कलाम को राष्ट्रपति नहीं प्रधानमंत्री होना चाहिए**

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तनवीर जाफरी**,,

देश इन दिनों राष्ट्रपति चुनाव की गहगहमी से रूबरू है। धर्म व जाति आधारित राजनीति का शिकार हो चुकी भारतीय राजनैतिक व्यवस्था हर बार की तरह इस बार भी राष्ट्रपति के चुनाव में भी धर्म व जाति के आधार पर उमीदवारों का चयन करती दिखाई दे रही है। जिस प्रकार 2002 के गुजरात के दंगों के बाद भारतीय जनता पार्टी ने देश के मुसलमानों के आंसू पोंछने के लिए तथा दुनिया को यह दिखाने के लिए कि भाजपा मुस्लिम विरोधी नहीं है, डा० एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति के पद पर पहुंचाया था। और उस चुनाव में समाजवादी पार्टी जैसी स्वयं को मुस्लिमपरस्त कहने वाली राजनैतिक पार्टी ने भाजपा का साथ भी दिया था। इसका राजनैतिक कारण सिर्फ यह था कि भाजपा व सपा दोनों ही देश के समक्ष कलाम साहब के समर्थक के रूप में अपना चेहरा पेश करना चाह रहे थे। बहरहाल, देश के इस महान वैज्ञानिक ने अपना बहुमूल्य समय राष्ट्रपति के रूप में गुज़ारा। अब एक बार फिर वर्तमान राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का कार्यकाल पूरा हो रहा है तथा डा० एपीजे अब्दुल कलाम के नाम को लेकर पुन: गहमागहमी मची हुई है। तृणमूल कांग्रेस व समाजवादी पार्टी एक बार फिर डा० कलाम को राष्ट्रपति पद का उ मीदवार बनाए जाने की पैरवी करते देखे गए। और इन्होंने कांग्रेस पार्टी से अपने इस प्रस्ताव पर समर्थन की दरकार की। इन हालात से सा$फ है ज़ाहिर है कि डा० कलाम इस समय देश की एक अकेली ऐसी शख्सीयत हैं जिनकी लोकप्रियता का लाभ भाजपा की ही तरह अन्य राजनैतिक दल भी लेना चाह रहे हैं।

सवाल यह है कि डा० कलाम को राष्ट्रपति पद पर बिठाने का मकसद आखिर क्या है? क्या सिर्फ इसलिए उन्हें राष्ट्रपति पहले भी बनाया गया और अब भी कोशिश की जा रही है कि वह मुस्लिम समुदाय के सदस्य हैं? या इसलिए कि देश में उनकी लोकप्रियता व उनकी स्वीकार्यता का लाभ उनके नाम का प्रस्ताव करने वाले राजनैतिक दल उठाना चाह रहे हैं? या फिर वास्तव में उनके नाम के प्रस्तावक दल देश को उनकी काबिलियत व देश के प्रति उनकी सोच व फिक्र तथा देश के विकास के लिए उनके पास मौजूद तमाम योजनाओं का लाभ हासिल करना चाह रहे हैं ? डा० कलाम निश्चित रूप से इस समय हमारे देश में प्रसिद्धि व लोकप्रियता के उस शिखर पर बैठे हैं जहां शायद महात्मा गांधी के बाद अब तक कोई नहीं पहुंचा। यहां यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि गांधी के तो इस देश में न केवल हत्यारे रहे हैं बल्कि उनकी आलोचना करने वाले व उनके हत्यारे का समर्थन करने वाले लोग आज भी इस देश में मौजूद हैं। परंतु कलाम महान वैज्ञानिक रूपी देश के प्रति समर्पित उस संत का नाम है जिसके विरोध या आलोचना का साहस संभवत: देश में कोई भी राजनैतिक दल, कोई नेता या कोई भी विचारधारा नहीं दिखा सकती। ज़ाहिर है ऐसे में लगभग सभी दल कलाम साहब के साथ खड़े हुए दिखाई देना चाहते हैं। याद कीजिए 2002 के डा० कलाम के राष्ट्रपति पद के उस चुनाव को जिसमें वामपंथी दलों ने डा० कलाम का विरोध तो ज़रूर किया था परंतु उनके राजनैतिक विरोध का कारण केवल यही था कि वे भारतीय जनता पार्टी के साथ मतदान नहीं करना चाहते थे जबकि कलाम की योग्यता के वे भी क़ायल थे।
