दम तोड़ती संवेदनाएं…

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– निर्मल रानी –

भारतवर्ष महादानियों व परोपकारियों का देश माना जाता है। यदि हम अपने देश में चारों ओर नज़र उठाकर देखें तो लगभग प्रत्येक राज्य में लंगर,भंडारे,छबीलें,मुफ्त स्वास्थय सुविधाएं,गरीब कन्याओं की शादियां,आंखों के मुफ्त ऑप्रेशन कैंप,गरीबों को सर्दियों में स्वेटर तथा कंबल बांटने,गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने जैसी गतिविधियां संचालित होती दिखाई देती हैं। इन्हें देखकर तो यही प्रतीत होता है गोया परोपकारियों के इस देश में किसी गरीब व्यक्ति को किसी भी प्रकार की दु:ख-तकलीफ तो हो ही नहीं सकती। इसमें कोई संदेह भी नहीं कि गरीबों के कल्याण के लिए संचालित होने वाले इस प्रकार के संगठनों से देश के गरीबों को फायदा पहुंचता भी रहता है। परंतु इसी तस्वीर का दूसरा पहलू इतना भयावह है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इसी परोपकारी व दानी समाज में हमें ऐसे लोग भी मिल जाएंगे जिन्हें देखकर हम यह कहने को मजबूर होंगे कि शायद इस पृथ्वी से मानवता समाप्त हो चुकी है और मानव संवेदनाएं अपना दम तोड़ चुकी हैं। दिलों को झकझोर कर रख देने वाली ऐसी खबरें सुनकर तो एक बार ऐसा भी महसूस होने लगता है कि क्या वास्तव में हमारे देश में गरीबों के कल्याण के लिए कोई संगठन कार्य कर भी रहा है या नहीं? और यदि है भी तो ऐसे संकटकालीन समय में यह संगठन या इनसे जुड़े किसी सदस्य की नज़रें उस समय ऐसे लाचार,बेबस व गरीब व्यक्ति पर क्यों नहीं पड़तीं जो अपने जीवन के कठिनतम दौर से गुज़र रहा होता है?

पिछले दिनों उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से दिल दहला देने वाला एक ऐसा ही समाचार प्राप्त हुआ। खबरों के अनुसार उत्तर प्रदेश के बिजनौर जि़ले के धामपुर कस्बे का पंकज नामक निवासी अपने बीमार भाई सोनू को लेकर धामपुर से देहरादून आया। पंकज धामपुर में फलों की रेहड़ी लगाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करता है। टीबी से पीडि़त उसके भाई सोनू को धामपुर के अस्पताल से देहरादून के सरकारी अस्पताल में रेफर किया गया था। मात्र दो हज़ार रुपये जेब में रखकर गरीब पंकज अपने बीमार भाई का इलाज कराने देहरादून जा पहुंचा। पैसों की तंगी के चलते समुचित टेस्ट आदि न हो पाने के कारण सोनू की मौत हो गई। अस्पताल द्वारा सोनू को टेस्ट आदि की नि:शुल्क सुविधा इसलिए उपलब्ध नहीं कराई गई क्योंकि वह स्थाई रूप से उतराखंड का निवासी होने का प्रमाण पत्र नहीं उपलब्ध करा सका। सोनू की मौत के बाद जब पंकज अपने भाई के शव को वापस धामपुर ले जाना चाह रहा था उस समय उसके पास एंबुलेंस का भाड़ा देने हेतु पांच हज़ार रुपये नहीं थे। मजबूर पंकज ने अपने भाई की लाश अस्पताल के परिसर में रखकर दर्जनों लोगों से एंबूलेंस का भाड़ा मांगा परंतु किसी एक व्यक्ति ने भी उसकी कोई सहायता नहीं की। बजाए इसके कई लोगों ने उससे यह तक कहा कि इस तरह की बातें तो यहां रोज़-रोज़ होती रहती हैं तो किसी ने कहा कि यदि हम इस तरह लोगों की मदद करते रहे तो हमारा अपना घर चलाना मुश्किल हो जाएगा।

आखिरकार पंकज ने अपने भाई की लाश अपनी पीठ पर रखकर देहरादून से धामपुर की सडक़ मार्ग से लगभग 175 किलोमीटर लंबी यात्रा पैदल ही तय करने का संकल्प किया और पीठ पर मृतक भाई की लाश लादकर अस्पताल से धामपुर की ओर निकल पड़ा। कुछ ही दूर जाने के बाद पंकज की मुलाक़ात कुछ हिजड़ों से हुई जो अपने किसी मरीज़ को लेकर दून अस्पताल की ओर जा रहे थे। उन्हें पंकज की स्थिति को देखकर संदेह हुआ। हिजड़ों ने पंकज से पूरी दास्तान पूछी और बाद में वे उसे अपने साथ वापस अस्पताल परिसर ले गए। हिजड़ों ने अपने पास से दो हज़ार रुपये एंबुलेंस वाले को दिए तथा खुद जनता से अपने तरीके से एक हज़ार रुपये और इक_ा किए। इस प्रकार हिजड़ों ने ही एक एंबुलेंस के चालक को मात्र तीन हज़ार रुपये में धामपुर तक जाने तथा पंकज के भाई सोनू की लाश पहुंचाने का विनम्र आग्रह किया जिसे एक एंबूलेंस चालक ने स्वीकार कर लिया। इस प्रकार समाज के इस उपेक्षित समझे जाने वाले वर्ग ने उस गरीब की सहायता की। जबकि खुद को धर्मात्मा,दानी-महादानी,क्रांतिकारी,राष्ट्रवादी व संवेदनशील समझने की गलतफहमियां पालने वाला एक बड़ा तबका पंकज को अपने मृतक भाई की लाश पीठ पर लादकर 175 किलोमीटर तक की लंबी यात्रा पर जाते हुए देखता रहा।

