इस मुल्क में हर शख्स परेशान सा क्यों है?

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– तनवीर जाफरी –

पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिटेन में वेस्ट मिंस्टर के सेंट्रल हॉल में भारतीय मूल के अप्रवासियों से रूबरू हुए। इस कार्यक्रम का आयोजन भी उसी तजऱ् पर किया गया था जैसे पहले भी कई देशों में किया जा चुका है। अर्थात् प्रधानमंत्री जब विदेश जाते हैं तो उनकी प्राथमिकता वहां के भारतीय मूल के लोगों से मिलने की अधिक होती है, उस देश के स्थानीय लोगों से नहीं। विदेशों में तो वे पूर्व निर्धारित स्क्रिप्ट के अनुसार अप्रवासी भारतीयों के सवालों का जवाब भी दे देते हैं परंतु अपने देश में रहते हुए वे ‘मन की बात’ जैसे एकतरफा संवाद पर ही अधिक विश्वास करते हैं। बहरहाल, ब्रिटेन के सेंट्रल हाल में आयोजित किया गया कार्यक्रम ‘भारत की बात-सबके साथ’ भले ही दो घंटे बीस मिनट तक चलकर समाप्त हो गया हो परंतु वेस्ट मिंस्टर के सेंट्रल हाल के बाहर तथा वहां की सडक़ों पर कई घंटे तक मोदी विरोधी प्रदर्शन होते रहे। ज़ाहिर है इन प्रदर्शनों में भाग लेने वाले लोग भी भारतीय मूल के ही थे तथा इनकी संख्या सेंट्रल हाल में मौजूद लोगों से कई गुणा ज़्यादा थी। सवाल यह है कि यदि सेंट्रल हाल में प्रधानमंत्री के स्वागत में तथा उनसे रूबरू होने के लिए एक लंबे व खर्चीले अभ्यास के बाद लोगों को प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए जुटाया गया फिर आिखर वे लोग कौन थे और कैसे जुटाए गए थे जो प्रधानमंत्री के विरुद्ध प्रदर्शन व नारेबाज़ी कर उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाह रहे थे?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री बनने से पूर्व करण थापर तथा विजय त्रिवेदी जैसे भारतीय पत्रकारों को साक्षातकार दिए जाने का जो कड़वा अनुभव रहा है उसके चलते अब प्रधानमंत्री बनने के बाद वे पूरी तरह सचेत रहते हैं। अब उनका विश्वास या तो साक्षात्कार की उस प्रश्रावली का उत्तर देने में है जो प्रधानमंत्री कार्यालय की संस्तुति के बाद साक्षात्कार कर्ता को भेजी जाती है। या फिर स्कूल के बच्चों से सीधे बातचीत करने में उन्हें अधिक आनंद आता है। देश की समझदार जनता,पेशेवर निष्पक्ष अथवा आलोचक श्रेणी के पत्रकार आदि लोगों के सवालों का जवाब देना वे मुनासिब नहीं समझते। आत्ममुग्धता से शराबोर प्रधानमंत्री स्क्रिप्टेड प्रश्रावली व उस पर आधारित साक्षात्कार में भी ऐसे ही सवालों से रूबरू होते हैं जिससे जनता के मध्य उनका एकतरफा संवाद तो स्थापित हो ही साथ-साथ भावनात्मक रूप से भी वे आमजन को प्रभावित कर सकें। उदाहरण के तौर पर रेलवे स्टेशन से लेकर रॉयल पैलेस तक के सफर के बारे में उनसे सवाल किया गया। गोया वे अभी भी अपनी कथित चाय बेचने वाली छवि पेश कर जनता की हमदर्दी हासिल करने में लगे हुए हैं। वे स्वयं को फकीर बताने से भी नहीं बाज़ आते। जबकि उनकी ‘शाहाना’ फकीरी पर बार-बार आलोचना भी होती रही है। प्रधानमंत्री हर बार बड़ी शान के साथ स्वयं को देश की 125 करोड़ जनता का नुमाईंदा बताते हैं। परंतु वह यह बात भूल जाते हैं कि जो लोग उनके कार्यक्रम के दौरान सेंट्रल हाल के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं वे भी भारत की इसी 125 करोड़ जनता के ही अंश हैं और वे भी भारतीय मूल के ही हैं।