हालांकि डा० कलाम देश के राष्ट्रपति के रूप में अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं तथा निश्चित रूप से भारत को इस बात पर गर्व है कि कलाम जैसे दूरदर्शी व्यक्ति को उसने अपने राष्ट्रपति के रूप में देखा है। परंतु हमारे संविधान में दर्ज व्यवस्थाओं के तहत जिस प्रकार अन्य सभी पदों की सीमाएं,कार्यक्षेत्र व अधिकार सीमित हैं उसी प्रकार राष्ट्रपति पद के अधिकार क्षेत्र की भी अपनी सीमाएं हैं। ज़ाहिर है देश का राष्ट्रपति अपने पद की गरिमा व उसकी सीमाओं के अंतर्गत् एक सीमित परिधि के भीतर रहकर ही अपने कार्यों को अंजाम दे सकता है। कहने को तो संवैधानिक रूप से देश का यह सर्वोच्च संवैधानिक पद है तथा भारत का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक समझा जाता है। परंतु उसके कार्य करने की सीमाओं से भी प्रत्येक व्यक्ति भलीभांति वाकि़फ है। ऐसे में डा० कलाम जैसे दूरदर्शी, महान योजनाकार तथा देश के विकास के संबंध में तमाम योजनाएं रखने वाले इस महान वैज्ञानिक को राष्ट्रपति बनाकर पांच वर्षों के लिए उन्हें राष्ट्रपति भवन की सीमाओं के भीतर तथा राष्ट्रपति पद की मर्यादाओं का वास्ता देकर उन्हें व उनकी सोच को नियंत्रित रखने का प्रयास करना आखिर कहां तक उचित है।
ज़रा गौर कीजिए कि देश में और भी कई राष्ट्रपति हुए हैं और लगभग सभी राष्ट्रपति अपने पद से हटने के बाद इस सर्वोच्च पद की गरिमा का आदर करते हुए राजनीति व सार्वजनिक जीवन से लगभग किनाराकश हो गए। परंतु डा० कलाम एक ऐसी शख्सियत हैं जो राष्ट्रपति पद से हटने के बाद कुछ यूं नज़र आने लगे जैसे कि कोई पंछी पिंजरे से आज़ाद हो जाता हो। राष्ट्रपति पद से हटने के बाद उन्होंने शायद इसी वजह से यह भी कहा था कि मुझे पूर्व राष्ट्रपति कहने के बजाए केवल प्रोफ़ेसर कलाम कहकर संबोधित किया जाना पसंद करूंगा। डा० कलाम राष्ट्रपति बनने से पूर्व तथा राष्ट्रपति पद से हटने के बाद आज तक देश के युवाओं विशेषकर छात्रों से स्कूल व कॉलेज के बीच जाकर उनसे मिलना, उनसे बातें करना तथा देश व बच्चों के भविष्य के बारे में उन्हें बताना ही अपने जीवन का मु य लक्ष्य मानते हैं। कलाम साहब वास्तव में यह समझते हैं कि हमारी नई पीढ़ी ही देश को सही रास्ते पर ले जा सकती है। वे आज लोकप्रियता के उस शिखर पर हैं जहां संभवत:मुसलमानों से अधिक हिंदुओं व अन्य धर्मों में उन्हें लोकप्रियता,मान्यता व स्वीकार्यता प्राप्त है। उनका एक-एक शब्द देश व समाज के सामूहिक हित को ध्यान में रखते हुए निकलता है। भारतवर्ष को 2020 तक विकसित राष्ट्र बनाए जाने का सपना कलाम जैसे दूरदर्शी व्यक्ति का ही है। वही विज़न 2020 के जनक हैं।