देहरादून में होने वाली यह घटना इस देश की इस प्रकार की कोई पहली घटना नहीं थी। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि भविष्य में भी ऐसी घटना नहीं हो सकती। इसके पहले भी मध्यप्रदेश व झारखंड जैसे राज्यों से ठीक इसी तरह की खबरें आ चुकी हैं। जबकि मृतक का कोई सगा-संबंधी उसकी लाश को कभी पीठ पर लादकर तो कभी साईकल पर रखकर अपने घर ले जा रहा है। कारण सिर्फ यही है कि उसके पास लाश को घर तक ले जाने के लिए एंबुलेंस का किराया नहीं था। कई बार तो हमें ऐसी खबरें भी सुनाई देती हैं कि किसी निजी अस्पताल द्वारा किसी मृत व्यक्ति की लाश उसके परिजनों को केवल इसलिए नहीं सौंपी गई क्योंकि उसने अस्पताल का बिल चुकता नहीं किया था। गोया निजी अस्पतालों के मालिक मृतक का शव भी अपने पास गिरवी रख लेते हैं और जब तक उसके परिजन अस्पताल का पूरा बिल चुकता नहीं कर देते तब तक मृत मरीज़ की लाश उसके परिजनों को नहीं सौंपते। ऐसे में जो परिवार अपने बीमार सदस्य के लिए दवा-इलाज के पैसे नहीं जुटा पाता उसी को अपने परिजन की गिरवी लाश छुड़ाने के लिए लोगों से कजऱ् लेना पड़ता है। सोचा जा सकता है कि वह अपने उस मृतक संबंधी का संस्कार,उसके क्रिया-क्रम तथा मरणोपरांत होने वाले अन्य धार्मिक रीति-रिवाज कैसे पूरे करता होगा?

अत्यंत आश्चर्यजनक तथ्य हैं कि हमारे देश में एक ओर तो स्वयं को धार्मिक बताने व दिखाने का चलन बेहद तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। तथाकथित गुरुओं,धर्म उपदेशकों व प्रवचनकर्ताओं की बाढ़ सी आई हुई है। तीर्थ यात्रियों व कांवडिय़ों की संख्या में दिन-प्रतिदिन तेज़ी से इज़ाफा होता जा रहा है। नित्य नए समाजसेवी संगठनों की कोई न कोई कारगुज़ारियां सामने आती रहती हैं। देश में दानी व दयालु लागों की भरमार देखी जा सकती है। अनेकानेक धर्मार्थ संस्थाएं संचालित हो रही हैं। हमारे देश में विभिन्न लंगरों व भंडारों के माध्यम से लाखों लोग नि:शुल्क भोजन ग्रहण करते हैं। देश के विभिन्न धर्मस्थानों में लाखों दानपात्र लगे देखे जा सकते हैं। यहां तक कि देश में कई प्रमुख धर्मस्थलों पर ऐसे दानपात्र भी हैं जिनमें रुपये-पैसे नहीं बल्कि सोने व चांदी के ज़ेवर डाले जाते हैं। गर्मी में शरबत,लस्सी व शीतल जल की छबीलें तो लगभग प्रत्येक नगरों,कस्बों व बाज़ारों में देखी जा सकती हैं। सर्दियों में परोपकारी सज्जनों द्वारा गरीबों को मुफ्त स्वेटर,कंबल व अन्य गर्म कपड़े वितरित किए जाने के समाचार सुनाई देते हैं। ऐसे में क्या वजह है कि कोई गरीब व्यक्ति अपने मृतक परिजन की लाश कंधे पर उठाने के लिए सिर्फ इसलिए मजबूर हो जाए कि उसके पास शव को घर तक ले जाने के लिए किसी वाहन को देने हेतु किराया नहीं है? ऐसी घटना के चश्मदीद लोगों की संवेदनहीनता की इससे अधिक इंतेहा आिखर और क्या हो सकती है? इतने विशाल तथा परोपकारी देश के किसी भी हिस्से से ऐसे समाचारों का आना निश्चित रूप से यही साबित करता है कि मानव संवेदनाएं शायद अब अपना दम तोड़ रही हैं।

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परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 4003
Email :nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

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