जाट आरक्षण आंदोलन : सुलगते सवाल

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– तनवीर जाफरी –

tanveer jafri,article by tanvir jafriपिछले दिनों देश का सबसे खुशहाल एवं प्रगतिशील समझा जाने वाला हरियाणा राज्य जाट आरक्षण आंदोलन के नाम पर भीड़तंत्र का शिकार हो गया। महाभारत की इस ऐतिहासिक धरती को वैसे तो सांप्रदायिक सद्भाव,फसलों की अच्छी पैदावार तथा दूग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है। इस राज्य का प्रमुख नारा भी यही है- म्हारा देस हरियाणा सै,जहां दूध-दही का खाणा सै। देश की तरक्की तथा यहां की अर्थव्यवस्था में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले इस जाट बाहुल्य राज्य को पिछले दिनों उस समय गोया किसी की नज़र लग गई या फिर यह राज्य किसी गहरी साजि़श का शिकार हो गया जबकि आरक्षण के नाम पर छिड़ा जाट आंदोलन हिंसक हो उठा। जाट समुदाय वैसे तो आमतौर से शांतिप्रिय समुदाय ही समझा जाता है। परंतु या तो इस समुदाय के लोगों को 2014 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भडक़ी सांप्रदायिक हिंसा में एकजुट होते देखा गया या फिर पिछले दिनों जाट समुदाय हरियाणा में आरक्षण की मांग को लेकर सडक़ों पर उतरा दिखाई दिया। राजनैतिक हलकों में इस बात के कय़ास लगाए जा रहे हैं कि चाहे वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर या आसपास के क्षेत्रों में फैली सांप्रदायिक हिंसा हो या फिर हरियाणा में हिंसक हुआ जाट आंदोलन, इन दोनों ही अवसरों पर जाट समुदाय को राजनीति का शिकार बनाने तथा इसका राजनैतिक लाभ उठाने की कोशिश की गई है। और हरियाणा के जाट आरक्षण आंदोलन के पश्चात जिस प्रकार की जातिवादी राजनीति को हवा देने की कोशिश की जा रही है उसके राजनैतिक निहितार्थ को भी समझना बहुत ज़रूरी है।

सर्वप्रथम तो इस आंदोलन में जिस प्रकार की हिंसा घटी, खासतौर पर रोहतक शहर में व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया तोडफ़ोड़,लूटमार व आगज़नी की गई उसकी जितनी भी निंदा की जाए वह कम है। इसके अतिरिक्त इस आंदोलन को कलंकित करने में रही-सही कसर कथित मुरथल बलात्कार कांड ने पूरी कर दी। ऐसे कृत्यों को कोई भी समझदार व न्यायप्रिय व्यक्ति अथवा संगठन न तो अच्छा कह सकता है न ही इसे जायज़ ठहरा सकता है। परंतु भीड़तंत्र द्वारा उग्र होने के बाद हिंसक रूप धारण कर लेना हमारे देश के लिए कोई नई बात भी नहीं है। 1984 के सिख दंगे, 1992 की अयोध्या घटना,2002 का गोधरा रेल हादसा और 2002 के ही गुजरात के राज्यस्तरीय व्यापक सांप्रदायिक दंगे, राजस्थान का गुर्जर आंदोलन तथा गत् वर्ष गुजरात में ही छिड़ा पटेल समुदाय का पाटीदार आंदोलन या फिर पिछले दिनों पूर्णिया व मालदा में फैली हिंसा आदि ऐसे और भी कई उदाहरण हैं जिसमें यह देखा गया है कि भीड़तंत्र ने कानून व्यवस्था को धत्ता बताते हुए सडक़ों पर अपनी मनमजऱ्ी का तांडव किया। कहीं लोगों को जि़ंदा जलाया गया,कहीं संविधान तथा अदालती आदेशों की धज्जियां उड़ाई गईं, कहीं इंसानों को जि़ंदा जलाया गया, कहीं मांओं के गर्भ को चीरकर बच्चे को बाहर निकाल कर जलाया व काटा गया,कहीं व्यवसायिक,औद्योगिक इकाईयों को सामुदायिक अथवा धार्मिक आधार पर चुन-चुन कर निशाना बनाया गया, रेल की पटरियां उखाड़ी गईं तो कहीं पुलिस थानों को ही आग के हवाले कर दिया गया। गोया हमारे देश नेे विभिन्न अवसरों पर भीड़तंत्र का राज होने के बाद  उग्र भीड़ का वह नंगा नाच देखा है जिसकी आम इंसान कल्पना भी नहीं कर सकता।

