जगदीश टाइटलर केस और सवाल

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ज़ाकिर हुसैन

नई दिल्ली।  84 के दंगों ने जगदीश टाइटलर के राजनीतिक और सामाजिक जीवन को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया। 84 के दंगों के आरोपी होने के कारण जगदीश टाइटलर को पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर होना पड़ा, फिर एक सिख पत्रकार के जूता प्रकरण के कारण उनकी लोकसभा की उम्मीदवारी भी गंवानी पड़ी, लेकिन दंगों के मुख्य गवाह सुरेंद्र सिंह खैरा की पुत्रवधू हरप्रीत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जगदीश टाइटलर के बचाव में सामने आई और जगदीश टाइटलर के लिए उम्मीद की एक किरण फिर नजर आने लगी। गौरतलब है कि जगदीश टाइटलर के विरोध में सिख खड़े हैं, तो दूसरी ओर जगदीश टाइटलर के साथ भी सिख खड़े हैं। जगदीश टाइटलर के समर्थक सिखों का कहना है कि जगदीश टाइटलर के ऊपर सभी आरोप बेबुनियाद और झूठे हैं।  जगदीश टाइटलर की उम्मीदवारी वापस लाने के लिए टाइटलर समर्थक सिखों ने धरने-प्रदर्शन भी किए थे। जगदीश टाइटलर शुरू से ही अपने आप को बेगुनाह बताते चले आ रहे हैं और उन्होंने कुछ समय पहले एक निजी चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा था कि 31 दिसंबर 1984 को मेरे घर में जितने सिख परिवार समा सकते थे, उससे कहीं ज्यादा मेरे घर में थे और मेरे बच्चे जमीन पर सोए थे। जगदीश टाइटलर को सबसे ज्यादा दुख इस बात का है कि 84 के दंगों के आरोपों ने उनकी सामाजिक स्थिति के साथ-साथ उनकी मानसिक स्थिति भी खराब करके रख दी है जिससे उनको बहुत बड़ा मानसिक आघात पहुंचा है। गौरतलब है कि जगदीश टाइटलर के इतने लंबे राजनीतिक और सामाजिक सफर में 84 के दंगों के अलावा और कोई आरोप कभी उनके राजनीतिक विरोधियों तक ने नहीं लगाया। इससे साफ जाहिर है कि राजनीति और केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अलावा राजनीतिक और सामाजिक साफ-सुथरी छवि वाले लोग बहुत कम ही हैं तभी शायद अपने लोकसभा क्षेत्र से जगदीश टाइटलर ने अपने परिवार के किसी भी सदस्य की उम्मीदवारी के लिए पैरवी नहीं की, जबकि कांग्रेस के साथ दूसरी राजनीतिक पार्टियों के कई बड़े नेता अपने बेटे या बेटी को टिकट न दिए जाने की वजह से अंदरखाने पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं.  
शायद इस बात का अहसास दंगों के मुख्य गवाह सुरेंद्र सिंह खैरा  के परिवार को हो चला है। तभी उसकी पुत्रवधू हरप्रीत ने अपने ससुर पर आरोप लगाते हुए कहा है कि उसके ससुर ने पैसों के लालच में आकर जगदीश टाइटलर को दंगे के मामले में फंसाया है। इतना ही नहीं सुरेंद्र सिंह खैरा के पिता सरदार अजीत सिंह ने भी हरप्रीत के आरोपों को सही बताते हुए कहा है कि उन्हें सुरेंद्र सिंह खैरा को अपना पुत्र कहते हुए शर्म आती है।

हरप्रीत का कहना है कि उनके पति नरेंद्र ने ही उनको बताया है कि उसके पिता सुरेंद्र सिंह खैरा ने 84 के दंगे के मामले में कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर के खिलाफ झूठी गवाही दी थी। नरेंद्र ने बताया कि उसके पिता झूठे और लालची हैं। वे पैसों के लिए कुछ भी कर सकते हैं। उसका यह भी आरोप है कि उसके ससुर ने उसे पांच लाख रुपए का लालच देकर अपने बेटे से तलाक दिलाने की भी कोशिश की। वहीं, सरदार अजीत सिंह का कहना है कि सुरेंद्र सिंह खैरा ने 84 के दंगे मामले में झूठी गवाही देकर उनका सिर झुका दिया है। उसने ग्रंथी होते हुए झूठी गवाही दी, इसके लिए रब उसे कभी माफ नहीं करेगा।

सुरेंद्र सिंह खैरा ने अपनी पुत्रवधू और अपने पिता के आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा है कि उसके पिता जगदीश टाइटलर ने उसके पिता को बहका रखा है। इसके चलते उसके पिता ने मजनूं का टीला स्थित उसके मकान पर कब्जा कर रखा है। साथ ही गवाही से अलग होने के लिए उस पर दबाव बनाया जा रहा है। उधर, कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर ने सुरेंद्र सिंह खैरा के सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए खुद को निर्दोष बताया है।

अब सवाल यह उठता है कि अगर ऊपर लिखित सभी तथ्य सही हैं तो क्या ये धर्म के आधार पर किसी भी व्यक्ति के इतने लंबे समय तक किए गए मानसिक और सामाजिक शोषण की भरपाई हो पाएगी और क्या हमारे देश में कभी कोई ऐसा कानून बनेगा कि इस तरह के गवाहों की  विश्वसनीयता की जांच करके उन्हें अदालती कार्रवाई के वक्त अदालत में हाजिर होना जरूरी हो, क्योंकि भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बांलादेश आदि देशों से झूठे दस्तावेजों के जरिये विदेशों में शरणार्थी बनना बहुत ही आसान है। ऐसे केसों में न सिर्फ देश की छवि धूमिल होती है, बल्कि विकसित देशों के लोगों को हमारे ऊपर व्यंय कसने का बैठे-बिठाए एक और मौका हाथ लग जाता है।

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