खुलने लगी इस्लाम के खिलाफ मीडिया की साजिशें

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islam_1958725c-इमरान नियाज़ी-

इस्लाम और मुसलमान को तरह तरह से आतंकित करने की साजिशों में मीडिया का अहम रोल रहा है। पहले आतंकवाद के नाम पर फिर लड़कियों को आगे रखकर और फिर गायों को मोहरा बनाकर आरएसएस व अमेरिका ने मुसलमान को आतंकित करने में कसर नहीं छोड़ी। अमेरिका व आरएसएस के इस्लाम मिटाओं अभियान में भारतीय रंग बिरंगी मीडिया का अहम किरदार रहा है। मामला चाहे मालेगांव धमाकों का हो या मक्का मस्जिद उड़ाने की कोशिश का, बात चाहे समझौता एक्सप्रेस उड़ाने की साजिश की हो या अजमेर दरगाह की, बम्बई धमाके हो या दिल्ली हाईकोर्ट धमाके हर बार धमाके की आवाज से पहले ही आरएसएस लाबी की मीडिया जिम्मेदारों के नामों की घोषणाये करने लगती है दिल्ली हाईकोर्ट गेट धमाके के मामले में तो एक चैनल ने हद ही कर दी थी कि चैनल के पास ईमेल भी आने लगी थी, मानों जैसे धमाके करने वालों के पास किसी सरकारी एजेंसी का ईमेल एडरेस नही था या फिर दूसरे मीडिया कार्यालयों का भी ईमेल एडरेस नहीं था, बस कथित चैनल का ही ईमेल आईडी थी, हमने उसी वक्त कहा था कि ये मेल सिर्फ साजिश है। यह और बात है कि मुसलमान और इस्लाम के खिलाफ की जाने वाली साजिशों के सामने आने के बाद हिन्दुस्तान कानून सहम कर मुंह छिपाकर बैठ जाता है मामला चाहे बाबरी पर आतंक बरपाने का हो या गोधरा में साजिश रचकर गुजरात भर में बेगुनाह मुसलमानों पर आतंकी हमले करने का हो, कई कई बार जांचों में सच्चाई सामने आने के बावजूद कानून साजिश कर्ताओं के नाम सुनकर कांप जाता है। किसी भी मामले को उठाकर देखिये, जब जब मुसलमान के खिलाफ साजिश बेनकाब हुई है तब तब कानून दुम दबा गया। चाहे वह साजिश गोधरा में की गयी हो या उ0प्र0 के नोएडा में पकड़े गये इण्डियन मुजाहिदीन नाम से काम करने वाले असल आतंकियों को डाक्टर से रंगदारी वसूलते हुए रंगे हाथों पकड़े जाने की हो। किसी भी मामले को आगे नहीं बढ़ाया जाता। बात करें मीडिया के हाथों हो रही मुसलमान और इस्लाम के खिलाफ साजिशों की, मीडिया इस्लाम ओर मुसलमान को बदनाम करने में बढ़चढ़ कर काम करती नजर आ रही है। किसी भी मुसलमान को पकड़कर सुरक्षा एजेंसियां आतंकी बता देती हैं तुरन्त ही आरएसएस पोषित मीडिया ऊपर नीचे का जोर लगा देती है आतंकी मशहूर करने में जबकि आतंकी असीमानन्द, प्रज्ञा ठाकुर ओर उसके गैंग के सभी आतंकियों को साध्वी, स्वामी ही लिखा व बोला जाता है। कुछ ही दिन पहले पंजाब के दीनापुर में पुलिस थाने पर हमले के नाम पर मीडिया ने ऊपर नीचे का जोर लगाकर इल्जाम मुसलमानों के सिर थोपने की कोशिश की लेकिन सिर्फ हफ्ता भर में ही मीडिया की नीच साजिश बेनकाब हो गयी ओर साफ हो गया कि हमलावरों में एक भी मुसलमान नहीं था। जब सच सामने