परंतु ऐसी किसी भी हिंसक घटना के लिए किसी एक समुदाय,धर्म अथवा जाति के लोगों को ही हिंसक ठहरा देना या उसे बदनाम करना अथवा उस समुदाय,जाति या धर्मविशेष के विरुद्ध लामबंद होने की कोशिश करना, ऐसा प्रयास उस हिंसक आंदोलन से भी अधिक खतरनाक साबित हो सकता है। परंतु दुर्भाग्यवश हमारे देश में सत्ता के भूखे राजनीतिज्ञों द्वारा अग्रेज़ों की बांटो और राज करो की नीति का अनुसरण करते हुए दशकों से यही खेल खेला जा रहा है। जिस प्रकार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय को समुदाय विशेष के लोगों के विरुद्ध भडक़ा कर उसे हिंसा पर उतारने का चक्रव्यूह रचा गया था उसी प्रकार अब हरियाणा के जाट समुदाय के लोगों के विरुद्ध राज्य की अन्य जातियों को संगठित करने की कोशिश की जा रही है। ऐसा कोई भी प्रयास राजनैतिक रूप से भले ही किसी दल विशेष को राजनैतिक लाभ क्यों न पहुंचा दे परंतु राज्य में सामुदायिक एकता के दृष्टिगत् इस प्रकार की जातिवादी लामबंदी बेहद खतरनाक है। ऐसा भी प्रचारित किया जा रहा है कि जाट आंदोलन का प्रमुख कारण यह था कि जाट समुदाय के लोग हरियाणा के वर्तमान गैर जाट मुख्यमंत्री को,मुख्यमंत्री के रूप में सहन नहीं कर सके इसलिए उन्होंने आरक्षण के नाम पर इस प्रकार के हिंसक आंदोलन का सहारा लिया और हिंसा के माध्यम से अपनी कुंठा निकाली।

बावजूद इसके कि 1966 में पंजाब से अलग होने के बाद राज्य में अधिकांश समय तक जाट मुख्यमंत्रियों के रूप में राव वीरेंद्र सिंह,बंसीलाल,चौधरी देवीलाल,ओम प्रकाश चौटाला,हुक्म सिंह तथा भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे जाट नेताओं का दौर रहा है। परंतु इन ऐतिहासिक तथ्यों से इंकार नहीं किया जा सकता कि इसी राज्य के अस्तित्व में आने पर हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री के रूप में एक नवंबर 1966 को पंडित भगवत दयाल शर्मा जोकि एक उच्चकोटि के ब्राह्मण परिवार से थे, ने राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला था। इसके पश्चात वैश्य समाज के बनारसी दास गुप्ता 1975 में राज्य के मुख्यमंत्री बने। बिश्रोई समाज से संबंध रखने वाले भजनलाल ने रिकॉर्ड पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली। बनारसीदास गुप्ता ही 1990 में जनता दल की सरकार के पुन: मुख्यमंत्री बने। और अब पंजाबी समुदाय के मनोहर लाल खट्टर हरियाणा की पहली पूर्ण बहुमत वाली भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री हैं। लिहाज़ा यह प्रचारित करना कि हरियाणा में पहले कोई गैर जाट मुख्यमंत्री नहीं हुआ या जाट समुदाय के लोग किसी गैर जाट व्यक्ति को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा हुआ नहीं देख पा रहे यह पूरी तरह निराधार तथा जाट समुदाय को बेवजह बदनाम करने की कोशिश मात्र है। हरियाणा में जाट समुदाय केवल कृषि पर ही आश्रित नहीं है बल्कि यहां के सरकारी विभागों में भी जाट समुदाय के लोग बड़ी तादाद में सेवारत हैं। सैकड़ों, आईएएस,आईपीएस,एचसीएस तथा एचपीएस अधिकारी अपनी योग्यता का परिचय देते हुए देश की सेवा में लगे हुए हैं। जाट रेजीमेंट के नाम से प्रसिद्ध भारतीय सेना की एक विशेष यूनिट देश की रक्षा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है। ऐसे में इस पूरे समुदाय विशेष को हिंसा,आगज़नी या अन्य आपराधिक घटनाओं के लिए जि़म्मेदार ठहरा कर उनके विरुद्ध जातिगत् स्तर पर संगठित होने की कोशिश करना कतई मुनासिब नहीं है।