बिहार जैसे देश के सबसे पिछड़े राज्य को देश के अन्य राज्यों में सबसे आगे ले जाने की इच्छा डा० कलाम की ही है। शायद तभी वे अक्सर बिहार की यात्रा पर जाते रहते हैं। अपने राष्ट्रपति काल में भी उन्होंने बिहार में अप्रवासी भारतीयों के स मेलन को संबोधित किया था तथा वहां बड़े पैमाने पर पूंजीनिवेश की वकालत की थी। पिछले दिनों भी डा० कलाम बिहार गए तथा मु यमंत्री नितीश कुमार ने बिना किसी प्रोटोकॉल के पहले की तरह हवाई अड्डे पर जाकर उनका स्वागत किया व उनकी अगवानी की। दिल्ली के नवनिर्मित विश्व ियात अक्षरधाम मंदिर का डा० कलाम के हाथों से उद्घाटन हुआ। अमेरिका के बाल्टलेट में भी स्थित श्री स्वामी नारायण मंदिर में अप्रैल 2011 में कलाम साहब ने वहां धार्मिक व आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों से मुला$कात की, उनसे वैदिक श्लोक सुने तथा उस मंदिर में विराजमान मूर्तियों पर श्रद्धापूर्वक पुष्प अर्पित किए। क्या स्वर्ण मंदिर तो क्या अजमेर शरी$फ की दरगाह प्रत्येक ऐसे धर्मस्थ्लों पर वे समान श्रद्धा व आदर के साथ जाते रहते हैं। उन्हें गीता, कुरान व बाईबल जैसे धर्मग्रंथों का पूरा ज्ञान है। इस प्रकार की गतिविधियां कलाम साहब के लिए कोई ख़ास  मायने नहीं रखती क्योंकि उनका व्यक्तित्व जाति, धर्म, संप्रदाय,समुदाय तथा क्षेत्रवाद की सोच से कहीं ऊपर है।
यह कलाम साहब का ही कथन है कि जब तक देश का एक भी व्यक्ति भूखा है तब तक हमारा देश खुशहाल देश नहीं कहा जा सकता। डा० कलाम कई बार यह दोहरा चुके हैं कि वे देश के प्रत्येक नागरिक के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहते हैं जो इस समय दिखाई नहीं दे रही है। उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है उनके चाहने वालों ने उनकी मूर्ति स्थापित कर उनके नाम का मंदिर बना रखा है। सवाल यह है कि जब डा०कलाम के पास भारत को विकसित राष्ट्र बनाने,प्रत्येक बच्चे के उज्जवल भविष्य की कल्पना करने,देश से गरीबी व भुखमरी दूर करने, कृषि के क्षेत्र में भारत को विश्वस्तर का बनाने, आर्थिक व सामरिक क्षेत्र में भारत को दुनिया का सबसे मज़बूत राष्ट्र बनाने, बाढ़ व सूखे से देश को निजात दिलाने , पूरे देश को साक्षर बनाने तथा विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में भारत के परचम को सबसे ऊंचा बुलंद करने जैसी तमाम योजनाएं हैं तो ऐसे महान दूरदर्शी व्यक्ति को राष्ट्रपति भवन की चारदीवारी तक सीमित रखने का आखिर औचित्य क्या है? स्वयं को डा० कलाम के साथ या उनके समर्थक के रूप में प्रस्तुत करने वाले राजनैतिक दल डा० कलाम को भारत का प्रधानमंत्री बनाए जाने की वकालत क्यों नहीं करते? मेरे विचार से डा० कलाम जैसा व्यक्ति देश का राष्ट्रपति नहीं बलिक इस देश का न केवल प्रधानमंत्री बल्कि आजीवन प्रधानमंत्री रहना चाहिए ताकि न सिर्फ देश के विकास से संबंधित उनके दूरदर्शी विचारों व योजनाओं का लाभ उठाया जा सके बल्कि देश के वर्तमान विकृत राजनैतिक स्वरूप को भी बदला जा सके।

**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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