आया तो मीडिया दुम दबा गयी ठीक वैसे ही जैसे कि मालेगांव, मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह, समझौता एक्सप्रेस, नांदेड, गोरखपुर, बनारस, कानपुर, बम्बई की लोकल ट्रेन, घाटकोपर बस, मामलों में मुस्लिमों के नामों को उछालने वाली आरएसएस पोषित मीडिया मामलों की सच्चाई (आतंकी असीमानन्द, आतंकी प्रज्ञा ठाकुर, आतंकी कर्नल श्रीकांत, आतंकी इंद्रेष कुमार, आतंकी देवेंद्र गुप्ता, आतंकी सुनील जोशी, आतंकी संदीप डांगे, आतंकी रामचंद्र कलसांगरा उर्फ रामजी, आतंकी शिवम धाकड, आतंकी लोकेश शर्मा, आतंकी समंदर, आदित्यनाथ. आतंकी राजकोंडवार, आतंकी भूपेन्द्र सिंह छावड़ा और राजीव मिश्रा के नाम सामने आने पर डरी हुई कुतिया की तरह दुम दबाकर छिप गयी। गौरतलब बात तो यह है कि इन सभी मामलों में असल आतंकियों के नाम सामने आने से पहले बड़ी बड़ी जानकारियों से भरी कहानियां मीडिया ने प्रसारित की, और जब असल आतंकियों के नाम सामने आये तो मैया मर गयी मीडिया की। बिहार के महाबोद्धि ब्लास्ट मामले में भी आरएसएस पोषित मीडिया ने नाचना शुरू किया लेकिन जल्दी ही सच्चाई ने सामने आकर पत्रकार नामी गुण्डों का मुंह काला कर दिया। गुजरी साल नोयडा में आरएसएस और मीडिया के बनाये संगठन आईएम के असल आतंकी डाक्टर से उगाही करते रंगे हाथों पकड़े गये पुलिस ने तो मामला रफा दफा किया ही साथ ही रंग बिरंगे अखबार व साजिश करके खबरें बनाकर चीखने वाले चैनलों की औकात सामने आ गयी। हाल ही में बरेली से पकड़ लिये गये मुस्लिम नौजवानों की बाबत भी कहानियों का पिटारा खोल रखा है, दो साल पहले पाकिस्तान से दो-ढाई सौ घुसपैठिये भारत आये जोकि आजतक सरकारी महमान बनाकर रखे जा रहे हैं जिनमें एक पाकिस्तान सरकार में मंत्री भी था, हर वक्त पाकिस्तान का रोना रोने वाली मीडिया के कोई मिर्ची नहीं लगी। बम्बई ताज होटल मामले में मीडिया पूरी तरह नंगी होकर नाची। दो साल से लगातार बर्मा में आतंकी बेगुनाह मुसलमानों का कत्लेआम कर रहे हैं रंगबिरंगे अखबार और नम्बर वन होने का दावा करने वाले चैनलों की दुमे दबी हैं आसाम आतंकियों ने मुसलमानों का कत्लेआम किया किसी में गूदा नही था इन खबरों को छापने या दिखाने का। गुजरात आतंक को दंगा कहा जाता है, आसाम, छत्तीसगढ़, बंगाल, झारखण्ड, बिहार, यहां तक कि नैपाल के आतंकियों को आतंकी की बजाये माओवादी और नकसलवादी बताया जाता है। हाल ही में पठानकोट मामले में भी आरएसएस पोषित मीडिया कहानी पर कहानी पेश कर रही है। हाल ही में यूके के प्रधान मंत्री डेविड कैमरून ने बाहरी महिलाओं को अंग्रेजी बोलना न आने पर उनके देश वापिस भेजने की बात कही थी इसे आरएसएस पोषित भारतीय मीडिया ने  “मुस्लिम महिलाओं” लिखकर साम्प्रदायिक रंग दिया। अभी रूड़की में चार मुस्लिमों को पकड़कर आतंकी बता दिया मीडिया ने भी उछलना शुरू कर