आत्ममुग्धता तथा आत्मप्रशंसा के शिकार प्रधानमंत्री स्वयं को सवा सौ करोड़ जनता का नुमाईंदा  तो बताते हैं परंतु साथ-साथ वे यह भी कहते हैं कि उनकी सेहत का राज़ गत् बीस वर्षों से प्रतिदिन एक-दो किलो गालियां खाना है। सवाल यह है कि प्रधानमंत्री मोदी जैसी तथाकथित अपार लोकप्रियता रखने वाले विचित्र प्रधानमंत्री को आिखर गालियां कौन देता है? और क्यों देता है कभी प्रधानमंत्री ने इस विषय पर भी सोचने की ज़हमत की है? प्रधानमंत्री को यह बात भलीभांति समझनी चाहिए कि देश की व्यवस्था तथा शासन केवल सपनों,आश्वासनों अथवा मीठी-मीठी लच्छेदार बातों से नहीं चलता।  सेंट्रल हॉल जैसे किसी हॉल में बैठकर एक अच्छे प्रबंधन के द्वारा चारों ओर से तालियां बजवा लेने जैसे प्रदर्शन से देश या देश की जनता खुशहाल नहीं हो जाती। अब तक लगभग 54 देशों की यात्रा कर चुके प्रधानमंत्री क्या बता सकते हैं कि उनके इतने ‘अथक प्रयासों’ के बावजूद विदेशी पूंजीनिवेश भारत में अब तक अपेक्षित रूप से क्यों नहीं आकर्षित हो सका? ठीक इसके विपरीत क्या कारण है कि भारतीय धनाढ्य लोगों का गत् चार वर्षों में भारत छोडक़र विदेश जाने का टें्रड काफी तेज़ी से बढ़ा है? इन्वेस्टमेंट एंड फाईनेंशियल सर्विसेज़ फर्म मॉर्गन स्टेली द्वारा प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2014 में सत्ता संभालने के बाद से लेकर अब तक यानी गत् चार वर्षों में 23 हज़ार भारतीय धनाढ्यों द्वारा भारतवर्ष की नागरिकता त्याग कर विदेशों में जा बसने तथा वहीं की नागरिकता लेने का निर्णय लिया गया है। इन आंकड़ों के अनुसार 7 हज़ार उद्योगपतियों ने तो 2017 में ही भारत की नागरिकता छोड़ी है। क्या प्रधानमंत्री बता सकते हैं कि ऐसे शर्मनाक हालात देश में क्यों पैदा हो रहे हैं?

प्रधानमंत्री प्रतिदिन एक-दो किलोग्राम गालियां खाने तथा उसी में अपनी सेहत का जो राज़ बताते हैं दरअसल इसके पीछे भी उनका मकसद यही होता है कि वे ऐसी बातें कर आम लोगों के मध्य अपनी बेचारगी और अपनी बेबसी का इज़हार कर सकें। परंतु उनकी आलोचना करने वाले या उनसे सवाल करने वाले लोग यदि उनसे यह पूछना चाहते हैं कि आपके शासनकाल में पूरे देश में असहिष्णुता का जो बढ़ता माहौल है आिखर उसकी वजह क्या है? देश में महिलाओं के साथ बलात्कार व अत्याचार की जो घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं और इनमें से कई घटनाओं में आपकी पार्टी के समर्थक शामिल पाए जा रहे हैं या ऐसी घटनाओं के समर्थन में खड़े दिखाई दे रहे हैं उसकी वजह क्या है? देश के लोग जब 2014 में उन्हीं के द्वारा किए गए वादों के अनुसार उनसे यह पूछते हैं कि माननीय महोदय आिखर प्रत्येक वर्ष दो करोड़ रोज़गार देने का वादा कहां गया तो या तो ऐसे सवाल आपको ‘गाली’ नज़र आते हैं या फिर आप चाय-पकौड़ा बेचने को ही देश के नवयुवकों को रोज़गार मिलना बता देते हैं? आपने लाल िकले के अपने 2014 के संबोधन में देश को तरक्की की राह पर ले जाने के लिए सांप्रदायिकता के वातावरण से दूर रखने का निवेदन किया था। और गत् चार वर्षों में आप ही की पार्टी व आपकी विचारधारा के लोगों ने ही देश को सांप्रदायिक आधार पर इतना नुकसान पहुंचाया है जितना गत् 70 वर्षों में नहीं हुआ। आपने नारा दिया था कि ‘बहुत हुई मंहगाई की मार’ परंतु आज मंहगाई 2013-14 से कहीं अधिक बढ़ चुकी है।

कितना अच्छा होता यदि प्रधानमंत्री ब्रिटेन के वेस्ट मिंनस्टर के सेंट्रल हॉल में स्क्रिप्टेड इंटरव्यू देने के अलावा सीधे तौर पर उन लोगों से भी मिलते जो 125 करोड़ भारतवासियों का हिस्सा होने के नाते अपने लोकप्रिय प्रधानमंत्री से मिलने दूरदराज़ के क्षेत्रों से चलकर आए थे और उनसे कुछ सवाल पूछना चाह रहे थे। प्रधानमंत्री को आत्ममुग्धता तथा आत्मप्रशंसा के इस वातावरण से बाहर निकलने की ज़रूरत है। उन्हें चाटुकारों या पद व राजनैतिक लाभ उठाने वाले खुशामदपरस्तों के बजाए गाली देने वालों अर्थात् अपने आलोचकों से ही यह सवाल पूछने की ज़रूरत है कि आिखर उनके जैसे ‘फकीर व विद्वान’ प्रधानमंत्री के रहते हुए-‘इस मुल्क में हर शख़्स परेशान सा क्यों है’?

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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