलिक, आर्थिक एवं सामाजिक स्थितियां अलग-अलग हैं। योजना आयोग का वर्तमान ढांचा विकास को गति देने की बजाय अवरोधक भी बना। आयोग ने बहुत से कार्य अपने जिम्मे ले लिये, जिससे उसका अनावश्यक विस्तार हुआ और परियोजनाओं के क्रियान्वयन में विलम्ब भी। रुटीन प्रशासनिक कार्यों से आयोग को पृथक रखा जाना चाहिए था। केन्द्र शासन के विभिन्न मंत्रालयों की योजनाओं एवं परियोजना प्रस्तावों का परीक्षण कर निवेश स्वीकृति देना आयोग का काम नहींे था। मसलन आयोग ने सिंचाई परियोजना की स्वीकृति के लिए तकनीकी समिति की व्यवस्था 50 साल पहले लागू की थी जो अब प्रासंगिक नहीं है। मध्यप्रदेश की पेंच वृहद सिंचाई योजना की लागत के पुनरीक्षण का प्रस्ताव विगत दो वर्ष से लंबित है जिसके कारण परियोजना की लागत चार गुना हो चुकी है। इस प्रकार की व्यवस्थाओं में मूलभूत परिवर्तन योजना आयोग को समाप्त करने से ही हो सकेगा।
श्री चौहान ने कहा कि संस्था का जो भी स्वरूप हो उसका गठन किसी अधिनियम के अंतर्गत नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसे में संस्था का आवश्यक लचीलापन नष्ट हो जाता है और न्यायिक दखल आसान। ऐसी संस्थाओं को कानूनी जटिलताओं में नहीं डालना चाहिए। इसे मंत्रि परिषद के संकल्प के द्वारा स्थापित किया जाना चाहिए। साथ ही इसका नामकरण भी ऐसा होना चाहिए जो सही दिशा और सही सोच का परिचायक हो व देश को आगे ले जाने वाला हो।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि भारतीय संघीय ढांचे में राज्यों का विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। प्रत्येक राज्य की भौगोलिक, आर्थिक एवं सामाजिक स्थितियां अलग-अलग हैं। योजना आयोग का वर्तमान ढांचा विकास को गति देने की बजाय अवरोधक भी बना। आयोग ने बहुत से कार्य अपने जिम्मे ले लिये, जिससे उसका अनावश्यक विस्तार हुआ और परियोजनाओं के क्रियान्वयन में विलम्ब भी। रुटीन प्रशासनिक कार्यों से आयोग को पृथक रखा जाना चाहिए था। केन्द्र शासन के विभिन्न मंत्रालयों की योजनाओं एवं परियोजना प्रस्तावों का परीक्षण कर निवेश स्वीकृति देना आयोग का काम नहींे था। मसलन आयोग ने सिंचाई परियोजना की स्वीकृति के लिए तकनीकी समिति की व्यवस्था 50 साल पहले लागू की थी जो अब प्रासंगिक नहीं है। मध्यप्रदेश की पेंच वृहद सिंचाई योजना की लागत के पुनरीक्षण का प्रस्ताव विगत दो वर्ष से लंबित है जिसके कारण परियोजना की लागत चार गुना हो चुकी है। इस प्रकार की व्यवस्थाओं में मूलभूत परिवर्तन योजना आयोग को समाप्त करने से ही हो सकेगा।
श्री चौहान ने कहा कि संस्था का जो भी स्वरूप हो उसका गठन किसी अधिनियम के अंतर्गत नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसे में संस्था का आवश्यक लचीलापन नष्ट हो जाता है और न्यायिक दखल आसान। ऐसी संस्थाओं को कानूनी जटिलताओं में नहीं डालना चाहिए। इसे मंत्रि परिषद के संकल्प के द्वारा स्थापित किया जाना चाहिए। साथ ही इसका नामकरण भी ऐसा होना चाहिए जो सही दिशा और सही सोच का परिचायक हो व देश को आगे ले जाने वाला हो।