दिया अन्तरयामी मीडिया को पकड़ लिये गये चारों व्यक्तियों के दिमागों में चलने वाले प्लानों के सपने भी आने लगे तरह तरह की कहानियां पेश की जाने लगीं। दरअसल सिमी, इण्डियन मुजाहिदीन, लश्करे तैबा, जैसे नामों के साथ मुसलमान और इस्लाम को आतंकी साबित करने की कोशिशें तो नाकारा साबित हुई, कुछ संगठनों के असल कारिन्दों को शहीद हेमन्त करकरे ने बेनकाब कर दिया तो आईएम के असली दो कारिन्दें गुजरे साल उत्तर प्रदेश के नोयडा में एक डाक्टर से रंगदारी वसूलते पकड़े गये, तो वहां से आईएम का नाम भी पीछे कर दिया गया। मीडिया में खबर नहीं आई। अब इस्लाम व मुस्लिम दुश्मनों के दिमागों ने एक नया नाम “आईएसआईएस” की उपज की है। अब इस नई उपज के सहारे इस्लाम व मुस्लिम मिटाने की मुहिम को चलाने की कोशिशें की जाने लगीं। इसी प्लानिंग के तहत इस्लाम दुश्मनों ने बहुत सी वीडियो फुटेज भी सोशल मीडिया में वायरल की जिसमें लोगों की गर्दनें काटते दिखाया गया। ये फुटेज अमरीकी कारसाजों ने तैयार की थी। असल में किसी का गला कटा ही नहीं, इन्हीं फुटेज के सहारे अमरीका ने आईएस नाम की उपज करके अरब देशों पर आतंकी हमले शुरू कर दिये, साथ आरएसएस लाबी को भी उकसा दिया अब आरएसएस पोषित मीडिया आईएम, अलकायदा, लश्करे तैबा वगैरा की स्पेलिंग ही भूल गयी बस आईएस याद करली है। अब हाल यह है कि किसी के घर बच्चे ने जन्म लिया तो आईएस ने किया किसी को बुखार हो गया तो वो भी आईएस ने कर दिया। आये दिन मीडिया में खबरें आती है कि  ष्कश्मीर में पाकिस्तानी झण्डे लगाये गये पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाये गयेष्। क्या इन खबरों में बाल बराबर भी सच्चाई होती है इसका जीता जागता सबूत है गुजरे दिनों दौसा में एक पत्रकार नामक जाहिल ने इस्लामी झण्डे को पाकिस्तानी झण्डा बताते हुए माहोल खराब कर दिया। दरअसल पाकिस्तान तो सिर्फ एक बहाना है असल दुश्मनी तो मुसलमान से है अगर मामला पाकिस्तान से ही एलर्जी को होता तो लगभग तीन साल पहले पाकिस्तान से आये ढाई सौ से ज्यादा आतंकियों को जिनमें एक पाकिस्तान का मंत्री भी रहा था को आजतक सरकारी महमान बनाकर न पाला जाता होता किसी को भी आजतक वापिस नही भेजा गया जबकि गुजरे बीस साल के अर्से में उन हजारों महिलाओं को उनके छोटे छोटे बच्चों तक को छोड़कर वापिस पाकिस्तान भेज दिया गया जिन्होंने बीस पच्चीस साल पहले भारत आकर यहां के लोगों से शादियां करली थी और आराम से अपने परिवार के साथ रह रही थी, उन्हें भारत से जाने पर मजबूर कर दिया गया कयोंकि वे मुसलमान थीं। आरएसएस लाबी की मीडिया आजतक चुप्पी साधे हुए है। इसी हफ्ते बनारस में एक नेता का भतीजा सेना की वर्दी में पकड़ा गया उसके पासे से काफी बम बारूद बरामद हुआ, पुलिस बम बारूद पी गयी, आरएसएस पोषित मीडिया को भी सांप सूंघ गया, राजस्थान में पूर्व