जाट आरक्षण आंदोलन की आड़ में जिन उपद्रवी तत्वों ने हिंसक घटनाओं में शिरकत की है सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया है तथा बलात्कार अथवा अन्य महिला उत्पीडऩ संबंधी घटनाओं में उनका हाथ रहा है ऐसे सभी लोग सज़ा के पात्र हैं। यदि प्रशासन इनकी पहचान कर इनके विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई करेगा तो जाट समुदाय का भी निश्चित रूप से सरकार को पूरा सहयोग मिलेगा। क्येंकि जाट समुदाय के जि़म्मेदार लोगों को भी इस बात का पूरा एहसास है कि ऐसी घिनौनी व राष्ट्रविरोधी घटनाओं से उनके समाज का सिर नीचा हुआ है। लिहाज़ा ऐसी हरकतों के लिए जि़म्मेदार लोगों को कठघरे में ज़रूर खड़ा करना चाहिए और पीडि़त लोगों को यथाशीघ्र न्याय मिलना चाहिए। इस बात का भी पता लगाया जाना चाहिए कि आरक्षण के नाम पर छेड़े गए इस आंदोलन को हिंसक बनाने तथा गैर जाट लोगों के व्यवसायिक ठिकानों को चुन-चुन कर निशाना बनाने के पीछे कौन सी शक्तियां काम कर रही थीं। उन लोगों के िखलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए जिन्होंने अपने नफरत फैलाने तथा भडक़ाने वाले भाषणों के द्वारा इस आंदोलन में  जलती आग में घी डालने का काम किया। इस बात को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए कि जो शक्तियां जाट समुदाय के विरुद्ध राज्य की अन्य बिरादरियों को संगठित करने का प्रयास कर रहीं हैं उसका राजनैतिक लाभ आिखर किसे मिल सकता है? हरियाणा के सभी धर्मों व जातियों के लोगों का यह कर्तव्य है कि राज्य में पुन: पहले जैसी एकता व भाईचारे का माहौल कायम करने में अपनी सक्रिय  व रचनात्मक भूमिका निभाएं। स्वयं को किसी भी राजनैतिक दल अथवा विचारधारा के हाथों की कठपुतली न बनने दें। हिंसक व अराजक तत्वों के द्वारा किए जाने वाले किसी भी घिनौने काम के लिए किसी धर्म अथवा समुदाय विशेष को जि़म्मेदार ठहराने की प्रवृति से कतई बाज़ आएं। इसी प्रकार के संकीर्ण विचार पहले ही देश को खतरनाक रास्ते पर ले जा रहे हैं। हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के संदर्भ में उपरोक्त सुलगते सवालों पर चिंतन करने की बहुत सख्त ज़रूरत है।

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Tanveer-Jafri1About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

Contact – : Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address –  1618/11, Mahavir Nagar,  AmbalaCity. 134002 Haryana

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