मेजर का पुत्र भारी मात्रा में बारूद के साथ पकड़ा गया जोकि सीरियल ब्लास्ट करने की फिराक में था, इसको आतंकी की उपाधी देने का गूदा ही नही रहा मीडिया में। गुजरे हफ्ते राजिस्थान में तीन लोग जासूसी करते रंगेहाथ पकड़े गये इनको किसी भी अखबार या चैनल ने आतंकी नहीं बोला क्यों ? कयोंकि ये तीनों गददार मुस्लिम नही है। दरअसल रंगबिरंगे मोटे मोटे अखबार और खुद को नम्बर वन कहने वाले चैनल आरएसएस लाबी में हैं और आरएसएस के लिए ही काम करते हैं इनको सिर्फ एक ही उददेश्य है कि किसी भी तरह मुसलमान ओर इस्लाम को आतंकी घोषित कर दिया जाये। एक ओर सबूत देखिये, यहकि इन दिनों आरएसएस पोषित मीडिया ने लव जिहाद नामक नयी साजिश शुरू करदी है जिसमें व्हाटसअप का सहारा लेकर अंजाम दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह मुस्लिम कर रहे है। क्या सबूत है कि मुस्लिम ही कर रहे हैं ? अगर मोबाइल नम्बर को सबूत मानते हो तो कोई भी मोबाइल नम्बर किसी की आईडी प्रमाणित नही करता, कि मोबाइल धारक अपने ही नाम का सिम इस्तेमाल कर रहा है या किसी दूसरे के नाम का ? हमारे पास ऐसे हजारों सबूत मौजूद हैं मोबाइल धारक को खुद नही मालूम कि वह किसके नाम की सिम इस्तेमाल कर रहा है। गुजरे हफ्ते ही उ0 प्र0 के शाहजहांपुर में फर्जी आईडी बनाकर उनके नाम पर सिम बेचने वाला गिरोह पकड़ा गया जिनमें एक आईडिया का फ्रैंचाइज भी है। आजकल जेएनयू के बहाने जमकर भड़ास निकालने के लिए नीचे तक का जोर लगाती दिखाई पड़ रही है आरएसएस पोषित मीडिया। जेएनयू में साजिश के तहत देश विरोधी नारे लगवाये गये ऐसी खबरें भी सबूत सामने आई हैं जिनसे यह साबित हो गया कि देश विरोधी नारे एबीवीपी ने लगाये, लेकिन इस सच्चाई को मीडिया दबाते हुए अफजल गुरू की बर्सी मनाने वालों को ही उछाल रही है, जिस वीडियों के सहारे जेएनयू से लेकर विदेशों तक को हिलाकर रख दिया उस वीडियो में वीडिया की असल आवाज को हटाकर अपने मतलब वाली दूसरी आवाज (देश विरोधी नारे) मिक्स करके बखेड़ा खड़ा किया गया। यह तो कहिये खुदा का शुक्र रहा कि जेएनयू में इंसाफ की आवाज उठाने वाले नेता मुस्लिम नहीं है वरना तो अब तक उनको मारकर मुठभेड़ का नाटक भी रचकर आतंकी बता दिया गया होता। कहां सो गया कानून कहां सो रहे वह जज साहब जिन्हें अकबरउद्दीन के बोलने पर यू ट्यूब देखने का शौक हो जाता है, अब क्यों नहीं देख रहे इन चैनलों की करतूत? देश से विदेश तक आग लगाने वाले इन चैनलों के खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत क्यों नहीं कर पा रहा कानून? हालांकि अब सरकार (गृहमंत्रालय) खुद ही अपने मकसद की तरफ बढ़ने लगा अब कहा जा रहा है कि देश विरोधी नारे कन्हैया ने नहीं लगाये अब नाम उमर खालिद का उछाला जा रहा है। मीडिया लंगूरी कुलांचे मारने लगी उमर खालिद के नाम पर, दो दिन में ही यह भी सबूत मिल गये कि आरएसएस के इस चैनल ने वीडियो मिक्स कराकर पेश की यानी अब यह भी साबित हो ही गया कि इसमें उमर खालिद का भी कोई रोल नहीं था। याद करिये गुजरे हफ्ते ही आरएसएस के एक युवक ने तिरंगा जलाया इस खबर को सुर्खियों में लाना तो दूर मीडिया खबरे छापने और दिखाने के नाम पर भी दुम दबा गयी, क्यों जी तिरंगा जलाना राष्ट्रद्रोह में नहीं आता। इस्लाम और मुसलमान को आतंकी घोषित करने के लिए अमरीका और आरएसएस का सबसे मजबूत और कारगर हथियार मीडिया और खासतौर पर भारतीय मीडिया है जो मुसलमानों और इस्लाम के खिलाफ गैर मुस्लिमों भड़काकर अमरीका व आरएसएस की साजिशों में मदद देने के लिए उकसाती है। मीडिया का अपनी साजिशों में कामयाब होने की कुछ खास वजह है। पहली यहकि मुसलमानों को अपना कोई न्यूज चैनल या अखबार नहीं है जो एक दो अखबार हैं भी तो वे उर्दू के हैं जिनकी प्रसार संख्या मामूली है साथ ही जहां आज खुद मुसलमानों में ही उर्दू पढ़ने वालों के गिनती नाम मात्र है तो दूसरे मजहब के लोगो से उम्मीद कैसे की जा सकती है उर्दू पढ़ने की, ऐसे में अगर किसी उर्दू अखबार में कुछ सच्चाई आती भी है तो उसे पढ़ेगा कौन ? जो एक दो अखबार है भी तो उनकी आमदनी इतनी नही होती कि वो रंगीन चमक धमक के साथ छापे जा सके। दूसरी वजह यह है कि मेरी कौम भैंसा खाती है तो खोपड़ी भी भैंसे वाली ही हो गयी है, मुसलमानों को रंग बिरंगे फोटो और ज्यादा से ज्यादा रद्दी देने वाले अखबार ही पसन्द है और ऐसे सभी अखबार और चैनल आरएसएस लाबी के ही है। अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या आरएसएस लाबी के इन अखबारों में मुसलमान पत्रकार नहीं है तो जनाब है लेकिन उनके जमीर मरे हुए हैं वे सबसे पहले आरएसएस की साजिशों में हां में हां मिलाने खड़े होते हैं। आप आरएसएस लाबी के किसी भी अखबार को उठाकर देखिये उसमें ज्यादा विज्ञापन मुसलमानों के ही मिलेंगे, क्या यही विज्ञापन मुस्लिम अखबारों को नहीं दिये जा सकते, नहीं देंगे क्योंकि पहली बात मुस्लिमों के दैनिक अखबार हैं ही नहीं और दो चार हैं भी तो वो रंगबिरंगे नहीं है और ना ही उनमें इतने पेज होते हैं कि रद्दी का वजन हो। कुछ साल पहले की ही बात है बरेली के एक मुस्लिम नेता ने यह कहते हुए बरेली के ही एक कांग्रेसी अखबार की शाहदाना चैराहा पर प्रतियां जलाई कि यह अखबार मुस्लिमों के खिलाफ साजिशी खबरें दे रहा है, अच्छा किया लेकिन शर्म की बात तो यह है कि इन्हीं नेता ने तीन दिन बाद ही अपनी पार्टी का 34 हजार रूपये मूल्य का विज्ञापन बरेली के ही उस अखबार को दिया जो कि खुला आरएसएस का है। क्यों नेता जी मुसलमानों के ठेकेदार बनते हो और आरएसएस को बिजनेस देते हो क्या बरेली में मुस्लिम अखबार नहीं हैं अगर बहाना करते हो प्रसार संख्या और रंगबिरंगे होने का तो सोचो जितना बिजनेस आरएसएस पोषित अखबारों को देते हो उसका आधा भी मुस्लिम अखबारों को देने लगो तो चन्द दिनों में वो भी तुम्हारे रंगबिरंगे फोटो छापने लगेंगे। मुसलमान और इस्लाम को बदनाम करने की आरएसएस पोषित मीडिया की साजिश का नया सबूत जेएनयू का मामला ही है। कश्मीर में फोज जिसे चाहा मार दिया मीडिया तुरन्त मुठभेड़ बता देती है, याद कीजिये गुजरे साल 2011-12 में फौजियों ने एक मंदबुद्धी नौजवान को बेवजह ही मारकर आतंकी कहकर मुठभेड़ कह दिया था आरएसएस पोषित मीडिया नंगी होकर नाचने लगी लेकिन जब अगले ही दिन सच्चाई उजागर हो गयी तो मीडिया की मैया मर गयी सब डरी सहमी कुतिया की तरह दुम दबा गये। मन्दिर टूटे तो ष्मन्दिर तोड़ा गयाष् और जब मस्जिद या मजार तोड़ा जाता है तो पहले तो खबर ही बड़ी ही मुश्किल से मजबूर होकर लगाते है और तब हैडिंग होता है ष्धर्मस्थल टूट गयाष्। मन्दिर टूटने पर लोगों की आस्था को भड़काने की कोशिश की जाती है। आज यानी 20 फरवरी 2016 का ही एक जीता जागता सबूत देखिये। बरेली जिले के थाना शाही की पुलिस चोकी दुनका पर चोकी इंचार्ज और सिपाही के बीच उगाही को लेकर फोन पर कहा सुनी गाली गलौंच हुई। मामला यह था कि दुनका के एक कसाई ने घर में ही भैंस काटली सिपाही पहुंचा और पैसा मांगने लगा न देने पर वह कसाई को पकड़ लिया, इसपर सैकड़ों लोगों ने चोकी घेर ली इसपर चोकी प्रभारी ने सिपाही को डांट डपक की, चोकी इंचार्ज ने कई बार साफ साफ कहा कि ये लोग रसूक वाले और बवालिये, और मुझे चोकी में पुलिस को पिटवाना नहीं है, तुम फोरन वहां से चले आओ। इस खबर को आज कुछ स्थानीय व बाहरी अखबारों ने गौकशी का हैडिंग देकर लोगो को चोकी इंचार्ज के खिलाफ भड़काने की कोशिश की, क्योंकि चोकी इंचार्ज मुसलमान है। हम यह नही कह रहे कि चोकी इंचार्ज दूध का धुला है या बेकसूर है लेकिन आरएसएस पोषित अखबारों ने उगाही को धार्मिक रंग देने में कसर नही छोड़ी। घर में जानवर काटने पर उगाही न देने का मामला था जिसे अखबार वालों ने गोवंशीय पशु लिखकर आग लगाने की कोशिश की, ठीक उसी तरह जैसे कुछ ही दिन पहले राजिस्थान के दौसा में इस्लामी झण्डे को पाकिस्तानी झण्डा लिखकर एक पत्रकार बने फिरने वाले एक गुण्डे ने इलाके में हड़कम्प मचा दिया था, बरेली में भी कोशिश की गयी। जिस मोबाइल रिकार्डिंग के सहारे मीडिया आग आग लगाना चाहती है उसमें गौवंशीय पशु का एक बार भी नाम नहीं आया। लेकिन आरएसएस पोषित अखबारों को मोका मिला मुसलमान के खिलाफ हवा बनाने का।

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IMRAN_NIAZI* लेखक-इमरान नियाज़ी वरिष्ठ पत्रकार एंव “अन्याय विवेचक” के सम्पादक हैं।
* Disclaimer: The writer is a freelance journalist and the views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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